स्वच्छ हवा अभियान की पहल करनी होगी ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। साथ ही घरों में हवा की अच्छी गुणवत्ता के लिए महक रहित उत्पादों के उपभोग पर जोर देना होगा।
फेफड़ों एवं संपूर्ण स्वास्थ्य की सलामती के लिए एंटीऑक्सीडेंट युक्त भोजन एवं उसे पकाने की उपयुक्त विधि के लिए लोगों को शिक्षित करना होगा। शिविरों का आयोजन कर परंपरागत भारतीय विधाओं जैसे योग, प्राणायाम व श्वसन संबंधित व्यायामों की महत्ता लोगों तक पहुंचा कर उनका प्रशिक्षण देना होगा। मुफ्त लंग फंक्शन टेस्टिंग बूथ स्थापित करने होंगे,जहां हर कोई अपने फेफड़ों की सेहत का आकलन कर समय पर उपयुक्त परामर्श ले सके।
डॉ. पंकज जैन
एसोसिएट प्रोफेसर मेडिकल कॉलेज, कोटा
खुली हवा में स्वच्छंद सांस वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक दिवास्वप्न सा प्रतीत होता जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण व औद्योगिकीकरण ने हवा में प्रदूषण नाम के जहर को घोल दिया है। ज्यादातर व्यस्त शहरों में हवा सांस लेने लायक नहीं रह गई है जिसके चलते शरीर में अगर सबसे ज्यादा नुकसान किसी को पहुंचा है तो वह हमारे फेफड़ों को। द इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवोल्यूएशन के एक शोध के अनुसार वर्ष 2019 में फेफड़े की पुरानी बीमारियों से 4 मिलियन मौतें हुईं जिसके चलते यह विश्व में होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण साबित हुआ।
जनसाधारण में लंग स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता एवं जागरूकता की कमी भी समस्या का कारण है। फेफड़ों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाले कुछ कारणों में वायु प्रदूषण, धूम्रपान, धूम्रपान का सेकंड हैंड प्रभाव, एस्बेस्टस, रेडान गैस, कैडमियम, मरकरी, बेरिलियम, आर्सेनिक प्रमुखता से सम्मिलित हैं। कुछ श्वास संबंधी बीमारियों में आनुवंशिक व जेनेटिक कारण तथा संक्रामक रोग भी अहम भूमिका निभाते है। इस तरह के संभावित कारकों के चलते मानव श्वसन तंत्र में सूक्ष्म कण जमा होकर श्वसन नली व फेफड़ों में सूजन पैदा कर देते हैं एवं फेफड़े की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। फलस्वरूप फेफड़ों में हवा का आदान-प्रदान बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है और कई बीमारियां जैसे सीओपीडी, फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा, एलर्जी, श्वसन संबंधी संक्रमण, लंग कॉलेप्स, फेफड़ों में पानी का भर जाना जैसे मामले सामने आते हैं। फेफड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखने की शुरुआत धूम्रपान छोडऩे, नियमित व्यायाम करने और एंटी आक्सीडेंट युक्त संतुलित आहार लेने जैसी गुणवत्ता भरी जीवनशैली को अपनाने से हो सकती है। फेफड़ो के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना अतिआवश्यक है ताकि लोगों को स्थिति बिगडऩे से पहले ही आवश्यक उपचार मिल सके, क्योंकि फेफड़ों से संबंधित बीमारियां जीवन की गुणवत्ता पर बड़ा प्रभाव डाल सकती हंै। स्वस्थ फेफड़ों के बिना व्यायाम करना, सीढिय़ां चढऩा और यहां तक की बात करना जैसी रोजमर्रा कि गतिविधियां भी प्रभावित हो जाती हैं। ऐसे में फेफड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखना आज की महती आवश्यकता है।
हमें शैक्षणिक गतिविधियों, कार्यशालाओं व वेबिनार जैसे जागरूकता अभियानों द्वारा जनता को फेफड़ों की बीमारियों के बारे में सचेत कर रोकथाम के तरीकों का प्रसार करना होगा। समाज में सभी को धूम्रपान निषेध का संकल्प लेने व जो कोई भी इसे छोडऩा चाहता है, उसको प्रोत्साहित करना होगा। स्वच्छ हवा अभियान की पहल करनी होगी ताकि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके। साथ ही घरों में हवा की अच्छी गुणवत्ता के लिए महक रहित उत्पादों के उपभोग पर जोर देना होगा।
फेफड़ों एवं संपूर्ण स्वास्थ्य की सलामती के लिए एंटीऑक्सीडेंट युक्त भोजन एवं उसे पकाने की उपयुक्त विधि के लिए लोगों को शिक्षित करना होगा। शिविरों का आयोजन कर परंपरागत भारतीय विधाओं जैसे योग, प्राणायाम व श्वसन संबंधित व्यायामों की महत्ता लोगों तक पहुंचा कर उनका प्रशिक्षण देना होगा। मुफ्त लंग फंक्शन टेस्टिंग बूथ स्थापित करने होंगे,जहां हर कोई अपने फेफड़ों की सेहत का आकलन कर समय पर उपयुक्त परामर्श ले सके। सोशल मीडिया के जरिए लंग स्वास्थ्य संबंधी तथ्यों व सुझावों को प्रचारित किया जाए। सघन वृक्षारोपण अभियान चलाकर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाए। साथ ही लोगों को वाहनो के कम उपयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए ताकि हवा की गुणवत्ता को सुधारा जा सके। अगर हम सभी सप्ताह में एक दिन स्वयं ही वाहन मुक्त दिवस घोषित कर घरेलू आवागमन के लिए साइकिल का उपयोग करे, तो यह स्वच्छ वातावरण के साथ ही स्वयं के स्वास्थ्य की दिशा में महत्त्वपूर्ण सकारात्मक पहल साबित होगी।
Hindi News / Prime / Opinion / योग को आदत बनाएं, फेफड़ों को कमजोर होने से बचाएं