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धर्म को आगे कर चुनाव जीतने की कोशिश में ट्रंप

डॉनल्ड ट्रंप जिस तरह चुनाव दर चुनाव अपनी लोकप्रियता स्थापित रख पाए हैं, उसके पीछे के कारण ऐसी सभाओं से समझे जा सकते हैं, जहां धर्म और आस्था के नाम पर लोगों को एकत्रित किया जाता है। फिर यह समझाया जाता है कि अमरीका की श्रेष्ठता , संस्कृति और अस्तित्व की पहचान खतरे में है। अंत में यह भी स्थापित कर दिया जाता है कि आज डॉनल्ड ट्रंप ही हैं जो अमरीका को इस संकट से उबार सकते हैं।

जयपुरOct 17, 2024 / 09:59 pm

Gyan Chand Patni

US Elections

‘अमरीका बनाम अमरीका’ पुस्तक के लेखक द्रोण यादव का अमरीका के चुनावी परिदृश्य का विश्लेषण

गत 12 अक्टूबर को करीब 20,000 लोग अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में अमरीकी संसद, कैपिटल हिल के सामने एकत्रित हुए। सुबह 8 बजे से शाम 7 बजे तक चले इस कार्यक्रम में लोग ईसा मसीह को याद कर प्रार्थना कर रहे थे कि अमरीका को पुन: महानता (मेकिंग अमरीका ग्रेट अगेन) के शिखर पर पहुंचाया जाए। मकसद था अमरीका के उन सभी सिद्धांतों की पुनस्र्थापना की ओर बढऩा जिनके आधार पर दुनिया का ये सबसे पुराना लोकतंत्र खड़ा किया गया है। हजारों की भीड़ लगातार ‘रिवाइवल, रिवाइवल, रिवाइवल’ के नारे लगा रही थी। यानी अमरीका की आस्था, संस्कृति और परंपराओं का पुनर्जीवन। सुबह भक्ति और आस्था के साथ आरंभ हुआ यह कार्यक्रम धीरे-धीरे तात्कालिक चुनावी मुद्दों की ओर बढ़ता चला गया और अंत में उसने राजनीतिक रूप ले लिया।
दरअसल, इस सभा में उन मुद्दों को रेखांकित किया जा रहा था, जो मुद्दे रिपब्लिकन प्रत्याशी और पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप उठाते आ रहे हैं। डॉनल्ड ट्रंप जिस तरह चुनाव दर चुनाव अपनी लोकप्रियता स्थापित रख पाए हैं, उसके पीछे के कारण ऐसी सभाओं से समझे जा सकते हैं, जहां धर्म और आस्था के नाम पर लोगों को एकत्रित किया जाता है। फिर यह समझाया जाता है कि अमरीका की श्रेष्ठता , संस्कृति और अस्तित्व की पहचान खतरे में है। अंत में यह भी स्थापित कर दिया जाता है कि आज डॉनल्ड ट्रंप ही हैं जो अमरीका को इस संकट से उबार सकते हैं। साथ ही इन सभाओं में कई तात्कालिक चुनावी मुद्दों को ईश्वर से जोड़कर पेश किया जाता है फिर चाहे वह एबॉर्शन, समलैंगिकता या अमरीकी संस्कृति पर कथित खतरे का मुद्दा ही क्यों न हो। अमरीकी जनता का एक बड़ा हिस्सा परंपरागत रूप से एक ही विचारधारा को संजोए रखना चाहता है और ट्रंप की लोकप्रियता का एक बड़ा आधार भी यही है, जिसे ट्रंप बनाए रखना चाहते हैं।
