ओपिनियन

बड़ी आर्थिक शक्तियों को करना पड़ सकता है रिसेशन के दबाव का सामना

मध्य-पूर्व सीरियाई उथल-पुथल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इजरायल-हमास-लेबनान-ईरान संघर्ष भी वर्ष 2024 का एक प्रमुख अध्याय रहा। यूरेशियाई क्षेत्र भी एक ऐसा युद्ध मैदान बन चुका है, जहां शांति की संभावनाएं अभी न के बराबर हैं। 2025 में इन देशों के बीच नए संघर्ष और टकराव का माहौल बन चुका है।

जयपुरDec 25, 2024 / 07:28 pm

Nitin Kumar

Israeli air strikes in Lebanon

डॉ. रहीस सिंह
अंतरराष्ट्रीय और आर्थिक मामलों के जानकार
……………………………………………………………………
आज की दुनिया कई तरह के विभाजनों और टकरावों से गुजरते हुए नए वर्ष में प्रवेश कर रही है। ये विभाजन और टकराव कहीं विचारधाराओं के हैं तो कहीं सभ्यतागत। कहीं धार्मिक और एथनिक हैं, तो कहीं भू-राजनीतिक। इनकी अभिव्यक्ति कहीं लघु स्तर के युद्धों के रूप में, तो कहीं बड़े युद्धों रूप में होती रहती है। संभव है कि इनकी आवृत्ति और क्षमता नए वर्ष में बढ़े। मध्य-पूर्व जिस खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है और रूस-यूक्रेन युद्ध जिस प्रकार से ‘रेड लाइन’ पार करते हुए ‘न्यू वॉर जोन’ की ओर खिसक रहा है। यह शांति का संकेत तो नहीं है। दक्षिण एशिया कूटनीतिक विसंयोजन से गुजर रहा है और एशिया-प्रशांत युद्धोन्माद की छाया में है। ऐसे में यह प्रश्न उठाना लाजिमी है कि साल 2025 दुनिया को किस दिशा में ले जाएगा?
वर्ष 2024 ने अपने अंतिम छोर तक पहुंचते-पहुंचते मध्य-पूर्व में एक अध्याय और लिख दिया। यह अध्याय है असद रेजीम के समापन का। 7 दिसंबर को ‘सदर्न ऑपरेशंस रूम’ नामक समूह के नेतृत्व में जैसे ही फोर्सेज दक्षिण की ओर से ‘रिफ डिमास्क’ पहुंचीं, सीरियाई आर्मी ने सीरिया के मल्टीपल पॉइंट्स से अपना नियंत्रण हटाना शुरू कर दिया। इसके ठीक बाद विपक्षी मिलीशिया ‘तहरीर अल-शाम’ और तुर्की समर्थित ‘सीरियन नेशनल आर्मी’ ने उत्तर में होम्स शहर से विद्रोह शुरू कर दिया। 8 दिसंबर को विद्रोही बलों ने जैसे ही डेमस्कस की ओर बढऩा शुरू किया, बशर अल-असद देश छोडक़र मॉस्को चले गए और असद रेजीम खत्म हो गई, लेकिन यह सीरियन अस्थिरता और संघर्ष पर ‘फुल स्टॉप’ नहीं है, क्योंकि सीरिया के टुकड़ों पर विद्रोही और कुछ भाग पर सीरियाई शासन का नियंत्रण है। खास बात यह है कि इनमें भी एकता नजर नहीं आ रही है। तो क्या यह सीरिया की समस्या का अंत नहीं, शुरुआत है? एक बात और, असद रेजीम के पतन में रैसेप तैयप एर्दोगान ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ विश्वासघात है और पुतिन की नाकामी कि वे यह अनुमान नहीं लगा पाए कि टर्की नाटो का सदस्य है, तो रूस से मित्रता कैसी? तो क्या यह खेल की शुरुआत है, अंत होना शायद अभी बाकी है। अंत पुतिन की प्रतिक्रिया पर निर्भर करेगा, जो अब 2025 में ही होगा।
