क्रोध और करुणा दो विपरीत ध्रुव हैं। जब नकारात्मक भावना विकसित होती है, तो हम वास्तविकता नहीं देख सकते। जब हमें निर्णय करने की आवश्यकता होती है और चित्त पर क्रोध हावी हो जाता है, तो संभावना है कि हम गलत निर्णय लेंगे। कोई भी गलत फैसला नहीं करना चाहता, पर बुद्धि और मस्तिष्क का वह हिस्सा जो सही-गलत में अंतर करने वाला है, वह क्रोध के समय ठीक तरह से काम नहीं करता है। यहां तक कि महान नेताओं ने भी ऐसा अनुभव किया है। ध्यान रहे करुणा व स्नेह मस्तिष्क को अधिक आसानी से कार्य करने में सहायता करते हैं।
करुणा हमें आंतरिक शक्ति देती है। यह हमें आत्मविश्वास देती है, जिससे भय कम होता है। इस तरह हमारा दिमाग भी शांत रहता है। आधुनिक युग में हम बाहरी विकास पर अत्यधिक सोचते हैं, लेकिन दुखी रहते हैं। साफ है कि बाहरी विकास पर्याप्त नहीं है। वास्तविक सुख और संतुष्टि भीतर से आनी चाहिए। उसके लिए बुनियादी तत्व हैं करुणा और स्नेह। जीवन में करुणा का विकास किए बिना जीवन में सुख का अनुभव नहीं किया जा सकता। इसलिए क्रोध से बचें और स्वभाव में करुणा को स्थान दें।