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बिहार: शराबबंदी पर हां या ना के विवाद में प्रशांत किशोर का शराब वाला सुराज

जहरीली शराब दुखांतिका के बीच

जयपुरOct 21, 2024 / 10:43 pm

Nitin Kumar

डॉ. संजीव मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार और स्तम्भकार
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बिहार में एक ओर सिवान और छपरा में जहरीली शराब से मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर शराबबंदी हटाने की प्रशांत किशोर यानी पीके की घोषणा गांधी और अंबेडकर के साथ उनके वैचारिक ऐक्य पर सवाल खड़े कर रही है, जिससे बिहार का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। दरअसल, महात्मा गांधी शराब के जोरदार विरोधी थे और यह बात देश के बच्चे-बच्चे को पता है। मोहनदास करमचंद गांधी ने अपनी किताब ‘प्रोहिबिशन ऐट एनी कॉस्ट’ के पेज नौ पर लिखा था, ‘यदि मुझे एक घंटे के लिए पूरे भारत का तानाशाह बना दिया जाए तो जो एक चीज मैं करूंगा वह यह कि देश की तमाम शराब दुकानों को बिना कोई मुआवजा दिए बंद कर दूंगा।’ यहीं गांधी और प्रशांत किशोर के विचारों में अंतर साफ नजर आता है। गांधी सत्ता प्राप्त होने की स्थिति में एक घंटे के अंदर पूर्ण शराबबंदी की बात करते हैं, वहीं प्रशांत किशोर सत्ता प्राप्ति पर एक घंटे के भीतर शराबबंदी हटाने की बात करते हैं।
बिहार को देश की राजनीति में बदलाव का प्रेरक कहा जाता है। उसी बिहार से प्रशांत किशोर यानी पीके ने राजनीतिक शुरुआत के लिए दिन तो गांधी जयंती का चुना, अपनी नई पार्टी ‘जन सुराज’ के झंडे पर गांधी के साथ अंबेडकर का चित्र लगाने की बात भी कही, किंतु यह बड़ी घोषणा भी की कि उनकी सरकार बनने पर वह बिहार में अप्रेल 2016 से लागू शराबबंदी भी हटा देंगे। इस तरह गांधी और अंबेडकर को साथ लेकर चलने वाला प्रशांत किशोर का यह सुराज ‘शराब वाला सुराज’ है, जबकि गांधी और अंबेडकर दोनों ही शराब के मुखर विरोधी और शराबबंदी के पूर्ण पक्षधर थे। महात्मा गांधी पूर्ण शराबबंदी से कम, किसी भी स्थिति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। लगभग सौ साल पहले 16 अप्रेल 1925 को ‘यंग इंडिया’ में गांधी ने लिखा था, ‘शराब कोई मामूली बात नहीं है। कोई भी नरम और आसान नीति इस भयानक बुराई से नहीं निपट सकती। पूर्ण निषेध के अलावा कोई भी उपाय लोगों को इस अभिशाप से नहीं बचा सकता।’ प्रशांत किशोर ने शराबबंदी हटाने के लिए राजस्व के नुकसान का तर्क दिया है, जबकि महात्मा गांधी ने राजस्व के नुकसान को पूरी तरह खारिज कर दिया था। 25 जून 1931 को ‘यंग इंडिया’ में उन्होंने शराब से राजस्व अर्जित करने के स्थान पर अन्य खर्च कम करने की बात लिखी थी। प्रशांत किशोर ने गांधी के अलावा डॉ. अंबेडकर को भी अपनी पार्टी के झंडे में शामिल कर गांधी के साथ अंबेडकर के आदर्शों पर चलने का संकेत किया। यह संयोग ही है कि गांधी की ही तरह अंबेडकर भी शराबबंदी के पक्षधर और शराब पीने के मुखर विरोधी थे। 1956 में बौद्ध धम्म ग्रहण करते समय डॉ. अंबेडकर की जो 22 प्रतिज्ञाएं खासी चर्चित हैं, उनमें से एक थी, ‘मैं शपथ लेता हूं कि शराब और नशे का सेवन नहीं करूंगा।’ इससे स्पष्ट है कि बाबा साहब अंबेडकर शराब के किस हद तक विरोधी थी। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति राजनीति की शुरुआत ही शराबबंदी के विरोध को लेकर करे और कहे कि सत्ता में आने के एक घंटे के भीतर वह राज्य में दोबारा शराब बिकवाने लगेगा, वह व्यक्ति बाबा साहब की वैचारिकी से कितना दूर है, यह बात स्पष्ट हो जाती है।
गांधी और अंबेडकर, दोनों का ही मत शराब को लेकर स्पष्ट था। वे नहीं चाहते थे कि देश में शराब की उपलब्धता को सुगम किया जाए। यही कारण है कि गुजरात में 1960 में लागू की गई शराबबंदी खत्म करने का साहस वहां की कोई सरकार नहीं कर पाई है। गुजरात के बाद मिजोरम, नगालैंड और बिहार में भी शराबबंदी लागू की गई। बिहार में नीतीश कुमार शराबबंदी लागू कर नायक बने, वहीं अब प्रशांत किशोर सत्ता की चाबी मिलते ही शराबबंदी समाप्त करने की बात कर रहे हैं। यदि ऐसा संभव हुआ तो गांधी-अंबेडकर के साथ शराब वाला सुराज कैसा होगा, यह एक यक्ष प्रश्न है।

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