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Opinion : ‘नीट एंड क्लीन’ परीक्षा, ताकि ना टूटे युवा मनोबल

सरकार ने देशभर में होने वाली प्रवेश परीक्षाओं को ‘नीट एंड क्लीन’ करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में निहित दोषों को दूर करने के लिए लाई गई राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) की व्यवस्था खुद ही आरोपों के घेरे में आ गई थी। राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) […]

जयपुरDec 18, 2024 / 10:05 pm

ANUJ SHARMA


सरकार ने देशभर में होने वाली प्रवेश परीक्षाओं को ‘नीट एंड क्लीन’ करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। परीक्षा की पुरानी प्रक्रिया में निहित दोषों को दूर करने के लिए लाई गई राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) की व्यवस्था खुद ही आरोपों के घेरे में आ गई थी। राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा-स्नातक (नीट-यूजी) और राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में गड़बडिय़ों के बाद परीक्षाओं की शुचिता बरकरार रखने के लिए व्यवस्था में बड़े बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही थी। राधाकृष्णन समिति की सिफारिशों के आधार पर एनटीए के परीक्षा कराने के तरीके में कई बदलाव दिखेंगे। एनटीए से भर्ती परीक्षाओं का जिम्मा वापस ले लिया है। अब वह सिर्फ एंट्रेस परीक्षा ही कराएगी। समिति की सिफारिशों के मुताबिक एनटीए सरकारी शिक्षण संस्थानों में चरणबद्ध तरीके से स्टैंडर्ड टेस्टिंग सेंटर बनाएगी। इसे वार-फुटिंग थीम का नाम दिया गया है, ताकि परीक्षा की सुरक्षा, पारदर्शिता व जिम्मेदारी में किसी प्रकार का समझौता न हो। प्रश्न-पत्रों, सेंटरों की सुरक्षा के लिए पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों की तैनाती होगी।
कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं के सेंटर चिह्नित होने के बाद एनआइसी और एनटीए की टीम दौरा करके जांच करेंगी। इसके साथ ही एनटीए डीजी अब एजेंसी का सीईओ होगा। यह पद केंद्र सरकार के अतिरिक्त सचिव का होगा। परीक्षाओं की जिम्मेदारी के लिए निदेशक स्तर पर 10 नए पद सृजित किए जाएंगे। इससे एनटीए के ढांचागत सुविधा न होने की समस्या खत्म होगी। इन परीक्षाओं से देश के लाखों युवाओं का भविष्य जुड़ा होता है। ऐसे में तकनीक का और अधिक इस्तेमाल कर परीक्षा को पारदर्शी बनाकर बहुत सारी समस्याओं को दूर किया जा सकता है। राज्यों की भागीदारी बढ़ाकर और परीक्षा की प्रक्रिया में निरंतर सुधार करके परीक्षा की विश्वसनीयता को बढ़ाने की जरूरत है। परीक्षा की विषय वस्तु और फॉर्मेट की नियमित रूप से समीक्षा भी की जानी चाहिए और उसे चिकित्सा शिक्षा की उभरती जरूरतों को शामिल करते हुए अपडेट करना चाहिए ताकि कोई भ्रम न रहे और ग्रेस माक्र्स देने की नौबत न आए। हम ऐसा कर सके, तो न केवल प्रतिभावान छात्रों के साथ न्याय कर पाएंगे, बल्कि परीक्षाओं में कदाचार को भी रोक पाने में सफल होंगे।
यह सच है कि कोई भी परीक्षा रद्द होने से उन युवाओं का मनोबल टूटता है, जो वर्षों से इसकी तैयारी कर रहे होते हैं। ऐसे में, परीक्षा नियामकों के लिए जरूरी है कि वे प्रक्रियाओं की कमियां पहचानें और परीक्षाओं की ऐसी स्पष्ट और ठोस योजना बनाएं कि भविष्य में किसी भी युवा का मनोबल न टूटे।

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