जब ट्रंप कहते हैं कि वे शरणार्थियों और प्रवासियों की घुसपैठ बंद करवा देंगे या बाहर निकाल फेकेंगे तब यह बयान बहुत से लोगों को अनर्गल लग सकता है लेकिन जिस वर्ग को बांधने के लिए ट्रंप ऐसी बातें कहते हैं, वह निश्चित ही उनका कट्टर समर्थन कर रहा है। इसके अलावा जब ट्रंप एबॉर्शन, असुरक्षा और अपराध जैसे मुद्दों पर मुखरता से अपनी योजनाएं लोगों के सामने रखते हैं, तब भी उनका लक्ष्य जनता में समर्थन को और पक्का करना है। इसके अलावा अमरीका के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अन्य देशों के युद्ध में दखल से विचलित लोगों को भी ट्रंप यह समझाने में कामयाब हो रहे हैं कि इसका भारी आर्थिक नुकसान देश को झेलना पड़ रहा है जिसकी जिम्मेदार डेमोक्रेटिक पार्टी ही है। इसीलिए जब ट्रंप यह दावा करते हैं कि उनके आते ही युद्ध विराम हो जाएगा, तो ट्रंप को इससे अतिरिक्त समर्थन हासिल हो रहा है। अमरीका में यह सोचने वाले लोग भी बहुत हैं कि पिछले 16 वर्षों में से 12 वर्ष तो डेमोक्रेट्स का शासन रहा है,तो समस्याओं के लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है। ट्रंप को बहुत से ऐसे लोगों का भी समर्थन प्राप्त है जो डेमोक्रेटिक पार्टी के लंबे शासनकाल से नाराज हैं और डेमोक्रेट्स को कमजोर नेतृत्व के रूप में देखते हैं। ये वे लोग हैं जो ट्रंप से भले ही कोई विशेष लगाव नहीं रखते हों लेकिन डेमोक्रेट्स के प्रति अपनी नाराजग़ी के कारण ही आज ट्रंप के समर्थन में हैं। डेमोक्रेट्स के प्रति नाराजगी का खमियाजा सीधे तौर पर कमला हैरिस को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि बहुत से इलाकों में डेमोक्रेटिक पार्टी के विरोध के कारण लोग कमला पर भी भरोसा नहीं जता पा रहे हैं। हालांकि, कमला के इस नुकसान की भरपाई समय-समय पर ट्रंप ख़ुद करते रहते हैं। कमला हैरिस अश्वेत, प्रवासी माता-पिता की संतान व महिला प्रत्याशी होने के नाते समर्थन और लोकप्रियता कमा रही है। इसके अतिरिक्त कमला को ट्रंप की बयानबाजी और धमकी भरे भाषणों से फायदा हो रहा है।
ट्रंप की कथित योजनाओं, भाषणों और विचारों से विचलित लोग कतई नहीं चाहते कि ट्रंप सत्ता हासिल करें। ट्रंप के भाषणों से पैदा होने वाले डर को तब अतिरिक्त आधार मिल जाता है जब उनके शासन में की गई ‘रेड’ को याद किया जाता है। मिसिसिपी में अमरीका के इतिहास की सबसे बड़ी ‘रेड’ हुई, 680 शरणार्थियों को अमरीका से बाहर करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था। ट्रंप का यह आक्रामक रवैया कई अमरीकियों को चिंता में डालता है। एक चर्चा यह भी है कि सत्ता में आने के बाद वे वहां बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। असल में 2020 का चुनाव हारने के बावजूद हार स्वीकार न करना और 6 जनवरी को संसद पर हुए हमले में भूमिका को लेकर ट्रंप के राजनीतिक मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़े किए जाते हैं। ट्रंप अगर सत्ता में आए तो बहुत से लोग मानते हैं कि शायद अमरीका पहले जैसा ना रहे, इसलिए वे लोग कमला को ट्रंप से बेहतर विकल्प मान रहे हैं। अमरीकी जनता के पास केवल दो ही विकल्प हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि मतदाताओं का इस बात पर ध्यान ज्यादा है कि किसको वोट नहीं दिया जाए, बजाय इसके कि किसको वोट देना है।

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