सीनियर फेलो, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च …………………………………………………… स्लैब-वार आयकर की दरों में बदलाव से 4 करोड़ वेतनभोगी करदाताओं को लाभ होने का अनुमान है। उम्मीद की जा रही है कि कर पर कम देनदारी और उच्च प्रयोज्य आय से उपभोक्ता वस्तुओं पर अतिरिक्त खर्च को और परिणामस्वरूप सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा। बजट पर चुनाव नतीजों की छाया तो स्पष्ट है ही, वित्तमंत्री ने जो प्रावधान किए हैं वे आर्थिक परिदृश्य पर अन्य उभरते कारकों पर भी आधारित हैं।
…………………………………………………. कुछ हद तक यह सच है कि 2024-25 के बजट में आम चुनाव परिणामों का असर रहा है। बिहार और आंध्र प्रदेश को ज्यादा आवंटन इसकी स्पष्ट अभिव्यक्ति है। हालांकि, बजट की अन्य प्राथमिकताएं, चुनाव के बाद जिसके इसे और अधिक धार दिए जाने की संभावना थी, आर्थिक रुझानों पर अन्य उभरते कारकों पर आधारित हैं। इनमें से कुछ पिछले कुछ वर्षों में प्रमुख चिंताओं के रूप में आगे आई हैं। वित्तमंत्री ने अपना बजट भाषण चार प्रमुख विषयों को सूचीबद्ध करते हुए शुरू किया – रोजगार, कौशल, एमएसएमई और मध्यम वर्ग। इन मुद्दों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए 9 प्राथमिकताएं तय की गई हैं जो सतत विकास के लिए भविष्योन्मुखी दृष्टि योजना के रूप में हैं।
विकास और समग्र अर्थव्यवस्था को लेकर, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर (जीडीपी) 6.5% से 7% (रिजर्व बैंक के 7.2% के अनुमान से कम) रहने का अनुमान जताया गया है। देखा जाए तो आर्थिक गतिविधियां – औद्योगिक गतिविधि, विनिर्माण और सेवा निर्यात, एयरलाइन ट्रैफिक, होटल स्टे समेत कई अन्य गतिविधियों के साथ द्ग मजबूती के स्तर पर हैं। यह बात अलग है कि इन संकेतकों में वृद्धि धीमी है, पर फिर भी स्वस्थ है। शेयर बाजार ने लगभग हर महीने ऐतिहासिक ऊंचाइयों को पार किया है; उतार-चढ़ाव के बावजूद, अभी भी घरेलू बचत हर माह बढ़ती जा रही है। विकास के इस मजबूत परिदृश्य के पीछे लाभों के वितरण को लेकर बेचैनी भी है। आय और धन असमानता पर उपलब्ध डेटा अपर्याप्त और विवादित बने हुए हैं। जीडीपी के आंकड़े दर्शाते हैं कि कुल घरेलू खपत तुलनात्मक रूप से धीमी गति से बढ़ रही है। विशेषकर, गांवों में खपत कथित तौर पर बहुत कम है। ग्रामीण मुद्रास्फीति शहरी की तुलना में (बहुत) अधिक बनी हुई है। ग्रामीण परिवारों की आय प्रभावित हो रही है जो पहले ही कठिन हालात में थी। बड़े व मध्यम आकार के कॉरपोरेशन्स के पास बड़ी नकदी होने के बावजूद यह स्थिति है।
उपभोक्ता मांग में कमी आने की प्रत्यक्ष वजह नियमित रूप से आय में वृद्धि और अच्छे वेतन वाली नौकरियों की कमी का होना है। आधिकारिक आंकड़े गवाह हैं कि कार्यबल का ज्यादा और बड़ा हिस्सा ‘अनौपचारिक श्रम’ या ‘स्व-रोजगार’ में लगे लोगों का है बनिस्पत ‘वेतनभोगी कर्मचारियों’ के। वेतनभोगी वर्ग में भी, बड़ी संख्या में अनुबंध कर्मचारी हैं। इनमें से किसी भी वर्ग के पास पेंशन सुविधा या सेवा लाभ नहीं हैं। आर्थिक मंदी में उनकी नौकरियां पर तलवार लटकती रहती है। बजट में दबाव वाले क्षेत्रों पर जोर दिया गया है, उसके मूल में यही वजहें हैं। व्यक्तिगत आयकर के मामले में नई व्यवस्था अपनाने वाले करदाताओं पर प्रतिवर्ष 17,500 रुपए की कम करदेयता होगी। स्टैण्डर्ड डिडक्शन जो पहले 50 हजार था, 75 हजार रुपए किए जाने