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हमारा सांस्कृतिक पतन

नारी का घूंघट में छुपा सौंदर्य अतुलनीय है, रिश्तों में मर्यादा बनाए रखना कोई भारतीय संस्कृति से सीखे।

Sep 16, 2018 / 04:35 pm

विकास गुप्ता

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नारी का घूंघट में छुपा सौंदर्य अतुलनीय है, रिश्तों में मर्यादा बनाए रखना कोई भारतीय संस्कृति से सीखे।

भारतीय संस्कृति की विश्व में अलग पहचान है। विश्व में गुरु का स्थान था, पाश्चात्य देश हमारे देश की संस्कृति को अपनाने को आतुर रहते थे। हमारा पहनावा, मान-मर्यादा शालीनता उनके लिए आश्चर्य का विषय रहा है। नारी का घूंघट में छुपा सौंदर्य अतुलनीय है, रिश्तों में मर्यादा बनाए रखना कोई भारतीय संस्कृति से सीखे।

लेकिन आज स्थितियों में बेहद परिवर्तन आ चुका है। इसका कारण एक ही है और वह है हमारा सांस्कृतिक पतन। वर्तमान समय में अनुशासन-हीनता उद्दण्डता व अराजकता का माहौल है। उसके लिए किसी हद तक टीवी चैनल्स पर प्रसारित किए जाने वाले रियलिटी शो, विभिन्न धारावाहिक जिम्मेदार हैं। इनमें इतने घटिया स्तर के शब्दों व द्विअर्थी संवादों का प्रयोग

होता है कि सुनकर हैरत होती है कि किस प्रकार इनका प्रसारण सार्वजनिक रूप से किया जा रहा है, आखिर निर्माता दिखाना क्या चाहते हैं! अब 24 घंटे टी.वी. पर दिल-दिमाग को भ्रमित कर देने वाली सामग्री उपलब्ध रहती है! विभिन्न धारावाहिकों का प्रसारण चार-चार बार दोहराया जाता है! इन धारावाहिको में देवरानी-जेठानी, सास-ननद,

सास-बहू, ननद-भाभी के रिश्तों को इस तरह प्रस्तुत किया जाता है, मानो ये पारिवारिक रिश्ते नहीं, ये दुश्मनों के रिश्ते हों। ये हमारी भारतीय संस्कृति से कहीं मेल नहीं खाते। उनका हमारे जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। हमारे परिवार की मर्यादाओं, नैतिक मूल्यों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। नैतिक शिक्षा, संस्कार व चारित्रिक शिक्षा का ऐसा कोई सम्मिश्रण इनमें नहीं होता कि इनमें कुछ सीखा जा सका। जो तड़क-भड़क, रहन-सहन दिखाया जाता है वो भारतीय परिवेश से मेल नहीं खाता है।

किसी भी तरह का कोई सकारात्मक प्रभाव इन धारावाहिकों का नहीं होता कि जो भटकती युवा पीढ़ी, दिशाहीन होते समाज को सही मार्गदर्शन दे सके। हमारे जीवन मूल्यों के कोई मायने नहीं रह गए हैं। सूचना व प्रसारण मंत्रालय को चाहिए कि इन धारावाहिकों को सेंसर करे। अर्थहीन धारावाहिकों का लम्बे समय तक प्रसारण अनुचित है।

– लता अग्रवाल

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