भारत की विदेश नीति आज के दौर में नई पहचान बना रही है। खास तौर पर ऐसे राष्ट्रों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच जिनमें आपसी तनाव और विरोधाभास की भावना ही उनकी पहचान हो गई है, भारतीय विदेश नीति आपसी तालमेल से संतुलन बनाए रखने की भूमिका में है। यह भारत की इस उभरती छवि का उदाहरण ही है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते सप्ताह शंघाई सहयोग संगठन की २२वीं शिखर वार्ता के दौरान रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से लंबी मुलाकात के दौरान साफ कहा कि युद्ध आज के दौर में व्यावहारिक नहीं है। हमें खाद्य और ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियों से मुकाबला करना चाहिए। इस शिखर वार्ता की पूर्व संध्या पर अनौपचारिक रात्रिभोज में नहीं होने के बावजूद पुतिन से मोदी का यह दो टूक संवाद खबरों में छाया रहा।
सब जानते हैं कि पिछले कुछ दशकों में भारत की अमरीका और उसके मित्र देशों के साथ नजदीकियां तेजी से बढ़ी हंै। विश्व की उभरती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि दर वाले भारत का और भारत के प्रति दूसरे देशों का यह बदला रुझान उसके रूस जैसे पुराने और भरोसेमंद मित्र देश के साथ ही, चीन व पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों के लिए चिंता विषय हो सकता है। लेकिन, एक तथ्य यह भी है कि वे देश जो अमरीका के दुश्मन देशों के रूप में माने जाते हैं, उनके साथ भी भारत लगातार तालमेल बनाने की कोशिश करता रहा है। वहीं अमरीका और उसके मित्र देशों के प्रति भी भारत की चिंता बराबर रहती है। एक-दूसरे को शक की निगाह से देख रहे आपस में बंटे देशों को जब भारत अपने साथ जोडऩे की कोशिश करता है, तो यह भी बात सामने आती है कि उसकी बहुसंरेखन विदेश नीति का अनुमोदन और समर्थन भी बढ़ता हुआ नजर आता हैं। जाहिर है, भारत को ऐसे जटिल और उलझे हुए अंतरराष्ट्रीय ढांचे व भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में एक दूसरे पर बढ़ती निर्भरता में अपनी विदेश नीति को संतुलित और संयमित दृष्टिकोण से सावधानी से गढ़ते हुए आगे बढऩा होगा।
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रपति पुतिन से करीब आधा घंटा की मुलाकात की न तो औपचारिक घोषणा हुई और न ही पत्रकारों के सवालों से इसकी आधिकारिक पुष्टि हुई। पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाकात की अटकलें भी खूब चल रही थीं। एक समाचार एजेंसी को तो पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात की खबर का खंडन तक करना पड़ा। दुनिया की अहम समाचार एजेंसियों की इस बात में खूब रुचि नजर आई कि भारत के पीएम किस-किस राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात करेंगे और किससे नहीं। यह दिलचस्पी विश्वमंच पर भारत की बढ़ती प्रासंगिकता को दर्शाता है।
सब जानते हैं कि पिछले कुछ दशकों में भारत की अमरीका और उसके मित्र देशों के साथ नजदीकियां तेजी से बढ़ी हंै। विश्व की उभरती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे ज्यादा वृद्धि दर वाले भारत का और भारत के प्रति दूसरे देशों का यह बदला रुझान उसके रूस जैसे पुराने और भरोसेमंद मित्र देश के साथ ही, चीन व पाकिस्तान जैसे शत्रु देशों के लिए चिंता विषय हो सकता है। लेकिन, एक तथ्य यह भी है कि वे देश जो अमरीका के दुश्मन देशों के रूप में माने जाते हैं, उनके साथ भी भारत लगातार तालमेल बनाने की कोशिश करता रहा है। वहीं अमरीका और उसके मित्र देशों के प्रति भी भारत की चिंता बराबर रहती है। एक-दूसरे को शक की निगाह से देख रहे आपस में बंटे देशों को जब भारत अपने साथ जोडऩे की कोशिश करता है, तो यह भी बात सामने आती है कि उसकी बहुसंरेखन विदेश नीति का अनुमोदन और समर्थन भी बढ़ता हुआ नजर आता हैं। जाहिर है, भारत को ऐसे जटिल और उलझे हुए अंतरराष्ट्रीय ढांचे व भूमंडलीकरण के परिप्रेक्ष्य में एक दूसरे पर बढ़ती निर्भरता में अपनी विदेश नीति को संतुलित और संयमित दृष्टिकोण से सावधानी से गढ़ते हुए आगे बढऩा होगा।
दिलचस्प तथ्य यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रपति पुतिन से करीब आधा घंटा की मुलाकात की न तो औपचारिक घोषणा हुई और न ही पत्रकारों के सवालों से इसकी आधिकारिक पुष्टि हुई। पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री से मुलाकात की अटकलें भी खूब चल रही थीं। एक समाचार एजेंसी को तो पीएम मोदी की चीन के राष्ट्रपति से मुलाकात की खबर का खंडन तक करना पड़ा। दुनिया की अहम समाचार एजेंसियों की इस बात में खूब रुचि नजर आई कि भारत के पीएम किस-किस राष्ट्राध्यक्ष से मुलाकात करेंगे और किससे नहीं। यह दिलचस्पी विश्वमंच पर भारत की बढ़ती प्रासंगिकता को दर्शाता है।