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तीसरा पड़ाव : भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा

पांच वर्ष पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मध्यप्रदेश में पार्टी जीती हुई सत्ता खोने के बाद कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में जीत चुकी है। अब पुन: तीनों हिंदी भाषी राज्यों में तैयारी कर रही है।

Oct 03, 2023 / 10:57 am

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी
पांच वर्ष पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। मध्यप्रदेश में पार्टी जीती हुई सत्ता खोने के बाद कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में जीत चुकी है। अब पुन: तीनों हिंदी भाषी राज्यों में तैयारी कर रही है। जोर दोनों प्रमुख दल लगा रहे हैं। खुलकर लोकलुभावन घोषणाएं की जा रही हैं। दोनों हाथों से धन लुटाया जा रहा है। तीनों राज्य सरकारों ने अपने कार्यकालों के अंतिम वर्ष में सत्ताविरोधी लहरों का आवेग कम करने के लिए संसाधन झोंक दिए हैं।

राजस्थान और मध्यप्रदेश के बाद मेरी पहले चरण की जन-गण-मन यात्रा का तीसरा पड़ाव छत्तीसगढ़ था। पंद्रह साल भारतीय जनता पार्टी के शासन के बाद 2018 में कांग्रेस के भूपेश बघेल ने सत्ता संभाली। उन्होंने पहला काम चुनाव के समय की गई घोषणाओं को पूरा करने का किया। धान का समर्थन मूल्य देश में सबसे ज्यादा करके और किसानों के कर्ज माफ करके उन्होंने अगले पांच साल के लिए मजबूत आधार तैयार कर लिया। लेकिन जमीन पर सब कुछ सही चल रहा है या नहीं, इस पर शायद नियंत्रण नहीं रह पाया।

कांग्रेस में विपरीत हालात हैं। नेतृत्व के नाम पर राहुल-प्रियंका हैं। सरकार से कोई नाराज नहीं है। विधायकों के भ्रष्टाचार से अधिकांश क्षेत्र त्रस्त हैं। कांग्रेस को पसीना छूट रहा है। भ्रष्टों को टिकट दिया तो निश्चित हारेंगे, नहीं दिया तो ये हराएंगे। प्रत्येक सीट पर दर्जनों दावेदार खड़े हैं। इस बार बागी समृद्ध भी हैं और भुजबल से भी तैयार हैं। एक दो स्थानों पर महिलाएं भी टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय मैदान में उतरने को तैयार नजर आईं। पिछले चुनाव के बाद उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को ढाई साल मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था। इसके पूरा नहीं करने से उनके समर्थक भी भीतर ही भीतर नाराज हैं। इसका भी परिणामों पर प्रभाव पड़ेगा।

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छत्तीसगढ़ के दौरे में तो खींचतान अलग तरह की नजर आई। दोनों ही दल सत्ता में आने के लिए जोर लगा रहे हैं। कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने संपूर्ण केन्द्र सरकार खड़ी है। भाजपा के खेमे में सर्वाधिक सक्रियता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी- अमित शाह की है। एक दिन तो तेरह केंद्रीय मंत्री एक साथ आए थे। इसका एक ही कारण सामने आया- स्थानीय नेतृत्व का अभाव। कुछ सांसद तो आज भी मोदी- मुग्ध ही हैं। कुछ विधायक अमित शाह के नाम पर लटके हैं। भाजपा की आशा की किरण है- बूथ स्तर के कार्यकर्ता।

कुछ अन्य दल कांग्रेस के लिए चुनौती बनने वाले हैं। एक नई बात यह भी नजर आई कि अब कार्यकर्ता पार्टी की जगह खुद को बड़ा मानने लगा है।

टिकट नहीं मिला तो भी मैदान में उतरने को तैयार है। ऐसे मामलों में सर्वाधिक नुकसान तो कांग्रेस को ही होगा। मैदानी क्षेत्र में भाजपा का समझौता हमर राज पार्टी के अरविंद नेताम से हो चुका है। बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के अलावा आम आदमी पार्टी (आप) बड़ा खतरा बन सकती है। आप, अभी घोषित नामों में दस की जीत का दावा कर रही है। क्या होगा यदि इसने भी सभी 90 सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए? पंजाब के अनुभव को यहां भी आजमा सकती है। कहने को तो ओबीसी भी राज्य में बहुलता लिए हुए हैं। मुख्यमंत्री कुर्मी (ओबीसी में सबसे छोटा समुदाय) के हैं। साहू और यादव बड़े हैं। तीनों साथ नहीं हैं।

