जैन ग्रंथों के अनुसार जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर (आखिरी) महावीर स्वामी का जन्म वैशाली (बिहार) के कुंडलपुर में, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के निर्वाण प्राप्त करने के 188 साल बाद हुआ था। इसके बाद देवताओं के राजा इंद्र ने सुमेरू पर्वत पर ले जाकर क्षीर सागर के जल से अभिषेक किया, फिर नगर में लेकर आए। बालक का नाम वीर और श्रीवर्धमान रखा और उत्सव मनाया। 72 वर्ष की अवस्था में इन्होंने पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया। इस दिन भी जैन समाज उत्सव मनाता है। घर-घर दीपक जलाकर दीपावली मनाताहै।
इसी के उपलक्ष्य में महावीर जन्म कल्याणक (Mahavir Birth Anniversary) मनाया जाता है। इस समय ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक या तो चक्रवर्ती राजा बनेगा या जगद्गुरु। महावीर जन्म कल्याणक के दिन जैन मंदिरों में विशेष रूप से पूजा की जाती है और समुदाय की ओर से अहिंसा रैली निकाली जाती है।
भगवान महावीर का वह विचार जो आर्थिक विषमता मिटा सकता है वैसे तो भगवान महावीर ने कई ऐसे संदेश दुनिया को दिए जिसमें पूरी मानवता की भलाई और कल्याण का मार्ग छिपा है। लेकिन महावीर स्वामी का एक विचार ऐसा है जो आज के भौतिकवादी युग में अधिक प्रासंगिक हो गया है। इसका कुछ हिस्सा भी अपनाकर दुनिया को खूबसूरत बनाया जा सकता है।
भगवान महावीर ने पंच महाव्रत के माध्यम से अपरिग्रह का संदेश दिया। उनका कहना था कि जो व्यक्ति खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है या कराता है या संग्रह करने में सम्मति देता है, उसके दुखों का अंत नहीं हो सकता है। यह महावीर स्वामी का अपरिग्रह आवश्यकता से ज्यादा रखने की सहमति नहीं देता। यह कम साधनों पर अधिकतम संतुष्टि पर बल देता है।
जब एक तरफ लोगों के पास अथाह पैसा है और दूसरी तरफ अभाव.. ऐसे समय में आज महावीर स्वामी का अपरिग्रह और भी प्रासंगिक है। जिन लोगों के पास आवश्यकता से अत्यधिक संसाधन हैं वो इनमें से कुछ जरूरतमंदों में बांट दें तो दुनिया में असमानता की खाई को भरा जा सकता है। यह सच्चे मायनों में विषमता दूर करने और समाजवाद की राह दिखाता है।
महावीर स्वामी के अन्य विचार
इनके विचारों में सर्वोदय की भी झलक मिलती है। भगवान महावीर मन में भी किसी के प्रति बुरी भावना को भी हिंसा मानते थे। इसके अलावा उन्होंने जीवन का लक्ष्य समता को पाना बताया। यदि लोग भगवान महावीर के इस संदेश को ही मन से मानने लगे तो हमारी कई बुराइयां अपने आप खत्म हो जाएंगी। भगवान महावीर ने कहा था संसार के सभी छोटे बड़े जीव हमारी ही तरह हैं, हमारी ही आत्मा का स्वरूप हैं। लोग इसका पालन करें तो भेदभाव और वैमनस्य समाज से खत्म हो जाए।
इसके अनुसार मनुष्य दुनिया के संसाधनों का न्यासी (ट्रस्टी) है, उसे इसे अगली पीढ़ी और समाज को लौटाना है। इसके लिए हर व्यक्ति को उतने ही संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए, जितना उसके जीवनयापन के लिए जरूरी है। बाकी का इस्तेमाल समाज के लिए ही करना चाहिए।
हिंदी के प्रसिद्ध निबंधकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी अपने लोभ और प्रीति निबंध में जब ये कहा कि ‘मोटे आदमियों जरा सा दुबले हो जाते तो न जाने कितनी ठटरियों पर मांस चढ़ जाता’ कहा तो उसकी भी ध्वनि यही थी कि व्यक्ति को संसाधनों का जरूरत के हिसाब से भोग करने के बाद शेष समाज को लौटा दिया जाना चाहिए।