अमरीका के चुनाव नतीजों के बाद भारत को भी पाने और खोने को काफी कुछ है। जहां ट्रंप और मोदी की दोस्ती को भारत के लिए लाभकारी बताया जा रहा है, वहीं ट्रंप की ‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’ की नीति और प्रवासियों को लेकर सख्त नीति से होने वाला संभावित नुकसान भी भारत के लिए एक चुनौती होगा।
‘अमरीका बनाम अमरीका’ पुस्तक के लेखक द्रोण यादव का चुनावी विश्लेषण
हिलेरी क्लिंटन के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी की एक और महिला प्रत्याशी कमला हैरिस को पराजित कर डॉनल्ड ट्रम्प फिर से अमरीका के अगले राष्ट्रपति होने जा रहे हैं। जो बाइडन के बाद कमला हैरिस के राष्ट्रपति प्रत्याशी बनने के बाद अमरीकियों में हल्का उत्साह देखा गया था और लगने लगा था कि शायद कमला ट्रंप को पछाड़ देंगी, कांटे का दिख रहा चुनाव मतदान के अंतिम दौर में आते-आते बदल गया।
यह माना जा रहा था कि चुनाव इतना करीब होगा कि नतीजों की स्पष्टता के लिए कई दिनों तक इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन हुआ यह कि वोटिंग समाप्ति के साथ ही तस्वीर साफ हो गई और ट्रंप विजयी भाषण देने अपने समर्थकों के बीच आ गए। कमला हैरिस कैंपेन के लोगों ने भी परिणाम स्पष्ट होने से पहले ही टीवी बंद कर यह घोषणा कर दी थी कि उपराष्ट्रपति कमला हैरिस भाषण देने जनता के बीच नहीं आएंगी । हालांकि अभी इन परिणामों को विधिक मान्यता मिलना बाकी है। 16 दिसंबर को ‘इलेक्टोरल कॉलेज’ की वोटिंग और उसके बाद 6 जनवरी को होने वाली इलेक्टोरल कॉलेज के वोटों की मतगणना के बाद परिणाम पर आखिरी मुहर लगेगी। दरअसल, अमरीका में भारत की तरह कोई केंद्रीय चुनाव आयोग नहीं होने के कारण मतदान के बाद चुनाव की हार-जीत की अनौपचारिक घोषणा मीडिया के माध्यम से ही होती है जिसे ‘एसोसिएटेड प्रेस’ कहा जाता है। एक बार यह घोषणा हो जाने के बाद 20 जनवरी ‘इनॉग्रेशन डे’ को होने वाली शपथ से पहले बाकी औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं। इस बार रिपब्लिकन पार्टी न केवल राष्ट्रपति चुनाव जीती है, बल्कि साथ-साथ आयोजित सीनेट और हाउस के चुनावों में भी डेमोक्रेटिक पार्टी से अधिक प्रत्याशी जीती है।
इस जीत का एक तरफा श्रेय डॉनल्ड ट्रंप को दिया जाना गलत नहीं होगा जो पिछला चुनाव हारने के बाद लगातार लगे रहे और इस चुनाव में अपनी जान झोंक दी। इसका एक पहलू यह भी है कि 2020 के चुनाव के बाद से ट्रंप के विरुद्ध चल रहे मुकदमों के चलते ट्रंप के पास और कोई विकल्प नहीं था, इसलिए उन्होंने आर-पार की लड़ाई लड़ी। इन परिस्थितियों में एक बात तो तय है कि इस चुनाव के बाद ट्रंप न केवल अमरीका और रिपब्लिकन पार्टी के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं बल्कि, डेमोक्रेटिक पार्टी को भी लगातार अपने हमलों से जनता के बीच कमजोर और शिथिल साबित कर दिया। इसका भरपूर फायदा ट्रंप को इस चुनाव में भी मिला, क्योंकि ‘एसोसिएटेड प्रेस’ के प्रारंभिक डेटा के अनुसार डेमोक्रेटिक पार्टी से उनका ब्लैक और लैटिनो जैसा मूल वोटर भी खिसकता नजर आया। डेमोक्रेट्स का कमला को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाकर पहली अश्वेत महिला प्रत्याशी के रूप में पेश करने के प्रयास को भी ट्रंप ने यहां विफल कर दिया। ट्रंप की जीत का एक कारण डेमोक्रेट्स के शासन से पैदा हुई उदासीनता भी है, जहां डेमोक्रेट्स का कोई मजबूत नेतृत्व नजर नहीं आता। बहुत से इलाकों में जनता की यह राय थी कि 16 में से 12 वर्ष शासन करने के बाद डेमोक्रेट्स का ट्रंप को अमरीका के हालात का दोषी ठहराना उचित नहीं है।
चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप अपने किए गए वादों पर खरे उतरते हैं तो डेमोक्रेट्स को भविष्य में भी अपने खोए हुए आधार को हासिल करने में समस्या हो सकती है। इस चुनाव में यह भी साफ हो गया कि इमीग्रेशन, गैरकानूनी शरणार्थी, अपराध व कानून -व्यवस्था के मुद्दे अमरीकी जनता को आकर्षित कर पाए। चुनाव पूरा होने के बाद अब चूंकि ट्रंप का फिर से अमरीका के राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेना लगभग तय हो गया है, सबका ध्यान इस बात पर रहेगा कि अपने वादों के मुताबिक ट्रंप नतीजे दे पाते हैं या नहीं। ट्रंप ने अपने भाषण में अमरीका को फिर एक मजबूत देश बनाने का वादा किया है। अमरीका चुनाव के दौरान लगातार यह अटकलें भी लगाईं गई थीं कि ट्रंप का राजनीतिक व्यवहार काफी अप्रत्याशित है जो कि निवेशकों के लिए जोखिम भरा हो सकता है, यह अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा हो सकता है।
हालांकि ट्रंप जैसे-जैसे जीत के करीब बढ़ रहे थे, वैसे-वैसे डाउ जोन्स से लेकर सेंसेक्स तक सब में उछाल आने लगा, जो निवेशकों और उद्योगपतियों में उत्साह का प्रतीक है। अमरीका के चुनाव नतीजों के बाद भारत को भी पाने और खोने को काफी कुछ है। जहां ट्रंप और मोदी की दोस्ती को भारत के लिए लाभकारी बताया जा रहा है, वहीं ट्रंप की ‘मेक अमरीका ग्रेट अगेन’ की नीति और प्रवासियों को लेकर सख्त नीति से होने वाला संभावित नुकसान भी भारत के लिए एक चुनौती होगा।
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