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भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है। हर विभाग का अपना माफिया तंत्र तैयार हो गया है। रेत से लेकर पत्थर-कोयला- लोहा- गोठान आदि क्षेत्र के माफिया तो अजेय हो चुके हैं। विभागों में कार्य के लिए व्यवस्थित भ्रष्ट तंत्र बना हुआ है। सरकार जिस जोर- शोर से समर्थन मूल्य-ऋण माफी- गुरुवा- गोठान जैसी योजनाएं लेकर आई थी, आज लगभग सभी प्रदर्शन मात्र पर ठहर गईं। इसमें भी जातिवाद का बड़ा आरोप सरकार के माथे लगा है। ओबीसी बहुल क्षेत्रों के किसान तीनों फसल ले रहे हैं। समर्थन मूल्य का लाभ भी सीमित रहा है। रासायनिक खाद के लिए जैविक खाद की खरीद की अनिवार्यता व वन क्षेत्र- पहाड़ी क्षेत्र में बंटाई की खेती के कारण छोटे किसानों को समर्थन मूल्य का लाभ नहीं मिल पाना भी मुद्दे बन रहे हैं। राज्य में लाभ केवल बड़े किसानों को ही अधिक मिल पाया।

पिछली बार तीन बड़े मुद्दे कांग्रेस की जीत का कारण थे- समर्थन मूल्य-ऋण माफी व ‘छत्तीसगढ़िया सबसे बढ़िया’ का नारा। किन्तु इस बार दो ही बड़े कारण नाराजगी के उभर कर आए- अवैध शराब की बिक्री (महुए की कच्ची शराब की छूट भी) तथा विधायकों-प्रशासनिक तंत्र का आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा होना। कांग्रेसी कार्यकर्ता भी एक मत हैं- इन मुद्दों पर। डेढ़ माह पूर्व कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए विधायक धर्मजीत सिंह ने तो आरोप लगाया कि कलेक्टर-एसपी तक ठेके पर कार्य करते हैं। आरोप यह भी कि बस्तर में नक्सलियों को इनके जरिए ही धन पहुंचाया जाता है। इतना ही नहीं, कोयला खनन कार्य में राजस्व वसूली को ऑनलाइन से आफलाइन कर दिया गया, ताकि मनमानी की जा सके।

समर्थन मूल्य का एक दुष्प्रभाव यह भी सामने आया कि पड़ोसी राज्य के किसान यहां आकर प्रदेश के बंजर भूमि वालों के नाम से मंडियों में धान बेचने लगे। भ्रष्टाचार का ताण्डव छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीजीपीएससी) की भर्तियों पर सर्वाधिक नजर आया। किसान पुत्र सरकारी नौकरियों में जाना चाहता है। प्रतियोगी परीक्षाएं ठप है। बस्तर-सरगुजा का धर्मांतरण चर्चा में गरम है। किसानों की संतुष्टि के बाद भी सीटें कम अवश्य होंगी। इस बात को स्वयं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव तथा वरिष्ठ कांग्रेस नेता सत्यनारायण शर्मा ने भी स्वीकार किया। तीनों का ही दावा था कि सरकार तो कांग्रेस की ही बनेगी।

भाजपा के कार्यकर्ताओं की फौज के मुकाबले के लिए कहने को तो कांग्रेस ने भी कुछ कार्यकर्ता तैयार किए हैं। किंतु ये विधायकों के भ्रष्टाचार से उपजे असंतोष को रोक पाने में नाकामयाब रहे। योजनाएं नीचे तक कितनी पहुंच पाई? महिलाओं की स्वालंबन योजनाओं का प्रभाव भी सीमित क्षेत्र में है।

इसी बीच पत्रिका के जनप्रहरी भी तैयार हो रहे हैं, जो स्वयं भी अपना नामांकन भरेंगे। पिछले चुनाव में भी तीनों राज्यों में 32 सीटें इनके पक्ष में आई थी। इस बार यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है। फिर भी संपूर्ण चित्र स्पष्ट होगा, प्रत्याशियों की घोषणा के बाद। सारा खेल इन नामों पर टिका हुआ है।

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