रोजगार की तलाश में गृह राज्य छोड़कर दूसरे राज्यों में पलायन करने की कामगारों की प्रवृत्ति कम होने को सुखद संकेत ही कहा जाना चाहिए। यह सब इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि लोगों को रोजगार अब अपने ही प्रदेश में मिलने लगा है। प्रधानमंत्री आर्थिक सलाहकार परिषद की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले 12 वर्षों में रोजगार के लिए मूल राज्य छोड़कर दूसरे प्रदेशों में जाने के सिलसिले में 12 फीसदी की गिरावट हुई है। इस सुनहरी तस्वीर के बावजूद चिंताजनक पहलू यह भी है कि उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे बड़े राज्यों में पलायन की इस समस्या पर काबू नहीं पाया जा सका है। पलायन आमतौर पर ग्रामीण से शहरी इलाकों की तरफ होता आया है। लोग अपने राज्य से बाहर का रुख बेहतर मिलने की उम्मीद में करते हैं। यह कहा जा सकता है कि पलायन रुकने की वजह शिक्षा, स्वास्थ्य व बुनियादी ढांचे में लगातार होते सुधार को माना जाना चाहिए। लेकिन जहां से श्रमशक्ति का पलायन काबू में नहीं हो पा रहा है, वहां स्थानीय स्तर पर लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ-साथ वहां मूलभूत सुविधाएं जुटाने की दिशा में अभी काफी-कुछ करना बाकी है।
बिहार और यूपी जैसे राज्यों में तो हर चुनाव में पलायन की इस समस्या को बड़ा मुद्दा बनाया जाता रहा है। लेकिन सत्ता में आने के बाद राजनेता इस मुद्दे की सुध तक नहीं लेते। बड़ी चिंता इस बात की भी है कि जहां सरकारें स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने का दावा करती हैं, वहांं श्रमिकों को मेहनताना इतना नहीं मिल पाता कि वे परिवार का गुजारा कर सकें। ऐसे में उन राज्यों में पलायन करना उनकी मजबूरी हो जाती है जहां श्रमशक्ति की मांग तो हो ही, पर्याप्त मेहनताना भी मिल रहा हो। दूसरी वजह यह भी है कि छोटे उद्योग-धंधों का राज्यों को अपने यहां जिस गति से विकास करना चाहिए, उस गति से काम नहीं हो रहा। इसके लिए सरकारों की नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं है। हमारे देश में घरेलू पलायन की गति धीमी होना संतोष की बात है, लेकिन पलायन के लिए मजबूर करने वालों की सुध नहीं लेना ज्यादा गंभीर है।
हर चुनाव के मौके पर राजनेताओं और राजनीतिक दलों को प्रवासी वोटर्स याद आते हैं। इनका वोट डलवाने के लिए हवाई जहाज तक का बंदोबस्त करने की खबरें आती रही हैं। लेकिन जब वे अपने ही प्रदेश में रोजगार के अवसरों की बात करते हैं तो कोई परवाह नहीं करता। यह समस्या सिर्फ कामगारों तक ही हो, ऐसा नहीं है। शिक्षा की समुचित प्रबंध नहीं होने के कारण बड़ी संख्या में युवा भी अपना प्रदेश छोडऩे को मजबूर होते हैं। सरकारों को इस समस्या के समाधान के ठोस बंदोबस्त करने ही होंगे।
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