प्रवाह: जब से सरकारों ने निजी क्षेत्र में विश्वविद्यालय खोलने को बढ़ावा देना शुरू किया है, राज्यों में कुकुरमुत्तों की तरह विश्वविद्यालय खुलने लगे हैं। अफसोस की बात यह है कि इनमें बहुत से कुकुरमुत्ते विषैले हैं। ऐसे कई विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा के नाम पर शैक्षणिक माहौल को विषैला बनाने में लगे हैं। उन्हें शिक्षा के स्तर से कोई मतलब नहीं, बस किसी ना किसी तरह अंधी कमाई होनी चाहिए। भले ही इसके लिए कितना भी नीचे गिरना पडे। हालांकि इस भीड़ में बहुत से ऐसे संस्थान भी हैं, जो बेहतर शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से भटके नहीं हैं।
चूरू की ओपीजेएस यूनिवर्सिटी का मामला तो आंखें खोलने वाला है। इस विश्वविद्यालय में एक वर्ष की सौ सीटें तय की गई थी, 5 साल में 1300 डिग्रियां बांट दीं। अब उच्च शिक्षा विभाग लकीर पीटने में लगा है। जिसे अवैध कमाई करनी थी, कर ली। अब कुछ भी कर लो। जब पेपर तक अपराधियों को बेच दिए जाते हैं तो डिग्रियां बेचने में क्या बुराई है? मेहनत करके डिग्री हासिल करने वाले भले ही खून के आंसू बहाते रहें। किसको चिंता। ऐसे ही घोटाला हो रहा है फर्जी खेल सर्टिफिकेट बांटने का। इसके लिए खरीदार का बाकायदा प्रवेश दिखाया जाता है और खेल आयोजकों की मदद से फर्जी प्रमाण पत्र और मैडल बांट दिए जाते हैं। इन प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी मिल जाती है। तुर्रा यह है कि इन दुकाननुमा ‘विश्वविद्यालयों’ को रियायती दर पर जमीनें दे दी जाती है। राजनेता, अफसर और विश्वविद्यालय संचालक-सबके वारे-न्यारे।
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अच्छी शुरुआत
सम्पूर्ण भारत में उच्चशिक्षा का यह माफिया छाया हुआ है। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी उच्चशिक्षा संस्थानों में फर्जीवाड़े की होड़ लगी है। छत्तीसगढ़ में एक यूनिवर्सिटी ने पैसे के बदले बैक डेट में डिप्लोमा सर्टिफिकेट जारी कर दिया। यह मामला अदालत में विचाराधीन है। एक अन्य विश्वविद्यालय ने जेल में बंद कैदी को रिहा होने से पहले ही रेगुलर कोर्स का सर्टिफिकेट जारी कर दिया। मध्यप्रदेश के 51 में से एक दर्जन विश्वविद्यालयों के फर्जीवाड़े सामने आ चुके हैं। यहां तक कि पी.एच.डी. की डिग्रियां भी पैसे लेकर बांटे जाने के मामले उजागर हुए। कई विश्वविद्यालयों में छात्रवृत्ति घोटाला हो रहा है। राजस्थान में जोधपुर का विश्वविद्यालय भी फर्जी डिग्रियों के मामले में ‘नाम’ कमा चुका है। यह भी पढ़ें