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आपकी बात, भारत के प्रति चीन का बदला हुआ रवैया कितना भरोसेमंद है?

पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं मिलीं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं

जयपुरOct 27, 2024 / 05:19 pm

Gyan Chand Patni

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विश्वास के काबिल नहीं है चीन
 चीन दोगलेपन की नीति में पहले भी माहिर था और अब भी माहिर है। हमें चीन पर बिलकुल भी भरोसा नहीं करना चाहिए। साथ ही चीनी वस्तुओं का पूरी तरह से बहिष्कार किया जाना चाहिए।
 -राकेश मोहनलाल कुमावत, देवास, मप्र
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भरोसे लायक नहीं
 चीन भरोसा करने लायक नहीं है। वह कब अपनी बात से मुकर जाए, कुछ नहीं कह सकते। अस्तु चीन से सतर्क रहना जरूरी है।
-बी एल शर्मा, उज्जैन, मप्र
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भारत जवाब देने में सक्षम
भारत और चीन के बीच विवाद सुलझने की राह प्रशस्त हुई है। चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। इससे दोनों देशों के मध्य जो भी गतिरोध है, उसे समाप्त करने में मदद मिलेगी। हालांकि इतिहास में देखें तो चीन भरोसे के लायक नहीं है लेकिन भारत अब 21 वीं सदी का भारत है जो चीन को मुंहतोड़ जवाब देने में सक्षम है। बदलती वैश्विक तस्वीर में चीन पर भरोसा किया जा सकता है।
 -सुरेन्द्र कालवा, जोड़किया, हनुमानगढ़
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 रहना होगा भारत को सतर्क
चीन का भारत के प्रति बदला रवैया बिल्कुल भी भरोसेमंद नहीं है। भारत को चीन से सतर्क रहना होगा क्योंकि चीन कभी भी गिरगिट की तरह रंग बदल सकता है। मौका मिलने पर वह आक्रामक रुख अपना लेता है। चीन ने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता का कभी समर्थन नहीं किया। हां, भारत का बाजार उसे लुभाता जरूर है।
-प्रेम किशोर स्वामी, जबलपुर, मप्र
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सतर्क रहने की जरूरत
भारत के प्रति चीन का बदला हुआ रवैया भरोसेमंद नहीं है, क्योंकि चीन ने भारत की सीमा पर भारतीय जवानों पर ताबड़तोड़ हमले किए थे। केंद्र सरकार को चीन जैसे धोखेबाज देश से सतर्क रहना चाहिए।
-आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़
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स्वागत योग्य
चीन 2020 की स्थिति पर वापस लौटने पर सहमत हुआ है, जो स्वागत योग्य है। बशर्तें की इसका पालन पूरी ईमानदारी के साथ किया जाए। चीन के इतिहास को देखते हुए जब तक यह सहमति पूरी तरह धरातल पर नजर नहीं आती तब तक शंकाएं बनी रहेंगी। देखा जाए तो इस बार चीन वादाखिलाफी नहीं कर सकेगा। असल में चीन को भारत के साथ सामान्य संबंधों की जरूरत है, ताकि यूएस के साथ उसका शक्ति संतुलन बना रहे।
-सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम, एमपी
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 चीन की विस्तारवादी नीति
चीन की विस्तारवादी नीति को नहीं भूलते हुए भारत को सतर्क ही रहना चाहिए। तिब्बत और ऐसे कई देश इस नीति का शिकार हो चुके हैं। चीन एक पूंजीवादी देश बन चुका है। गलवान घाटी जैसे विवाद इसके प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।
-रवि कुमार जैन, उदयपुर

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