से स्लैब-वार कर दरों में बदलाव आएगा। इससे 4 करोड़ वेतनभोगी करदाताओं को लाभ होने का अनुमान है। उम्मीद की जा रही है कि कर पर कम देनदारी व उच्च प्रयोज्य आय से उपभोक्ता वस्तुओं पर अतिरिक्त खर्च को और परिणामस्वरूप सतत विकास को बढ़ावा मिलेगा। दूसरी ओर, पिछले तीन-चार वर्षों में स्टॉक मार्केट में खुदरा निवेशकों का धन का प्रवाह बड़ी चिंता का मुद्दा बन रहा है। इस रुझान के शुरुआती वर्षों में, काफी हद तक यह प्रवाह म्यूचुअल फंड के जरिए था। पर, हाल ही में यह प्रवृत्ति सीधे स्टॉक निवेश में बढ़ी है। वास्तव में, नियामक अब यह कह रहे हैं कि खुदरा निवेशकों की भीड़ के कारण घरेलू बचत उत्पादक निवेश से सट्टेबाजी में बदल रही है। इसी के चलते बजट में एफएंडओ ट्रेड्स पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स 0.02% से 0.1%, शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स 15% से 20% और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स 10% से 12.5% कर दिया गया है। परिणामस्वरूप, व्यक्तिगत आयकर में बदलाव से 37,000 करोड़ रुपए का शुद्ध राजस्व नुकसान होगा जबकि कैपिटल गेन टैक्स में वृद्धि से 30,000 करोड़ रुपए का लाभ होगा। वस्तुओं पर अप्रत्यक्ष करों में कटौती से सरकार को और 8,000 करोड़ रुपए का नुकसान होने का अनुमान है। व्यापक स्तर पर देखा जाए तो परिवारों को प्रयोज्य आय (करों और अन्य अनिवार्य शुल्कों में कटौती के बाद बची आय) में केवल 15,000 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ होता है जो कुल निजी खपत के सापेक्ष बहुत छोटी राशि (0.08%) है।
एमएसएमई सेक्टर, विशेषकर सूक्ष्म व लघु उद्यमों, पर भी फोकस किया गया है। वजह यह कि इस सेक्टर का सरोकार खपत में कमी और अच्छे वेतन वाली नौकरियों की कमी दोनों से है। सरकार के हाल के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में 6.5 करोड़ अनइनकॉर्पोरेटेड इंटरप्राइजेज में 11 करोड़ कामगार नियुक्त थे; इसमें अनौपचारिक क्षेत्र भी शामिल है जो भविष्य में रोजगार सृजन की कुंजी होगा। इन छोटे उद्यमों के आपूर्ति शृंखलाओं में एकीकृत होने में सक्षम नहीं होने की एक प्रमुख वजह उनकी औपचारिक ऋण तक पहुंच की कमी है। इनके विकास और वैश्विक स्तर पर स्पर्धा में सक्षम बनाने के लिए बजट में शामिल कार्ययोजना एक ऐसा पैकेज तैयार करती है जिसमें वित्तपोषण, नियामकीय बदलाव और तकनीकी समर्थन शामिल है। विनिर्माण क्षेत्र की एमएसएमई के लिए एक ऋण गारंटी योजना के साथ-साथ एक स्व-वित्तपोषण गारंटी फंड भी बजट में महत्त्वपूर्ण घटक है।
आखिर में, सरकार का फोकस अच्छे वेतन वाले रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहन देने पर है। कौशल विकास के जरिए इसे हासिल किया जाना है। बजट में शिक्षा, रोजगार और कौशल के लिए वित्त वर्ष 2024-25 में 1.48 लाख करोड़ रुपए का परिव्यय है और अगले 5 वर्षों में 4.1 करोड़ से अधिक रोजगार के अवसर सृजित करने का लक्ष्य है। कंपनियों के लिए इम्पलॉयमेंट लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम महत्त्वपूर्ण है जो पहली बार नौकरी करने वाले कर्मचारियों पर केंद्रित है। योजना का स्पष्ट ध्येय औपचारिक क्षेत्र में नियुक्तियों को प्रोत्साहित करना है। सरकार यह समझती है कि केंद्र व राज्यों के बीच सहयोग इन रणनीतियों के प्रभावी क्रियान्वयन की कुंजी है।
(द बिलियन प्रेस)