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आपकी बातः मुफ्त चुनावी सौगातों की घोषणा पर रोक कैसे लगे?

elecपत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

Jan 27, 2022 / 07:06 pm

Gyan Chand Patni

चुनावी वादेः वादे हैं वादों का क्या!

चुनाव आयोग रोक लगाए
मुफ्त चुनावी सौगातों की घोषणा पर चुनाव आयोग रोक लगा सकता है। ऐसे कानून बनाये जाएं कि इस प्रकार की घोषणा करने वालों को टिकट ही नहीं दिए जाएं। जनता भी उम्मीदवार की योग्यता को देख कर वोट करे, व्यर्थ के लालच में न आए। इन पर रोक लगाने के लिए जनता ही मजबूत हथियार है।
– लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़

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स्पष्ट की जाए महीन लकीर

अब वक्त आ गया है कि मुफ्तखोरी और लोककल्याण के भाव के बीच की महीन लकीर को स्पष्ट किया जाए। इसे स्पष्ट करने का दायित्व चुनाव आयोग और न्यायपालिका को ही निभाना होगा। कार्यपालिका वोट बैंक के चक्कर में इस तरफ ध्यान देने से रही। अगर राजनीतिक दलों में एकराय हो तो बात बन भी सकती है। जनता का एकजुट होना भी आवश्यक है।
– तरुणा साहू, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़
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शीघ्र प्रभावी कानून लाया जाए

आज देश के बदले हुए सामाजिक परिदृश्य में राजनेता जनता को मुफ्त बिजली, पानी, राशन, आवास देने की घोषणाएं करने लगे हैं। ये घोषणाएं अभी कानून के दायरों में, भ्रष्ट तरीकों मे नहीं गिनी जाती हैं। इन मुफ्त की चुनावी सौगातों की घोषणाओं के चलते ये मुफ्त के बजट, सरकारों के नियमित बजट से काफी बड़े और खर्चीले होते हैं। ये घोषणाएं मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करने के साथ चुनाव प्रक्रिया को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। इन घोषणाओं को लेकर माननीय न्यायालय ने चुनाव आयोग से आदर्श आचार संहिताओं के अंतर्गत कोई न कोई कड़ा कानून जरूर लाए जाने की सिफारिश की है, जिस पर शीघ्र अमल करना आमजन की सोच के अनुसार भी जरूरी हो जाता है।
– नरेश कानूनगो, बेंगलूरु, कर्नाटक
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जनता को जागरूक होना होगा
‘चुनावी घोषणाएं/सौगातें’ विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा वोट प्राप्त करने हेतु भोली-भाली जनता को लुभाने का एक आसान जरिया होता है। इस पर रोक लगाने का सबसे प्रभावी तरीका यही हो सकता है कि जनता जागरूकता के साथ एक सच्चे ईमानदार उम्मीदवार को वोट करे। वरना हर बार यही होता रहेगा, सरकार भी नए नियम-कानून बनाए।
-हरि मुख मीना, कठहैडा, अलवर (राज.)
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सख्त कानून और प्रभावी क्रियान्वयन से ही संभव

चुनाव आयोग को मुफ्त चुनावी वादे करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता और उनके चुनाव चिह्न रद्द कर देने चाहिए। ताकि कोई भी दल मुफ्त उपहारों के वादों से जनता का वोट खरीदने की कोशिश न करे। कुछ राजनीतिक दल चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करते हैं जो चुनाव की अवधारणा के खिलाफ है। इस पर कड़ा कानून बनाने की आवश्यकता है।
– शारदा यादव, कोरबा, छत्तीसगढ़

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भूतकाल के विकास कार्य ही बनें चुनाव का आधार

किसी भी राजनीतिक दल द्वारा मुफ्त की घोषणा करने पर सुप्रीम कोर्ट व चुनाव आयोग द्वारा उस दल के चुनाव लड़ने पर रोक लगानी चाहिए। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव सिर्फ भूतकाल में किए गए विकास कार्यों एवं मूलभूत सुविधाओं जैसे शिक्षा, चिकित्सा एवं रोजगार के आधार पर हों।
– मगन लाल तेली, राजसमंद, राजस्थान
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जुमलेबाजी के चक्रव्यूह से जनता को मिले मुक्ति

चुनावी सौगातों से चुनाव में राजनेता जुमलेबाजी करके खोखली घोषणा करके जनता को अपने चक्रव्यूह में घुसा कर मुफ्त का झांसा देकर चुनाव जीत जाते हैं। उसके पश्चात न जनता की परवाह, न ही देश की और न ही लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की। इन सबको नजरअदांज करके अपने स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं। इस पर रोक के लिए जनता जागरूक हो और संसद सख्त कानून बनाए। ऐसी चुनावी घोषणा करने वाली पार्टी की मान्यता को रद्द कर देना होगा जिससे उन पार्टियों के कर्णधारों को यह स्पष्ट हो जाए कि चुनाव का आधार यदि कुछ है तो विकास।
– सी.आर. प्रजापति, हरढ़ाणी, जोधपुर
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उचित सजा का प्रावधान हो

चुनाव की तारीख घोषित होने के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल मुफ्त चुनावी सौगातों की सियासत आरम्भ कर देते हैं। चुनाव जीतने के लिए आम जनता और गरीबों को कई तरह के प्रलोभन देकर उनकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाता है। चुनाव आयोग को मुफ्त की सौगात जैसे एजेंडे पर एक सख्त कानून के लिए प्रयास करने चाहिए। चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, पर जीतने के बाद कोई भी अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाता है। ऐसी घोषणाओं के लिए उचित सजा का प्रावधान होना चाहिए।
– नीलिमा जैन, उदयपुर
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इमोशनल ब्लैकमेलिंग से बचे जनता

सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाकर आम जनता को इमोशनली ब्लैकमेल कर रहे हैं, जिसमें मुफ्त शिक्षा, पानी, बिजली, इलाज, बस सफर, किसानों का ऋण माफ, किसानों को पेंशन जैसे वादे प्रमुख हैं। आम जनता को झांसा देकर राजनीतिक दल सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं और खमियाजा करदाता को भुगतना पड़ता है। यह सब रोकने के लिए हमें इन सभी के झांसे में आने से बचना पड़ेगा।
– कोमल प्रीत संधू, रायपुर, छत्तीसगढ़
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दूषित मानसिकता का बढ़ावा देने का षडयंत्र

चुनाव के समय राजनीतिक दल मुफ्त की सौगातों की घोषणा करते हैं। यह एक ऐसा लालच है जिसके द्वारा नेता और राजनीतिक दल मानसिक रूप से लोगों का वोट खरीदने का कार्य करते हैं। मुफ्त की सौगात भी प्रलोभन का एक प्रकार है जिसके द्वारा राजनीतिक दल जनता से वोट खरीदते हैं।
– शुभम वैष्णव, सवाई माधोपुर, राजस्थान

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