ओपिनियन

Doctors day : डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास में न आए कमी

मरीजों के साथ संवेदनशील व्यवहार करना, उनकी पूरी बात ध्यान से सुनना और मधुरता से बोलना भी इलाज का हिस्सा होना चाहिए ।

Jul 01, 2021 / 08:43 am

विकास गुप्ता

Doctors day : डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास में न आए कमी

डॉ. सुरेश पाण्डेय (चिकित्सक और कई पुस्तकों के लेखक)

आज 1 जुलाई को समूचे भारत में डॉक्टर्स-डे Doctors day मनाया जा रहा है। यह ऐसा अवसर है, जब हर कोई चिकित्सकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता है। चिकित्सक रोगी को मौत के मुंह से भी खींच लाते हैं। कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के दौरान खासतौर पर सरकारी चिकित्सकों और पैरामेडिकल नर्सिंग स्टाफ ने जिस प्रकार से अपने प्राणों की बाजी लगाकर रोगियों की सेवा की है, उससे चिकित्सकों के प्रति सहज ही आदर भाव पैदा होता है। महामारी से लड़ते हुए कई चिकित्सकों ने अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। यही वजह है कि आज भी चिकित्सकों के प्रति लोगों में सम्मान का भाव है। इसके बावजूद कई बार अस्पतालों में चिकित्सकों और मरीजों के परिजनों के बीच मारपीट के मामले सामने आते रहते हैं। इससे साफ है कि चिकित्सकों और मरीजों के बीच विश्वास का रिश्ता कमजोर होता जा रहा है।

यह शिकायत बढ़ती जा रही है कि डॉक्टर अभिमानी, संवेदनहीन और स्वकेन्द्रित होते जा रहे हैं। वे जटिल मेडिकल शब्दों का प्रयोग कर मरीज को भ्रमित करते हैं, मरीजों की तकलीफ ठीक तरह से नहीं सुनते एवं मोटी फीस वसूलते हैं। दूसरी तरफ डॉक्टरों को लगता है कि मरीज बीमारी व इलाज के बारे में पूरी तरह नहीं समझते हुए भी डॉक्टरों को बात-बात पर दोष देते हैं। इंटरनेट या मित्रों के माध्यम से प्राप्त आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर डॉक्टर पर हावी होने का प्रयास करते हैं। वे डॉक्टरों को शक से देखते हंै। अविश्वास और नैतिकता की कमी से समाज का हर वर्ग प्रभावित हो रहा है। अस्पतालों में होने वाली मारपीट की घटनाएं अविश्वास एवं गलतफहमी के कारण ज्यादा होती हंै। आज भी अन्य पेशों की तुलना में लोग डॉक्टरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इसके बावजूद डॉक्टरों और मरीजों के बीच परस्पर विश्वास बढ़ाने की जरूरत है। डॉक्टर ईश्वर का नाम लेकर लोगों की तकलीफ कम कर सकता है, पर कभी भगवान नहीं बन सकता कि जीवन और मृत्यु का फैसला उसके हाथों में आ जाए। यदि ऐसा होता तो कोरोनाकाल खण्ड के दौरान एक भी चिकित्सक शहीद नहीं होता। डॉक्टर अपनी पढ़ाई और अनुभव के आधार पर चिकित्सा विज्ञान में उपलब्ध इलाज कर सकता है, पर इस इलाज का परिणाम हमेशा उसके हाथ में नहीं होता। सदियों से गीता के ज्ञान पर चलने वाले हमारे देश में यह समझना कठिन बात भी नहीं है। अस्पताल में भर्ती अपने किसी परिजन की मौत होने पर दुख होना स्वाभाविक है, पर क्या यह दुख अस्पतालों में तोड़-फोड़ करने या डॉक्टरों के साथ दुव्र्यवहार करने से ही शांत होगा?

साथ ही डॉक्टरों को भी सोचना होगा कि चिकित्सा केवल बीमारी की दवा लिखना या ऑपरेशन करना ही नहीं है, बल्कि इंसान को उसकी तकलीफ से राहत देना है। इसलिए मरीजों के साथ संवेदनशील व्यवहार करना, उनकी पूरी बात ध्यान देकर सुनना और मधुर बोलना भी इलाज का हिस्सा होना चाहिए। हो सकता है आप व्यवस्था से परेशान हों, परन्तु याद रखें कि आपके पास आने वाला मरीज आप से कहीं अधिक परेशान है। अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए कुछ डॉक्टर दूसरे डॉक्टरों द्वारा किए गए उपचार में कमियां निकालने लगते हैं। याद रखें दूसरों की बुराई करने वाले डॉक्टर पूरे चिकित्सा जगत के प्रति संदेह जगाते हैं। आज जरूरत है कि डॉक्टर खुद भी आत्म-विश्लेषण करें और स्वयं को मरीज की जगह रख कर देखें। साथ ही मरीज और समाज को भी डॉक्टरों की मजबूरियों को समझना होगा। ऐसे लोगों से दूर रहें, जो हर चीज को संदेह के चश्मे से देखते हों। कहते हैं कि अच्छा डॉक्टर वह है जिसे देखकर बातचीत कर मरीज की आधी बीमारी दूर हो जाए। इसके लिए परस्पर विश्वास बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

Hindi News / Prime / Opinion / Doctors day : डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास में न आए कमी

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.