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विकास के नाम पर नदियों को कर रहे मैला, कैसे रोकेंगे रूठने से

सामयिक: हर चीज नदी में प्रवाहित करने की आदत पर काबू पाना ही होगा

जयपुरOct 23, 2024 / 11:01 pm

Nitin Kumar

अतुल कनक
लेखक और साहित्यकार
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भारतीय परंपरा में जल का बहुत महत्त्व है। हमारे पूर्वज जानते थे कि जल जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य जल के महत्त्व को समझ सके, इसीलिए हर पूजा में जल को अनिवार्य माना गया। जिन विष्णु को सृष्टि का पालनकर्ता कहा जाता है, उन्होंने अपना निवास नारा यानी जल में बनाया और इसीलिए उनका एक नाम नारायण हुआ। पानी में सृष्टि के पालनकर्ता के निवास का एक सांकेतिक अर्थ यह भी है कि जल के बिना सृष्टि की निरंतरता दुरूह हो जाती है। दुनिया के दो तिहाई हिस्से में पानी है, पर दुनिया भर में व्याप्त जल में स्वच्छ जल की मात्रा लगभग दो प्रतिशत है। नदियां स्वच्छ जल का सबसे बड़ा स्रोत हैं, पर तरक्की के नाम पर हमने नदियों के साथ ऐसा व्यवहार किया है कि आज भारत की अधिकांश नदियां अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाती प्रतीत होती हैं। इन दिनों देश के राजधानी क्षेत्र में यमुना नदी में प्रदूषण के कारण पैदा होने वाला झाग एक बार फिर चर्चा में है। लगता है नदियां भी अपनी शुचिता को संभालने के उपक्रम में हांफने लगी हैं। दिल्ली और उसके आसपास यमुना की स्थिति किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को दुखी कर सकती है।
यह हालत तो उस नदी की है, जिसे गंगा के बाद सबसे पवित्र नदियों में गिना जाता है। जिसके साथ श्रीकृष्ण का आख्यान जुड़ा हुआ है। जिसका उल्लेख वेदों में है और जिसमें स्नान करने को जीवन का एक पुण्य अनुष्ठान माना जाता है। यदि एक पवित्र मानी जाने वाली नदी समय के संत्रास को भोगने पर विवश है तो अन्य नदियों की स्थिति का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। परीक्षण के दौरान कई स्थानों पर यमुना के जल में ऐसे विषाक्त तत्व पाए गए हैं जो शरीर के लिए बहुत ही हानिकारक हैं। इन तत्वों से युक्त जल का इस्तेमाल मस्तिष्क, फेफड़ों, गुर्दों, यकृत और हृदय पर बुरा प्रभाव डालता है। रसखान यदि यह देख रहे होते तो कालिंदी कूल के कदंबों की छाया में जीवन बिताने को सबसे बड़ा सुख घोषित नहीं कर पाते। उत्तरकाशी के यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली यमुना को पुराणों में सूर्य पुत्री कहा गया है। 1370 किलोमीटर लंबी यह नदी प्रयागराज में गंगा से मिलती है। आज भी पांच करोड़ से ज्यादा लोग यमुना के पानी पर निर्भर हैं क्योंकि दिल्ली की सत्तर प्रतिशत आबादी को जलापूर्ति इसी नदी से होती है। इसके बावजूद दिल्ली के कुल कचरे का आधे से ज्यादा यमुना नदी में डाला जाता है। ओखला बैराज से वजीराबाद के बीच तो नदी का हाल बहुत ही बुरा है। गर्मियों के दिनों में वजीराबाद से नीचे की ओर नदी के नाम पर बहुधा केवल गंदगी और औद्योगिक अपशिष्ट बहते हैं। किनारे के खेतों के कीटनाशक नदी के पानी को जहरीला बना देते हैं। नदी के किनारे लगे कचरे के ढेर नदी की दुर्दशा की कहानी आप कहते हैं।
हालांकि केन्द्र सरकार 1665 करोड़ के बजट के साथ यमुना की सफाई की एक योजना संचालित कर रही है, पर नदियों की पवित्रता के प्रति जनसामान्य को जागरूक होना होगा। विकास के नाम पर नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट बहाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा। यह मानकर कि पवित्र नदियां हमारे पाप धो देती हैं, हमने हर चीज नदी में प्रवाहित करने की जो आदत बना ली है, उस पर हर हाल में काबू पाना ही होगा।
एक कथा भारतीय वांग्मय में मिलती है। सरस्वती को जब नदी के रूप में पृथ्वी पर जाने को कहा गया तो सरस्वती ने ब्रह्मा से कहा – ‘आप तो मेरा स्वभाव जानते हैं। मनुष्य ने यदि मेरी मर्यादा से खिलवाड़ किया तो मैं कैसे रह पाऊंगी?’ इस पर देवताओं ने सरस्वती को वरदान दिया कि उन्हें जब भी लगे कि मनुष्य का आचरण उनके रहने लायक नहीं रहा तो वे स्वयं को समेटना शुरू कर दें। कभी जिस नदी के किनारे ऋग्वेद की ऋचाएं लिखी गईं, वही सरस्वती नदी आज विलुप्त है। कहते हैं कि कलयुग के प्रारंभ से ही सरस्वती का विलोपन प्रारंभ हो गया था। सरस्वती नदी को तो देवताओं का वरदान था, पर यदि विकास का सामंजस्य नदियों की मर्यादा के साथ स्थापित नहीं किया गया तो बाकी नदियों को भी रूठने से रोका नहीं जा सकेगा।

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