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आगे बढ़ता भारत : संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करने का कौशल मंत्र

पिछले 23 वर्ष के दौरान नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रत्येक योजना में आम जन की चिंता का समाधान किया है। एक प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने अपनी छवि वैश्विक तौर पर स्टेट्समैन की बनाई है। राष्ट्र की अखंडता पर आंच नहीं आने देने के अपने संकल्प के साथ वे युवाओं को उद्यम करने की राह दिखाते हैं।

जयपुरOct 14, 2024 / 02:02 pm

विकास माथुर

कुछ लोग अपने राजनीतिक जीवन में केवल पांच साल की योजना बनाते हैं। कुछ लोग केवल अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता में लगे रहते हैं। इन सबके विपरीत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में देश को ऐसा व्यक्तित्व मिला है जो अपने राजनीतिक जीवन के पहले ही क्षण से राष्ट्र चिंतन में अपने जीवन के सर्वस्व का समर्पण करते रहे हैं। पिछले एक दशक में चाहे कोई विरोधी हो या समर्थक जिस नाम को सबसे ज्यादा दोहराते रहे हैं वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है।
एक नेता के तौर पर नरेंद्र मोदी की यह यात्रा 23 साल पहले अक्टूबर में ही वर्ष 2001 में शुरू हुई, जब उन्होंने पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। इस दौरान उनके कामकाज की न केवल गुजरात बल्कि समूचे भारत में चर्चा हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के तौर पर अपने सामाजिक जीवन की पारी शुरू करने के साथ सार्वजनिक जीवन के अनछुए पहलुओं का सामना करते हुए देश के पीएम के पद तक पहुंचने की उनकी यात्रा अत्यंत प्रेरक है। कभी थका हुआ महसूस न करना, छोटे-छोटे कार्यों का महत्त्व जानकर उनमें रुचि लेना उनकी विशेषता रही है। जिस व्यक्ति को निरंतर श्रमरत रहने का अभ्यास हो वह अपने विश्राम के समय में भी राष्ट्र की चिंता में लगा रहता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार भारत के लोगों की क्षमता पर भरोसा किया है। उनका मानना है कि वास्तविक प्रगति तभी हासिल की जा सकती है जब नागरिक सक्रिय रूप से शामिल हों। इसी का परिणाम है कि आज भारत के राष्ट्रीय पटल पर कुछ योजनाओं की छवि ऐसी बन गई हैं जो मानो भारत की आत्मा को उठ खड़ा कर जागृत करने का मूल मंत्र बन गई हो। स्वच्छता और बुनियादी ढांचे, सामाजिक कल्याण और सामुदायिक भागीदारी सहित विभिन्न पहलुओं को ये योजनाएं कवर करती हैं।
राष्ट्र की अखंडता और अस्मिता पर आंच नहीं आने देने के अपने संकल्प के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी युवाओं को उद्यम करने की राह दिखाते हैं। पिछले एक दशक से भारत सरकार की विदेश नीति से हर कोई हतप्रभ है। कोविड के दिनों को याद करें तो हम तेजी से रूप बदलते एक अज्ञात और अदृश्य दुश्मन का मुकाबला कर रहे थे। उस दौरान दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान से देश और भी मजबूत होकर उभरा। हम लोगों में से कुछ ऐसे हैं, जो दैनिक जरूरतों के लिए भी विदेशी उत्पादों पर अधिक भरोसा करते हैं, लेकिन जब कोविड की वैक्सीन बनी तो देशवासियों ने मेड इन इंडिया वैक्सीन पर पूरा भरोसा किया। मेक इन इंडिया’ का प्रभाव दर्शाता है कि भारत चाहे तो क्या नही कर सकता है। वर्ष 2014 में हमारे पास मोबाइल के 2 मैन्युफैक्चरिंग प्लांट थे और आज यह संख्या बढ़कर 200 से अधिक हो गई है। हमारा मोबाइल निर्यात 1,556 करोड़ से बढ़कर 1.2 लाख करोड़ हो गया है। इतना ही नहीं, हम तैयार इस्पात के शुद्ध निर्यातक बन गए हैं, रिन्यूएबल एनर्जी में, हम वैश्विक स्तर पर चौथे सबसे बड़े उत्पादक हैं, जिसकी क्षमता में मात्र एक दशक में 400 फीसदी की वृद्धि हुई है। हमारा इलेक्ट्रिक व्हीकल उद्योग, जो 2014 में व्यावहारिक रूप से अस्तित्व में नहीं था, अब 3 बिलियन डॉलर का है। रक्षा उत्पादन निर्यात 1,000 करोड़ से बढ़कर 21,000 करोड़ हो गया है, जो 85 से अधिक देशों तक पहुंच गया है।
पिछले एक दशक के कार्यकाल में मोदी सरकार ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाओं में बड़े बदलाव किए हैं। यही कारण है कि देश में हजारों करोड़ के निवेश संभव हुए हैं और लाखों नौकरियां पैदा हुई हैं। पीएम किसान सम्मान निधि हो या फिर स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़े किसानों के हित व स्वच्छता की तरफ सरकार की अनुकरणीय पहल की ओर संकेत करते हैं। वर्ष 2014 में घरेलू गैस सिलेंडर के उपभोक्ता 14.52 करोड़ थे, जो 2024 में 32.42 करोड़ हो गई, जिसमें 10.33 करोड़ प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत जुड़े हैं। वहीं 2019 तक 3 करोड़ 23 लाख परिवार नल कनेक्शन से जुड़े हुए थे, जबकि अब जल जीवन मिशन के पश्चात ये आंकड़ा 15 करोड़ से अधिक का हो गया है। सही मायने में देश के पास ऐसा नेतृत्व है जिसे पता है कि संसाधनों का उपयोग किस तरह से और कब करना है। ऐसा उपयोग जिसमें देश और देश की युवा शक्ति को अधिकतम फायदा सके।
— घनश्याम तिवाड़ी
(राज्यसभा सदस्य )

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