यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कैंसर के ज्यादातर मामलों का पता बहुत देर से चलता है। जबकि शुरुआती चरण में इलाज से बेहतर परिणाम आते है। कैंसर का शीघ्र पता लगाने के लिए जन सामान्य के लिए जांच किफायती व सहज उपलब्ध होनी चाहिए। ओरल कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ-साथ मेडिकल ऑफिसर, डेंटिस्ट, नर्सिंग स्टाफ जैसे सेवा प्रदाताओं को कैंसर के मामलों के निदान में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
डॉ. शुभकाम आर्य वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ
दुनिया भर में कैंसर का प्रकोप बढ़ रहा हैं। विश्व स्तर पर मृत्यु का यह दूसरा प्रमुख कारण है। कैंसर न केवल लोगों के स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौती है, बल्कि सामाजिक व आर्थिक परिप्रेक्ष्य में भी जीवन को प्रभावित करता है। सीधे तौर पर कैंसर से पीडि़त व्यक्ति ही नहीं पूरा परिवार, समाज और स्वास्थ्य प्रणाली पर शारीरिक भावनात्मक और वित्तीय दबाव पड़ता है। कैंसर की शीघ्र पहचान, रोकथाम और उपचार के बारे में लोगों में जागरूकता लाई जा सके, इसी मकसद से भारत में हर साल सात नवम्बर को राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस मनाया जाता है।
चिंता की बात यह है कि कैंसर के दूसरे रूपों से ज्यादा भारत में मुंह व गले के कैंसर प्रमुखता लिए हुए है। यह देखा गया है कि इनकी संख्या कुल कैंसर मामलों का लगभग 30 फीसदी है। नेशनल कैंसर रजिस्ट्रेशन प्रोग्राम के एक सर्वे के अनुसार भारत में प्रति एक लाख आबादी में 20 लोग मुख कैंसर से प्रभावित होते हैं। यह भी आकलन है कि लगभग 80-90 प्रतिशत मुंह व गले के कैंसर के मरीज किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन करते पाए गए हैं, चाहे वह धूम्रपान हो या चबाना। जहां गुटखा, खेनी के रूप में तम्बाकू चबाना मुंह, जीभ व गाल के कैंसर का तो बीडी, सिगरेट पीना गले व फेफड़े के कैंसर का कारण बनता हैं।
इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि खैनी व गुटखा के रूप में स्मोकलेस तंबाकू के इस्तेमाल के कारण अब 20-25 साल के युवाओं में भी यह बीमारी देखने को मिल रही है। युवा वर्ग बड़ी संख्या में तम्बाकू का किसी न किसी रूप में सेवन करते हैं। मुख व गले का कैंसर शरीर के अन्य भागों के कैंसर से कई मायने में भिन्न है। जहां इन्हें शुरुआती लक्षणों को देखकर आसानी से पहचाना जा सकता है, वहीं कुछ सावधानियां बरतकर व जीवनशैली में बदलाव करके इनसे बचा भी जा सकता है। कैंसर के शुरुआती लक्षणों में आवाज में बदलाव, निगलने में तकलीफ, खाना अटकना, मुंह के छाले या घाव जो दवाओं से ठीक नहीं होते, गर्दन में गांठ बनना आदि शामिल है ।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कैंसर के ज्यादातर मामलों का पता बहुत देर से चलता है। जबकि शुरुआती चरण में इलाज से बेहतर परिणाम आते है। कैंसर का शीघ्र पता लगाने के लिए जन सामान्य के लिए जांच किफायती व सहज उपलब्ध होनी चाहिए। ओरल कैंसर स्क्रीनिंग कार्यक्रम को मजबूत करने के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के साथ-साथ मेडिकल ऑफिसर, डेंटिस्ट, नर्सिंग स्टाफ जैसे सेवा प्रदाताओं को कैंसर के मामलों के निदान में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। भारत में कैंसर के सहज उपचार व निदान के परिदृश्य में भिन्नता है। आज भी कई इलाकों में लोगों को समय पर गुणवत्तापूर्ण निदान और उपचार नहीं मिल पाता है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। एक तो वैसे ही वहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित होती हैं, वहीं लोग अशिक्षा व जागरूकता की कमी की वजह से बजाय इलाज लेने के झाड़-फूंक और देसी नुस्खों में समय गंवा देते हंै। यह सुनिश्चित करने के लिए कि प्रभावी निदान और उपचार सेवाएं सभी के लिए सुलभ हों, कैंसर देखभाल को दूरदराज और छोटे केंद्रों में उन लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। इस कमी को पूरा करने के लिए समग्र दृष्टिकोण से एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है। कैंसर से लडऩे के लिए सरकार और स्वास्थ्य संगठनों को समन्वित प्रयास करने होंगे ताकि आने वाले वर्षों में कैंसर के प्रकोप को रोका जा सके।
एक तथ्य यह भी है कि पहले कैंसर के मामले ज्यादा नहीं होते थे क्योंकि लोगों की जीवनशैली संतुलित थी। इस जानलेवा बीमारी के मामले साल दर साल बढ़ते ही जा रहे हैं तो इसका कारण खान-पान और जीवनशैली में आता जा रहा बदलाव ही है। विशेषज्ञ कहते भी आए हैं कि जीवनशैली में बदलाव किया जाए तो कैंसर के मामले एक हद तक कम किए जा सकते हैं। बचाव उपाय सजगता के साथ होने ही चााहिए। आधुनिक उपचार पद्धति का मकसद बीमारी को ठीक करने के साथ जीवन की अच्छी गुणवत्ता भी सुनिश्चित करना है।
Hindi News / Prime / Opinion / मरीज की पहुंच में हो जांच और उपचार तो बच सकती है जान