मध्य-पूर्व सीरियाई उथल-पुथल तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि इजरायल-हमास-लेबनान-ईरान संघर्ष भी वर्ष 2024 का एक प्रमुख अध्याय रहा। हमास-इजरायल टकराव से शुरू हुआ एक संघर्ष गाजा से बेरूत, बेरूत से तेहरान और अंतत: डेमस्कस तक पहुंच गया। इस नए संघर्ष की शुरूआत हमास की तरफ से हुई जब उसने (7 अक्टूबर 2023) इजरायल को निशाना बनाकर बड़ी संख्या में रॉकेट दागे, जिसमें 1200 इजरायलियों की मौत हुई थी और 250 बंधक बनाए गए थे। यह सही अर्थों में इजरायल के अस्तित्व पर हमला था, तो प्रतिक्रिया भी प्रभावी होनी थी। हुई भी, इजरायली डिफेंस फोर्सेज ने गाजा को जमींदोज कर दिया और हमास नेताओं को एक-एक कर मार गिराया। जुलाई 2024 में हमास चीफ इस्माइल हानिया और अक्टूबर 2024 में याह्या शिनवार की हत्या के बाद हमास शक्तिहीन तो हो गया, लेकिन यह लड़ई खत्म हो गई है, ऐसा भी नहीं। इसके बाद इजरायली डिफेंस फोर्सेज लेबनान में हिज्बुल्लाह नेता नसरुल्ला को भी मारने में सफल रही। लेकिन नसरल्ला की मौत को हिजबुल्ला का अंत नहीं माना जा सकता। वे इजरायल से जीत तो नहीं पाएंगे, बल्कि उसे थकाने की कोशिश करेंगे। यह बात तो इजराइल के ऑफिस ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल हरजी हैलेवी भी मान रहे हैं कि नसरुल्ला का खात्मा अंत नहीं है। इसके बाद इजरायल ने ईरान को निशाना बनाया और बदले में ईरान ने 300 से अधिक मिसाइलें व किलर ड्रोन इजराइल पर दागे। ईरान की तरफ से की गई प्रतिक्रिया ने मध्य-पूर्व में पहले से चले आ रहे युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया, हालांकि डेमस्कस में हुए परिवर्तन ने अभी ईरान को रोक दिया है। लेकिन तेल अवीव और तेहरान की तरफ से होने वाली कार्रवाईयों पर लगे अल्पविराम, पूर्ण विराम में बदल पाएंगे ऐसा नहीं लगता। इजरायली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट कह चुके हैं कि ‘लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है।’ कारण यह कि ऑक्टोपस का सिर अभी कटा नहीं है (इजराइल के प्रधानमंत्री रहे बेनेट ने कहा था कि तेहरान ऑक्टोपस का सिर है, लेबनान में हिजबुल्लाह, गाजा में हमास और यमन में हूती उसके हाथ हैं)। संभव है कि लड़ाई अब प्रॉक्सी नहीं, प्रत्यक्ष रूप से हो।
यूरेशियाई क्षेत्र भी मध्य-पूर्व की तरह एक ऐसा युद्ध मैदान बन चुका है जहां शांति की संभावनाएं अभी न के बराबर हैं। अभी पिछले दिनों मॉस्को से करीब सवा सात सौ किलोमीटर दूर रूस के कजान शहर पर यूक्रेन ने 8 ड्रोन अटैक किए, जिनमें से 6 रिहायशी इलाकों में थे। मीडिया रिपोट्र्स के अनुसार ये हमले उसी तरह के थे जैसे 9/11 में ‘वल्र्ड ट्रेड सेंटर’ पर हुए थे। इससे पहले यूक्रेन ने रूसी शहर कुस्र्क पर अमरीकी मिसाइलें दागी थीं। यूक्रेन द्वारा अमरीकी ‘आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम’ से रूस में ‘डीप स्ट्राइक’ यह दिखाता है कि रूस-यूक्रेन युद्ध रेड लाइन पार कर चुका है। प्रतिक्रिया में रूस ने ‘रिवाइज्ड न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन’ पेश कर दी, जो रूस को ‘न्यूक्लियर वॉर’ की ओर ले जा सकती है। पुतिन ने कहा भी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध अब ‘क्षेत्रीय विवाद’ नहीं रह गया, बल्कि यह ‘वैश्विक टकराव’ में बदल गया है। तो क्या यहां से किसी तीसरे विश्व युद्ध की शुरुआत भी हो सकती है?
