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देश के नागरिकों के विश्वास और संकल्प का प्रतीक

बीते 75 वर्षों में हमने अपने संविधान और उसके उद्देश्यों को मूर्तरूप लेते हुए देखा है। उससे भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार हुई है, किन्तु उसे पहले से भी बेहतर करने की जरूरत है। उसे आत्मसात करके उसके आदर्शों के अनुरूप आचरण करके ही हम उसे मजबूती दे सकते हैं।

जयपुरNov 26, 2024 / 05:10 pm

Gyan Chand Patni

प्रो. हरबंश दीक्षित
डीन, विधि संकाय तीर्थंकर महावीर वि.वि., मुरादाबाद
बीते 75 वर्षों में हमने अपने संविधानबद्ध आदर्शों की ओर मजबूती से कदम बढ़ाया है। हमारे साथ आजाद हुए करीब 50 देशों में लोकशाही वहां के जनजीवन में वह पैठ नहीं बना पाई, जिसे हमारे नागरिकों ने कर दिखाया है। हमारे पड़ोसियों जैसे पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे किसी भी देश में लोकतंत्र कभी खुली हवा में सांस नहीं ले पाया। इसके उलट बीते 75 वर्षों में हम 18 बार आम चुनावों के माध्यम से केंद्र में सत्ता के शालीन हस्तांतरण के साक्षी रहे हैं। हमने इस क्षेत्र में पूरे विश्व के लिए आदर्श प्रस्तुत किया है। देश ने युद्ध, सूखा और महामारी का मजबूती से सामना किया। वर्ष 1971 के युद्ध में तो हमने न केवल विजय प्राप्त की, अपितु 97000 सैनिकों को युद्ध बंदी भी बनाया।
सूखे के शुरुआती झटकों से उबरकर अब हम दूसरे देशों को अन्न की मदद करने की आदत और परंपरा पर आगे बढ़ रहे हैं। हमने अपने संविधान में कल्याणकारी राज्य की कल्पना की है और अन्त्योदय का संकल्प लिया है। कोरोना महामारी में हमने इसे मूर्तरूप दिया। दुनिया के बड़े हिस्से में जब लोग दवाओं की कमी और भुखमरी से जूझ रहे थे, उस समय हमने असम्भव को सम्भव कर दिखाया। पूरे यूरोप की आबादी करीब 79 करोड़ है। हमारे देश में 80 करोड़ लोगों को पूरी महामारी के दौरान नि:शुल्क राशन मिला। इतना ही नहीं कोरोना से बचाव के लिए टीकाकरण के मामले में हमने नए प्रतिमान स्थापित किए। करीब 2 अरब टीके नि:शुल्क लगाए गए और दुनिया के करीब 96 देशों की मदद भी हुई।
अपने संविधान की प्रस्तावना में हमने सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने का संकल्प लिया है। नीति निर्देशक तत्वों में सरकारों से अपेक्षा की गई है कि सार्वजनिक पूंजी को कुछ लोगों के हाथों में संचित न होने दे। इसे लागू करने के मामले में भी हमने मिसाल कायम की है। आजादी के समय हमारे यहां जमींदारी प्रथा लागू थी, जिसमें जमीन कुछ जमींदारों के पास थी। आजादी के पांच वर्षों के अंदर ही हमने कानून बनाकर पूरे देश में जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया। यह ऐतिहासिक उपलब्धि थी। विश्व के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि कुछ मुट्ठीभर जमींदारों से जमीन लेकर उसे लाखों भूमिहीनों में बांट दिया गया। यह सब कुछ शांतिपूर्वक और बगैर एक कतरा खून बहाए सम्पन्न हुआ। दुनिया के इतिहास में ऐसा कोई भी दूसरा उदाहरण नहीं है, जहां इतने व्यापक स्तर पर भूमि सुधार इतनी शांतिपूर्वक सम्पन्न हुए हों। आर्थिक और सामाजिक न्याय हासिल करने की दिशा में इन भूमि सुधारों का अतुलनीय योगदान रहा है।
बीते 75 वर्षों में हमने अपने संविधान और उसके उद्देश्यों को मूर्तरूप लेते हुए देखा है। उससे भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार हुई है, किन्तु उसे पहले से भी बेहतर करने की जरूरत है। उसे आत्मसात करके उसके आदर्शों के अनुरूप आचरण करके ही हम उसे मजबूती दे सकते हैं। 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने भाषण में कहा था कि संविधान की सफलता उस देश के नागरिकों पर निर्भर करती है। उन्होंने आगे कहा कि यदि देश के लोग संविधान के मूल्यों के अनुरूप आचरण करते हैं तो संविधान सफल रहेगा अन्यथा वह कोरे शब्दों का संग्रह मात्र रह जाएगा। आने वाले समय में इसे पहले से भी अधिक सफल बनाने के लिए जरूरी है। इसके लिए नागरिक सचेत रहें।

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