पाकिस्तान ने दो हफ्ते पहले देश के सभी मुद्दों को शामिल करते हुए अपनी पहली राष्ट्रीय सुरक्षा नीति (एनएसपी) को लागू किया है। आर्थिक सुरक्षा को केंद्र में रखा गया है। साथ ही इस तथ्य पर जोर दिया गया है कि अपने लोगों के हितों को कैसे सुरक्षित किया जाए। पर, पाकिस्तान में इस नीति के जरिए हासिल किए जाने वाले उद्देश्यों पर बहस जारी है। कुछ लोग प्रश्नात्मक तरीके से सोच रहे हैं कि इस नीति से क्या हासिल होगा। अर्थात पाकिस्तानियों को यह तय और निश्चय करना है कि इस नीति का अंतिम परिणाम क्या होगा। दुनिया को भी संज्ञान लेने और विश्लेषण करने की जरूरत है कि क्या यह नीति वास्तव में आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक रूप से पाकिस्तान की स्थिरता के लिए काम कर सकती है।
पाकिस्तान में स्थिरता अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर पड़ोसी देशों, के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ के नेतृत्व में नीति विशारदों ने एक दस्तावेज तैयार किया है जो कम से कम, देश के समक्ष आने वाली चुनौतियों को पहचानता है। हालांकि इसमें कुछ अतिरंजित भी है। अन्य चुनौतियों को कमतर आंका गया है।
यह भी पढ़ें – Patrika Opinion: राजनीतिक दलों को खुद के विचारों पर नहीं भरोसा यह नीति दस्तावेज अधिक पठनीय, अंतर्दृष्टिपूर्ण और व्यावहारिक होता, यदि पाकिस्तान ने अतीत के गलत फैसलों और उनके नतीजों पर चर्चा की होती और देखा होता कि समस्या के हल के लिए उसके पास क्या संसाधन हैं।
चाहे जो भी हो, पाकिस्तान दुनिया का एक प्रमुख देश है। उसकी भू-रणनीतिक स्थिति का महत्त्व, पाकिस्तान के ही समर्थन से खड़े हुए संगठनों के विरुद्ध होना जैसे अफगानिस्तान में तालिबान और फिर अमरीका के खिलाफ अप्रत्यक्ष तालिबान का साथ देना, इन कारणों से उसे कमतर नहीं आंका जा सकता है। चिंताजनक मुद्दे तेजी से बढ़ रहे हैं। उसकी अर्थव्यवस्था लगभग ढहने के कगार पर है और इसके पटरी पर लौटने के लिए संसाधनों की कमी है।
सबसे बढ़कर उसे यह नहीं मालूम कि पड़ोसी देशों, विशेषकर भारत के साथ कैसे व्यवहार किया जाए। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक बुनियादी नियम है – किसी भी देश को अपूर्ण मुद्दों पर दोस्ती व वार्ता से प्रतिफल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। भारत के खिलाफ दुश्मनी कायम रखना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।
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चाहे जो भी हो, पाकिस्तान दुनिया का एक प्रमुख देश है। उसकी भू-रणनीतिक स्थिति का महत्त्व, पाकिस्तान के ही समर्थन से खड़े हुए संगठनों के विरुद्ध होना जैसे अफगानिस्तान में तालिबान और फिर अमरीका के खिलाफ अप्रत्यक्ष तालिबान का साथ देना, इन कारणों से उसे कमतर नहीं आंका जा सकता है। चिंताजनक मुद्दे तेजी से बढ़ रहे हैं। उसकी अर्थव्यवस्था लगभग ढहने के कगार पर है और इसके पटरी पर लौटने के लिए संसाधनों की कमी है।
सबसे बढ़कर उसे यह नहीं मालूम कि पड़ोसी देशों, विशेषकर भारत के साथ कैसे व्यवहार किया जाए। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक बुनियादी नियम है – किसी भी देश को अपूर्ण मुद्दों पर दोस्ती व वार्ता से प्रतिफल की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। भारत के खिलाफ दुश्मनी कायम रखना पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा अभिशाप है।
अगर पाकिस्तान स्थिर है तो दुनिया खुश होगी, खासकर भारत। आंतरिक स्थिरता उसके अपने ही लोगों को सबसे बड़ी राहत देगी। पाकिस्तान में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। ज्यादा आबादी संसाधनों पर अत्यधिक दबाव डाल रही है। आर्थिक संकट, बेरोजगारी, भूख और गरीबी इसी के नतीजे के रूप में सामने हैं। यह कल्पना नहीं, सच्चाई है कि पाकिस्तान ने नागरिक सेना और उसके सहयोगी अलकायदा, जिसे 9/11 के लिए जिम्मेदार माना जाता है, से लडऩे के लिए अमरीका से अरबों डॉलर लिए और पाकिस्तान ने ही अफगानिस्तान में सत्ता में आने में तालिबान की मदद की।
अब वही पाकिस्तान, अफगानिस्तान में तालिबान के सामने खुद को असहाय पा रहा है और बहाने कर रहा है कि पाकिस्तान में आतंकी हमले रोकने में तालिबान विफल क्यों है। यह विडंबना है और विचित्र भी कि वह उसी तर्ज पर बहस कर रहा है, जैसे अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने से पहले अफगानिस्तान में अमरीकी समर्थित शासन की निंदा करता था।
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अगर यह बात है तो क्यों पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान, जिसने पाकिस्तानी धरती पर कई हमले किए और कई सुरक्षाकर्मियों को मार डाला, पर अंकुश के लिए तालिबान के साथ अच्छे रिश्तों पर उसकी नजर है। इन तोड़े-मरोड़े गए तर्कों से परिदृश्य नहीं बदलेगा। पाकिस्तान की सुरक्षा के संरक्षक अपने ही लोगों से झूठ बोलना जारी रखेंगे तो स्थिरता दूर की कौड़ी ही रहेगी। अनिष्ट संकेत है कि पाकिस्तान आत्म-विनाश की ओर अग्रसर है और दुनिया चिंतित है।
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