मॉस्को की पश्चिमी दुनिया के साथ लड़ाई सिर्फ जमीन के ऊपर ही नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्थाओं और बाजारों की भी है। दो ब्लॉक बनते दिख रहे हैं जिसमें एक तरफ न्यूयॉर्क स्थापित वित्तीय संस्थाएं और दूसरी तरफ शंघाई और बीजिंग में स्थापित उसके विकल्प जो सॉफ्ट वॉर भी लड़ रहे हैं। जी-7 देश क्रेमलिन के खिलाफ ‘इकोनॉमिक वॉर’ लड़ रहे हैं तो बीजिंग-मॉस्को ब्रिक्स इकोनॉमीज के जरिए इसे काउंटर करने की कोशिश में हैं। खतरा यह है कि बाजारों का युद्ध, कहीं हथियारों से न लड़ा जाने लगे। ये सभी लक्षण वही हैं, जो दूसरे विश्व युद्ध से पहले उभरते दिखे थे। जनवरी में अमरीका ओवल ऑफिस से ट्रंप की न्यू रेजीम की शुरुआत होगी, बहुत कुछ इसकी चालों पर भी निर्भर करेगा।
बात दक्षिण एशिया की करें, तो यह भी कुछ विसंयोजनों से गुजर रहा है। बांग्लादेश इसका मुख्य उदाहरण है, जिसमें पाकिस्तान, नेपाल, मालदीव और श्रीलंका भी शामिल किए जा सकते हैं। बांग्लादेश सबसे संवेदनशील मुद्दा है, जहां आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ प्रोटेस्ट अन्तत: सरकार को उखाड़ फेंकने में कामयाब हो गया। प्रधानमंत्री शेख हसीना का बांग्लादेश छोड़ कर भागने और प्रोटेस्टर्स द्वारा बंगबंधु शेख मुजीबुर्ररहमान की प्रतिमाएं तोडऩे और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के बाद यह समझ में आ गया कि इस आंदोलन में सिर्फ छात्र नहीं थे। उन्हें मोहरा बनाया गया, पर्दे के पीछे शक्तियां और थीं, जिनका मकसद शेख हसीना को उखाड़ फेंकना था। इनमें जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी ताकतें शामिल थीं। जो भी हो सरकार और प्रोटेस्टर्स के बीच ‘चेक एंड मेट’ गेम तो जल्द ही समाप्त हो गया, लेकिन बांग्लादेश को एक नए संघर्ष की ओर धकेल दिया, जिसके प्रभाव 2025 में दिखेंगे।
दक्षिण एशिया की बात करते समय भारत को कैसे छोड़ा जा सकता है, जहां वर्ष 2024 की शुरुआत में ही देश के हृदय स्थल अयोध्या (उत्तर प्रदेश) में दिव्य एवं श्रीराम मंदिर का निर्माण सम्पन्न हुआ। इसने उत्तर प्रदेश के टूरिज्म में एक बड़ा नया आयाम जोड़ दिया। यह आयाम है स्पिरिचुअल टूरिज्म का है, जो वैयक्तिक संतुष्टि तो बढ़ाएगा ही, कल्चरल इकोनॉमी में भी वैल्यू एडिशन करेगा। मंदिर निर्माण के साथ ही रामायण परिपथ का निर्माण हुआ, जो उत्तर प्रदेश की कल्चरल इकोनॉमी का एक ऐसा परिपथ निर्मित करेगा जो राज्य सकल घरेलू उत्पाद का आकार बढ़ाने के साथ इस क्षेत्र के लोगों को ‘ईज ऑफ लिविंग’ की ओर ले जाएगा।
बहरहाल 2024 जिन चुनौतियों के साथ 2025 में प्रवेश कर रहा है, वे हाल फिलहाल समाप्त होने वाली नहीं हैं। अभी संभव है कि बड़ी आर्थिक शक्तियों को रिसेशन जैसे दबाव का सामना करना पड़े। ऐसी स्थिति कई प्रकार के विभाजनों, संघर्षों और टकरावों को बढ़ाएगी।

Hindi News / Prime / Opinion / बड़ी आर्थिक शक्तियों को करना पड़ सकता है रिसेशन के दबाव का सामना

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.