सरकार को रोड इंफ्रास्ट्रक्चर और ड्रेनेज सिस्टम को लेकर नए सिरे से व्यापक योजना बनाने की जरूरत है। ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जाना चाहिए, जो बरसात में भी सलामत रहे, वह दीर्घकाल तक टिका रहे। साथ ही, व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की जरूरत है। जिन ठेकेदारों ने सड़क और ड्रेनेज सिस्टम बनाया है और जिन अधिकारियों ने उसे मंजूर किया है, उनकी सख्ती से जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए, वरना लोग हर साल बरसात में यूं ही जान जोखिम डालकर घर से बाहर निकलते रहेंगे।
विजय गर्ग
आर्थिक विशेषज्ञ और भारतीय एवं विदेशी कर प्रणाली के जानकार
इन दिनों समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर मानसून से होने वाली परेशानियां प्रमुखता पा रही हैं। मानसून में सड़कों का खराब होना और जलभराव देश की सबसे प्रमुख समस्या बन चुकी है, जिससे आम भारतीय दिन-प्रतिदिन रू-ब-रू हो रहा है। देश को स्वतंत्र हुए 77 वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी एक आम भारतीय हर मानसून में अपनी जान को जोखिम में डालकर बरसात में घर से बाहर निकल रहा है। ऐसा नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास धन या संसाधनों की कमी है या सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है, लेकिन हम इतने वर्षों में ऐसी तकनीक पर काम नहीं कर पाए हैं, जिसमें हमारी सड़कें बरसात में टिकी रहें और हमारा ड्रेनेज सिस्टम बरसात में ध्वस्त न हो। महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या जर्जर सड़कों के साथ विकसित भारत की कल्पना की जा सकती है? देश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स कलेक्शन को यदि जोड़ लिया जाए तो केंद्र सरकार के खजाने में वर्ष 2023-24 में 34.37 लाख करोड़ रुपए आए। इंफ्रास्ट्रक्चर, सोशल वेलफेयर स्कीम, रक्षा, एजुकेशन और अन्य विकास योजनाओं में केंद्र सरकार टैक्स से अर्जित धन का उपयोग करती हैं।
कुल मिलाकर सरकार के सारे काम टैक्स के पैसों से ही होते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष टैक्स के दायरे में हर भारतीय आता है, लेकिन टैक्स के बदले में आम भारतीय को वे सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं, जिनका वे हकदार है। भारत उन देशों में शामिल है, जहां अधिक टैक्स वसूला जा रहा है। अभी जब केंद्रीय बजट पेश किया गया था, तब इस बात को लेकर काफी चर्चा और बहस छिड़ी थी कि टैक्स तो हमसे विकसित देशों जैसा लिया जा रहा है, लेकिन सुविधाएं पिछड़े देशों वाली ही मिल रही हैं। अक्सर हम भारत की विकास दर की तुलना एशिया के दूसरे देशों जैसे चीन, सिंगापुर, मलेशिया, जापान, थाईलैंड आदि से करते हैं, लेकिन हमने कभी इन देशों में सड़कों के मानसून में टूटने की खबरें नहीं देखी हैं। सिंगापुर में हमसे अधिक बारिश होती है, लेकिन वहां न तो जलभराव की कोई समस्या है और न सड़कें टूटती हैं। भूकंपों का दंश झेलने वाला जापान अपनी बेहतरीन सड़कों के लिए जाना जाता है।
हमारे राजनेता जब भी चुनाव लड़ रहे होते हैं तो वे अपने क्षेत्र को बहुत अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर देने का वादा करते हैं। कुछ नेताओं के अपने क्षेत्र या शहर को लंदन जैसा बनाने की बातें हम अक्सर सुनते हैं, लेकिन जैसे ही मानसून शुरू होता है, ये सारे वादे बारिश के पानी की तरह बह जाते हैं। शायद ही देश का ऐसा कोई गांव, कस्बा, शहर या महानगर होगा, जहां सड़कों के टूटने या जलभराव की खबरें नहीं आ रही हों। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हर मानसून में बड़े इलाके में जलभराव और सड़कों के टूटने के समाचार प्राय: मिलते हैं। राज्यों की राजधानी और दिल्ली के वीवीआइपी इलाकों को छोड़ दिया जाए तो कहीं भी स्थिति सुखद नहीं है। पहाड़ी राज्यों में हर साल मानसून में सड़कों के बहने और पुलों के टूटने की खबरें आम हैं। इस साल मानसून में उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में सैकड़ों सड़कें बह गई हैं। ये सभी सड़कें अगले मानसून से पहले बनाकर तैयार की जाएंगी और फिर बरसात आते ही बहना शुरू हो जाएंगी।
ग्रामीण और शहरी सड़कों के अलावा हाईवे व एक्सप्रेस-वे की स्थिति भी बहुत अनुकूल नहीं है। हमारे कई हाईवे और एक्सप्रेस-वे बरसात में जीर्ण-शीर्ण हालत में पहुंच गए हैं। यदि जयपुर-दिल्ली एक्सप्रेस-वे की बात करें तो इस पर जगह-जगह गड्ढे हैं, लेकिन टूटे एक्सप्रेस-वे के बावजूद न तो टोल टैक्स में कोई रियायत मिल रही है और न टोल टैक्स बंद किया जा रहा है, बल्कि वाहन चालकों को पूरा टोल टैक्स देना पड़ रहा है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह एक ऐसी पॉलिसी पर काम करे, जिसमें मानसून को देखते हुए देश में सड़कों का निर्माण किया जाए। जलभराव की समस्या को दूर करने के उपाय किए जाएं। समय की मांग है कि टैक्स के पैसे को यूं ही बर्बाद न करके एक ठोस प्लान बने। सरकार को रोड इंफ्रास्ट्रक्चर और ड्रेनेज सिस्टम को लेकर नए सिरे से व्यापक योजना बनाने की जरूरत है। ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया जाना चाहिए, जो बरसात में भी सलामत रहे, वह दीर्घकाल तक टिका रहे। साथ ही, व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने की जरूरत है। जिन ठेकेदारों ने सड़क और ड्रेनेज सिस्टम बनाया है और जिन अधिकारियों ने उसे मंजूर किया है, उनकी सख्ती से जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए, वरना लोग हर साल बरसात में यूं ही जान जोखिम डालकर घर से बाहर निकलते रहेंगे। कब, कहां, किसकी गाड़ी खराब हो जाए या गड्ढे में गिरकर जान चली जाए, किसी को पता नहीं। बरसात के बाद जो सडकें बनेंगी, वे अगली बरसात में टूटने का इंतजार करती रहेंगी। इस मुद्दे पर सरकारों को ज्यादा गंभीरता से काम करने की आवश्यकता है।
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