भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की कोख से निकले भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘हम भारत के लोग’ शब्दों का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय जनता की जीवन शैली का सार सबको साथ लेकर आपसी मेलजोल से शांतिमय जीवन जीते रहना है। यही भारतीय लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना या सनातन विरासत हैं। भारतीय राजनीति में जितनी भी राजनीतिक विचारधाराएं हैं, सबको अपनी राजनीतिक सामाजिक धार्मिक, आध्यात्मिक और आर्थिक समझ को अपने-अपने तरीके से जनता के समक्ष खुलकर रखने का पूरा-पूरा अवसर और अधिकार है। चुने गए जनप्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों को यह भ्रम हो सकता है कि वे सर्वशक्तिमान और अपरिहार्य है। पर भारतीय मतदाता अपने जनादेश को लेकर आजादी के बाद से प्रत्येक आम चुनाव में एकदम स्पष्ट संकेत देने से पीछे नहीं रहता है।
राजनीतिक दलों के समर्थक, कार्यकर्ता और कर्ताधर्ता अपनी विवेकशीलता को अक्सर त्याग दिया करते है पर भारतीय मतदाता एक समान सोच विचार और सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि का न होते हुए भी लोकतंत्र और संविधान की तेजस्विता को लेकर चैतन्य बना रहता है। साथ ही साथ अपनी निर्भीक और लोकतांत्रिक भूमिका को कभी नहीं भूलता है। 2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों से जो राजनीतिक घटनाचक्र भारतीय राजनीति में चला, उसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में जो असंतुलन उभरा उसका पटाक्षेप 2024 के जनादेश में स्पष्ट दिखाई देता है। 2024 के लोकसभा के आम चुनाव में एक अजीब असमंजस, तनाव और आशा-निराशा का राजनीतिक वातावरण होने के बाद भी शांतिपूर्ण तरीके से ये चुनाव सम्पन्न हुए।
यह भारतीय लोकतंत्र की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और परिपक्वता का जीवंत उदाहरण है। भारतीय राजनीति और राजनेता निरन्तर अकारण उत्तेजित होते रहते हैं। उनमें शांतचित्तता का निरन्तर अभाव बना रहता है। पर इसके एकदम उलट भारतीय मतदाता धीरज के साथ मौन रहकर हमेशा चुनाव परिणाम में ही बोलता है। भारतीय मतदाता भारतीय राजनीति के राजनीतिक दल को चुनाव में जीत भी दिलाता है और हराता भी है। भारतीय मतदाता के जनादेश की एक अनोखी विशेषता यह भी है कि उसने भारतीय राजनीति के कई राजनीतिक दलों शानदार तरीके से जिताया तो हराया भी।
मुश्किल यह है कि भारतीय राजनीति में राजनीतिक दल केवल अपनी पतंग को ही निरंतर ऊंची उड़ान पर देखने के आदी हो चुके हैं। पर भारतीय मतदाता किसी को भी आजीवन पतंगबाजी का एकाधिकार नहीं देता। भारतीय आम चुनावों के परिणामों ने छोटे से छोटे राजनीतिक समूह से लेकर अपने आप को अजेय या अपरिहार्य मानने वाले राजनीतिक समूहों को अपने जनादेश से एक संदेश जरूर दिया है कि लोकतंत्र पर किसी अकेली राजनीतिक जमात का एकाधिकार नहीं है। ‘सबको इज्जत, सबको काम’ देना ही 2024 के आम चुनाव में भारतीय मतदाता का स्पष्ट जनादेश है। जनादेश के इस अर्थ को समझकर पक्ष-विपक्ष दोनों को अपनी-अपनी राजनीतिक भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। लोकतंत्र में यही राजनीति का मूल है।
— अनिल त्रिवेदी