चर्चित मुद्दा: हाल ही अमरीका ने कहा है कि भारत के डेयरी आयात (इम्पोर्ट) नीति से उसे भारी नुकसान
भारत के डेयरी आयात प्रमाणन मानक केवल नियामक औपचारिकताएं नहीं हैं, बल्कि ये सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और नैतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं। इनमें ढील देना न केवल लाखों किसानों की आजीविका बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी दुष्प्रभाव डालेगा।
भारत ने अपने डेयरी आयात प्रमाणन मानकों पर सख्त रुख अपनाते हुए अमरीका को स्पष्ट संदेश दिया है कि ‘ब्लड मील’ (मांसाहारी चारे) खाने वाले जानवरों के दूध से बने किसी भी उत्पाद को आयात की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह निर्णय भारतीय समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, जिन पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि ये मानक केवल एक नियामक प्रक्रिया नहीं हैं, बल्कि भारतीय जनता, किसानों और अर्थव्यवस्था के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।मार्च 2023 को पशुपालन और डेयरी विभाग ने दूध और दूध उत्पादों के आयात के लिए एकीकृत पशु चिकित्सा स्वास्थ्य प्रमाणपत्र प्रकाशित किया। इस प्रमाणपत्र का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आयात किए गए उत्पाद निर्धारित माइक्रोबायोलॉजिकल आवश्यकताओं का पालन करते हों और उनमें दवाओं, एंटीबायोटिक्स, कीटनाशकों या भारी धातु के अवशेष न हों। इसके तहत अनिवार्य है कि आयातित डेयरी उत्पाद बनाने वाले जानवरों को मांस या हड्डी आधारित चारा न खिलाया गया हो।
अमरीका ने इन नियमों को अपने डेयरी उत्पाद निर्यातकों के लिए बाधा करार दिया है। उन्होंने भारत पर डब्ल्यूटीओ के राष्ट्रीय उपचार सिद्धांतों के उल्लंघन का आरोप लगाया और प्रमाणन में ‘नेवर बीन फेड’ (ऐसे जानवर जिसे कभी भी ब्लड मील यानी मांस, खून या हड्डी आदि से बना चारा ना खिलाया गया हो) जैसे शब्दों पर आपत्ति जताई। अमरीका का दावा है कि यह शर्त भारतीय घरेलू उत्पादन नियमों से अलग है, जो उनके निर्यातकों के लिए अनुचित है। इससे काफी समस्या हो सकती है। ‘ब्लड मील’ प्रोटीन और पोषक तत्त्वों से भरपूर होता है, जो जानवरों की वृद्धि और उत्पादन को बढ़ाने का काम करता है।
भारत ने इन आपत्तियों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि ‘नेवर बीन फेड’ जैसे मानक, न केवल भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करते हैं, बल्कि इसके विरोध का वैज्ञानिक आधार भी महत्त्वपूर्ण हैं। भारतीय परंपरा में अहिंसा और शाकाहार का पालन किया जाता है और ऐसे किसी भी उत्पाद को स्वीकार करना, जो इन मानकों का उल्लंघन करता हो, भारतीय सांस्कृतिक संप्रभुता और धार्मिक संवेदनाओं का उल्लंघन होगा। वर्तमान डेयरी आयात प्रमाणन मानकों का उद्देश्य केवल सांस्कृतिक परंपराओं की रक्षा करना नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी आवश्यक है। कई बड़े अनुसंधानों से यह सिद्ध हुआ है कि मांस या हड्डी से बना चारा खाना जानवरों के साथ उनके दूध उपभोक्ताओं के लिए भी घातक है। इससे कई गंभीर बीमारियों की आशंका भी बढ़ती है। भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, अपने पशुधन और जनता के स्वास्थ्य को ऐसे खतरों से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। यह एहतियाती कदम भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य और पशुधन सुरक्षा की प्राथमिकताओं को भी दर्शाता है।
भारत का डेयरी उद्योग मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसानों पर आधारित है। लगभग ७ करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवार अपनी आजीविका के लिए डेयरी उद्योग पर निर्भर हैं। प्रमाणन मानकों में ढील देने से सस्ते विदेशी डेयरी उत्पादों का आयात बढ़ सकता है, जो घरेलू उत्पादकों के लिए अनुचित प्रतिस्पर्धा पैदा करेगा। इसके अलावा, अगर विदेशी उत्पाद नैतिक और स्वच्छता मानकों का पालन नहीं करते हैं, तो वे भारतीय उपभोक्ताओं के विश्वास को कमजोर कर सकते हैं। ऐसे में, इन मानकों को बनाए रखना यह सुनिश्चित करता है कि घरेलू बाजार में सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद उपलब्ध हों।
‘ब्लड मील’ यानी मांसाहारी चारा आधारित प्रतिबंध पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी काफी महत्त्वपूर्ण हैं। मांस और हड्डी आधारित चारे के उत्पादन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वनों की कटाई और जल प्रदूषण जैसी समस्याएं होती हैं। भारत के सख्त प्रमाणन मानक स्थायी डेयरी उत्पादन को बढ़ावा देते हैं, जो जलवायु परिवर्तन से लडऩे के वैश्विक प्रयासों के साथ मेल खाते हैं।
एक बात और भी खास है। भारतीय उपभोक्ता अब अधिक जागरूक हो चुके हैं और ऐसे उत्पादों की मांग करते हैं, जो उनकी नैतिकता और सुरक्षा की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हों। कमजोर मानकों वाले आयातित उत्पादों के कारण खाद्य सुरक्षा घटनाएं हो सकती हैं, जो उपभोक्ता विश्वास को नुकसान पहुंचाएंगी। इस स्थिति से बचने के लिए सख्त मानकों का पालन करना आवश्यक है।
समझने वाली बात यह है कि भारत के डेयरी आयात प्रमाणन मानक केवल नियामक औपचारिकताएं नहीं हैं, बल्कि ये सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और नैतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं। इन मानकों में कोई ढील देना न केवल लाखों किसानों की आजीविका को खतरे में डाल सकता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और घरेलू अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
भारत को डब्ल्यूटीओ में इन मानकों की आवश्यकता और औचित्य को मजबूती से प्रस्तुत करना चाहिए। ये मानक न तो भेदभावपूर्ण हैं और न ही मनमाने, बल्कि घरेलू हितों की रक्षा के लिए आवश्यक उपायों के तौर पर भी इसे देखा जाना चाहिए। व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए भारत को अपनी सुरक्षा, सांस्कृतिक मान्यताओं और मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए। यह नीति केवल व्यापार का सवाल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय मूल्य, सिद्धांत और आत्मसम्मान का प्रतीक है।