ओपिनियन

हमारा सुख हमारे हाथ

आज प्रत्येक व्यक्ति के सामने जो परिस्थितियां हैं, वे अपने आप में धर्म-युद्ध जैसी हैं। अर्जुन बनकर, विषाद मुक्त होकर युद्ध करना है। प्रवाह में न बहें, अफवाहों पर कान ना दें।

Apr 26, 2021 / 07:41 am

Gulab Kothari

hamaraah

– गुलाब कोठारी
एक बहुत पुरानी उक्ति है- हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।

इसका अर्थ स्पष्ट ही है कि हमें परिस्थिति के अनुसार ‘कर्म’ करना है। आगे जो होना है उस पर हमारा नियंत्रण नहीं। इस कर्म शब्द में सभी प्रश्नों के उत्तर समाहित हैं। पहला प्रश्न है:-कर्म करने वाला क्या अपने स्वरूप को, स्वभाव को समझता है? क्या उसे अपने विवेक और क्षमता पर पूर्ण विश्वास है? क्या अपने कार्य क्षेत्र तथा वातावरण पर उसका नियंत्रण है?
आज प्रत्येक व्यक्ति के सामने जो परिस्थितियां हैं, वे अपने आप में धर्म-युद्ध जैसी हैं। अर्जुन बनकर, विषाद मुक्त होकर युद्ध करना है। प्रवाह में न बहें, अफवाहों पर कान ना दें। महाभारत के युद्ध में भी अश्वत्थामा के मरने की अफवाह ने गुरु द्रोणाचार्य जैसे प्रवीण नायक को मरवा दिया था। युद्ध क्षेत्र का कौशल जागरुकता पर ही तो निर्भर करता है। ‘अणी (नौंक) चूकी अर धार मारी’-जैसी कहावतें जागरुकता का प्रतिबिम्ब हैं। आज कोरोना महामारी का कोहराम चारों ओर ही फैलता जा रहा है। मौतों का आंकड़ा भी उछालें मारने लगा है। चारों ओर भय व्याप्त होने लगा है। जीवन का सुख धराशायी होता जान पड़ता है। भय, एक क्रिया है। शरीर और मन दोनों धरातल के भय के साथ चलते हैं। भय का अन्तिम छोर तो मृत्यु है।
भय, विवेक और तटस्थता से समझा तो जा सकता है, किन्तु अभय हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हमारे यहां प्रार्थना-उपासना में अभय की चेतना का विकास किया जाता है। आत्मविश्वास जगाया जाता है। सम्पूर्ण गीता शास्त्र इसका उदाहरण है। सम्पूर्ण जीवन भय का संग्रहालय ही है। जो परिस्थितियां अदृश्य हैं, हमारी समझ के बाहर हैं, उनका भय अधिक होता है। कोरोना का भय भी कुछ वैसा ही है।
भय परिस्थितियों के अनुसार भी घटता-बढ़ता है। आज भय के वीभत्स स्वरूप ले लेने का मुख्य कारण है मीडिया। टीआरपी (दर्शक संख्या) बढ़ाने के लोभ में मीडिया आज पूर्ण रूप से नंगा होकर सड़क पर आ गया। आपात स्थिति में मीडिया को समाज में धैर्य एवं व्यवस्था तथा परिपक्वता का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। सकारात्मक भूमिका ही समाज के संघर्ष करने के मनोबल को बढ़ाती है। सरकारी प्रयासों में सहायक बनती है। प्रकृति के इस तांडव को जिस प्रकार मीडिया शस्त्र बनाकर भय का माहौल फैला रहा है, निन्दनीय है। हमें इस बात के लिए सावधान रहना होगा कि कोई भी चैनल हमारे कंधों का उपयोग नहीं कर पाए। वैसे तो मास मीडिया में भारतीय संस्कृति की अवधारणा ही नहीं है। हमारे यहां कोई अनावश्यक चीज पैदा ही नहीं की जाती। जबकि आज का मीडिया पहले माल बनाता है और फिर बेचने का प्रयास करता है। उसे हमारे सुख-दु:ख की कोई चिन्ता नहीं है। एक ही लक्ष्य है-माल बेचना। देश या विदेश से संचालित कई चैनल बिना धरातल समझे एकतरफा समाचार देते हैं। व्यापार पर हमें आपत्ति नहीं है, पर जीवन-मौत के संघर्ष में भी वे व्यापार करते रहें, इसे कहां तक सहन किया जा सकता है। ऊपर से सोशल मीडिया आग में घी डाल रहा है। यह समाज का शुभचिन्तक नहीं हो सकता। यह तो अभी से कोरोना का तीसरा दौर बन बैठा।
हमें सामूहिक रूप से कोरोना के दूसरे तथा मीडिया के इस तीसरे दौर से साथ-साथ ही लडऩा चाहिए। वैसे भी यह मीडिया तो आज लोकतंत्र का प्रहरी नहीं रहा। जनता की आवाज नहीं रहा। खुद चौथा स्तम्भ बन बैठा है। सारा माहौल सरकारी पक्ष के अनुरूप बनता जा रहा है।
हम जितना मीडिया की भ्रामक सूचनाओं पर आश्रित होंगे, उतना हमारा भय बढ़ेगा। तस्वीरों को देखकर हमारी संवेदनाएं बिलख पड़ेगी। अंग्रेज अट्टहास करेगा। कुछ दिन के लिए पुन: भारत लौटें। ईश्वर की ओर मुंह करें। भय मुक्ति हमारी प्रथम आवश्यकता है। भय से हमारे शरीर में गठिया-रक्तचाप (उच्च)-हृदय रोग विकसित हो सकते हैं। ऐसे में कोरोना का आक्रमण अधिक प्रभावी हो जाएगा। मन में आक्रोश बढ़ता चला जाएगा। दवाओं का प्रभाव भाव-क्रिया पर नहीं होता। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में सूक्ष्म और कारण शरीर के साथ प्राणों की व्याख्या है ही नहीं।
भय का उपचार अभय के भाव हैं। साहस और ऊर्जा आस्था में पलते हैं। भय के चलते अभय की स्थिति नहीं बनती। आज मीडिया भय का ही पोषण कर रहा है। हमारे शत्रु से जा मिला है। कुछ दिन के लिए भले ही प्रयोगके तौर पर सही, हम मीडिया के नए दैत्याकार स्वरूप का विकल्प तलाश करें। सारे भय 24 घंटों में छू-मंतर हो जाएंगे।
हम सबको अपने-अपने नित्य एव स्वाभाविक कर्म में व्यस्त हो जाना चाहिए। समय मिले तब परिवार के साथ मनोरंजन करें। नई पीढ़ी के साथ पुरातन ज्ञान की चर्चा करें। विज्ञान आधारित चैनल्स बच्चों के साथ देखें। समाचार दिन में केवल दो बार, प्रात:-सायं देखने का क्रम बना लें। ईश्वर ने जीवन को प्राकृतिक रूप से जीने का समय दिया है। कोरोना की सावधानियां बरतते हुए घर में स्वर्ग का आनन्द लें। फोन का इस्तेमाल केवल अत्यावश्यक हो तभी करें। ईश्वर से सभी प्राणियों के कल्याण के लिए तथा विश्व शान्ति के लिए भी प्रात:-सायं प्रार्थना करें। पूरे परिवार के साथ। मीडिया आज कोरोना का मेजबान बन गया है। जहां ईश्वर है, कोरोना नहीं आ सकता।
हे कृषक! रक्षा करो!!

यदा यदाहि…

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