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द वाशिंगटन पोस्ट से… अफगानिस्तान में मानवता पर चौतरफा संकट

Afghanistan war, taliban, Humanity Crisis in Afghanistan : अफगानिस्तान सबसे गरीब देशों में शुमार है, जो बाहरी सहायता पर सर्वाधिक निर्भर है। अमरीका और अन्य मददगार देशों ने तालिबान का कब्जा होते ही अफगानिस्तान को दी जा रही वित्तीय सहायता रोक दी और अफगानिस्तान के वित्तीय खातों से लेन-देन रोक दिया।

Aug 26, 2021 / 12:20 pm

Patrika Desk

Crisis on Humanity in Afghanistan

बार्नेट आर. रूबिन

(लेखक यूएस स्टेट डिपार्टमेंट में अफगानिस्तान-पाकिस्तान के विशेष प्रतिनिधि के पूर्व सलाहकार)

Afghanistan news, taliban : अफगानिस्तान पर मीडिया कवरेज, देश छोडऩे की आस में एयरपोर्ट पर जमा हजारों अमरीकी व अफगानी लोगों की भीड़ पर केंद्रित है। परन्तु एयरपोर्ट पर दिख रहे संकट से कहीं ज्यादा बड़ा संकट अफगाानिस्तान के सामने खड़ा है और जरूरत है कि विश्व अन्य भयावह वास्तविकताओं पर भी ध्यान दे। अमरीका और अन्य मददगार देशों ने तालिबान का कब्जा होते ही अफगानिस्तान को दी जा रही वित्तीय सहायता रोक दी और अफगानिस्तान के वित्तीय खातों से लेन-देन रोक दिया। जबकि अफगानिस्तान सबसे गरीब देशों में शुमार है, जो बाहरी सहायता पर सर्वाधिक निर्भर है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम (world food program) के एक अंदरूनी दस्तावेज के अनुसार, ‘आखों के सामने मानवता पर भीषण संकट दिखाई दे रहा है। अफगानिस्तान सत्ता संघर्ष, अकाल और कोविड-19 की तीसरी लहर जैसे संकटों से जूझ रहा है।’

अफगानिस्तान में हर तीन में से एक अफगानी यानी 1.40 करोड़ लोग भुखमरी का शिकार हैं जबकि 20 लाख बच्चे कुपोषित हैं, जिन्हें तुरंत इलाज की जरूरत है। 3 करोड़ 80 लाख में से मात्र 35 लाख लोग अंदरूनी तौर पर विस्थापित हुए हैं। अकाल ने स्थिति और बदतर बना दी है, करीब 40त्न फसलें बर्बाद हो गई हैं। सेंट्रल बैंक के डायरेक्टर अजमल अहमदी के अनुसार अफगान मुद्रा ‘अफगानी’ प्रति अमरीकी डॉलर 81 से 100 तक पहुंच गई थी जो गिर कर दोबारा 86 हो गई। कुल आयात में से 14 प्रतिशत आयात केवल गेहूं का है, जिसकी कीमत पांच साल के औसत से 24 प्रतिशत ज्यादा है। अगर अस्थिरता या मुद्रा का अवमूल्यन ऐसे ही जारी रहा तो खाद्यान्न महंगा होगा। उस पर भुखमरी बढऩा तय है। डब्ल्यूएफपी के अनुसार, उसे अक्टूबर तक अन्न भंडार भरे रखने के लिए 200 मिलियन डॉलर तुरंत चाहिए ताकि वह सर्दियों में हर माह 9० लाख अफगानियों की सहायता कर सके।

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गोपनीयता की शर्त पर अभी तक काबुल में तैनात एक अधिकारी ने बताया, ‘सरकारी अस्पतालों में दवाएं और आवश्यक सामान और उपकरण नहीं हैं। कर्मचारियों को पिछले तीन माह से वेतन नहीं मिला है।Ó यह सब तब हो रहा है जब अफगाानिस्तान कोरोना की तीसरी लहर की चपेट में है और स्थिति कितनी गंभीर है यह कोई नहीं जानता। अमरीकी निकासी की डेडलाइन 31 अगस्त से आगे बढ़ा भी दी जाए तो इससे सिर्फ निकासी ही व्यवस्थित होगी लेकिन हर दिशा में शरणर्थियों की संख्या बढ़ेगी, क्योंकि लोग भूख व बीमारी से भी बचकर निकलना चाहेंगे। स्वास्थ्यकर्मियों की तरह किसी भी अन्य लोकसेवा कर्मी को पिछले माह वेतन नहीं मिला। वित्त मंत्रालय बंद पड़ा है। मतलब आवश्यक सेवाओं के सरकारी व गैर सरकारी दोनों ही कर्मचारी बेरोजगार हो गए हैं।

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फिलहाल, अफगानिस्तान में कोई सरकार नहीं है। कतर में अमरीका के साथ वार्ता का नेतृत्व करने वाला तालिबानी नेता अब्दुल गनी बरादर इस वक्त काबुल में है और पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई व अब्दुल्ला अब्दुल्ला के साथ उसकी बातचीत जारी है। अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने ही नई सरकार के गठन के लिए तालिबान के साथ बातचीत में पूर्व सरकार का नेतृत्व किया था। बातचीत लम्बी खिंचने के आसार हैं। लोगों को मदद की जरूरत है। सरकार की गैर-मौजूदगी में अंतरराष्ट्रीय संगठनों को गैर-मान्यता प्राप्त लोगों के नियंत्रण वाले इलाकों में मानवीय सहायता पहुंचाने का अनुभव है। संयुक्त राष्ट्र मानवता कॉरिडोर के जरिए लोगों को बच निकलने में मदद भी की जा सकती है और काबुल से हटकर अन्य क्षेत्रों में भी मदद पहुंचाई जा सकती है। राजनीतिक परिणाम चाहे जो रहें, अफगानिस्तान को मानवीय संकट से बचाने के लिए तमाम संभव अंतरराष्ट्रीय संसाधनों का इस्तेमाल करना वक्त की जरूरत है।
(द वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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