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महाशक्ति बनने के लिए छोडऩी होगी पुरानी लीक

इस बात को ध्यान में रखना होगा कि भारत की जीडीपी का भविष्य सिर्फ अधिक उपभोग में नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार एवं डिजिटल पावर के माध्यम से अधिक सृजन में भी निहित है। अर्थात उपभोग एवं सृजन के दोनों पहिए अन्य पहियों एवं तंत्रों के साथ मिलकर ही देश को आर्थिक महाशक्ति बना सकते हैं।

जयपुरJul 16, 2024 / 08:38 pm

Gyan Chand Patni

प्रतीकात्मक तस्वीर

प्रो. डी. पी. शर्मा, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन से जुड़े डिजिटल डिप्लोमेट एवं सूचना तकनीकी विशेषज्ञ

भारत कोरानाकाल की आर्थिक अनिश्चितता से करीब-करीब उबर चुका है। अब देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए नीतिगत ठोस कदम उठाने चाहिए, लेकिन पुराने ढर्र्रे को छोड़कर कुछ नवाचार पर भी ध्यान देना होगा। निवेश शक्ति पर ध्यान केंद्रित करते हुए बुनियादी ढांचे और विनिर्माण को बढ़ावा देना होगा। सड़कों, बिजली ग्रिड और डिजिटल नेटवर्क जैसी महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने की सतत जरूरत है ताकि नए रोजगार पैदा किए जा सकें।
यदि नेटवर्क कनेक्टिविटी बढ़ेगी तो आगे निवेश आकर्षित होगा जो सार्वजनिक-निजी भागीदारी बुनियादी ढांचे के अंतर को पाटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इसके साथ ही व्यवसाय के अनुकूल माहौल बनाने और टारगेट प्रोत्साहन की पेशकश करने से घरेलू और विदेशी कंपनियों को विनिर्माण में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित भी किया जा सकता है। इससे न केवल आयात पर निर्भरता कम होगी बल्कि निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा जो रोजगार सृजन को एक नई ऊर्जा प्रदान कर सकता है। साथ ही मानव शक्ति का कौशलयुक्त सशक्तीकरण और व्यवसाय जगत में उत्साह पैदा करना भी जरूरी है। कौशल विकास से युवाओं को कुशल बनाना या उन्हें पुन: कुशल (रीस्किल) बनाने पर ध्यान केंद्रित करने से रोजगार की स्थितियां सुधर सकती हैं। मगर सनद रहे कि आइटीआइ और पॉलिटेक्निक के पुराने ढर्रे से बचना होगा। अब हमें बाजार, प्रयोग और क्वालिटी आधारित प्रशिक्षण पर ध्यान देना ही होगा। ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों को उद्योग की जरूरतों के साथ जोड़कर उत्पादकता और नवाचार दोनों को बढ़ावा देना होगा।
आज भी भारत में सरलता से व्यापार करने एवं इनोवेशन के लिए अनेक सरकारी जटिलताओं में सुधार की आवश्यकता है। सरकारी नौकरियां चाहे चपरासी की क्यों न हों, अब भी उच्च प्रशिक्षित या उच्च शिक्षित युवाओं के लिए अति आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। सरकार की स्थाई नौकरी का तिलिस्म अब भी स्टार्टअप, इनोवेशन, कॉर्पोरेट सैलरी पर भारी पड़ रहा है। असल में भारत में सरकारी नौकरी में सुविधाओं की भरमार और जिम्मेदारी के अभाव ने कई जटिल समस्याएं पैदा की हैं। कर्मचारी चाहे वह निजी क्षेत्र का हो या सरकारी क्षेत्र का, सरकार की नजर में सिर्फ कर्मचारी होना चाहिए। सरकार स्वास्थ्य, बच्चों की शिक्षा, महंगाई भत्ता, हाउसिंग जैसी सुविधाओं में सरकारी कर्मचारियों के साथ ही निजी कर्मचारियों के लिए भी नीति बनाकर एक आनुपातिक संतुलन स्थापित कर सकती है।
भारत को आजादी के अमृतकाल में अब सरकारी क्षेत्र के कर्मचारी एवं निजी क्षेत्र के कर्मचारी के बीच असामान्य कुलीनता और भेदभाव को मिटाना होगा ताकि देश में सरकारी नौकरी के आकर्षण को कम करके प्रोफेशनल प्रतिस्पर्धा का माहौल बनाया जा सके। सरकारी खजाने पर सबका अधिकार न्यायसंगत और तर्कसंगत होना चाहिए । साथ ही स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तकनीकी स्टार्टअप के लिए अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर अनुदान और टैक्स छूट आवश्यक है। ‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकारी लालफीताशाही से मुक्ति जरूरी है। इसके अतिरिक्त डिजिटल डिवाइड को कम करने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और डिजिटल मार्केटिंग टूल का लाभ भी सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को प्रशिक्षण देकर गांवों तक पहुंचाया जा सकता है ताकि विकास के मॉडल की रिवर्स इंजीनियरिंग कर शहर से गांवों की ओर मोड़ा जा सके और गांवों के प्रोडक्ट्स भी दुनिया के किसी भी कोने में बेचे जा सकें। भारत को गैर परम्परागत ऊर्जा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जैव प्रौद्योगिकी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि नए उद्योग और उच्च मूल्य वाले निर्यात तैयार हो सकें।
सन 2021 में भारत वैश्विक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में तीसरा स्थान प्राप्त कर एक पावर हाउस बनने की ओर अग्रसर था, मगर 2023 में सबसे अधिक वित्त पोषित भौगोलिक क्षेत्रों की वैश्विक रैंकिंग में चौथे स्थान पर फिसल गया है जिसे सुधारने की जरूरत है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर खास ध्यान देने की भी जरूरी है। कोरोनाकाल के बाद एक बार फिर से सभी को कृषि का महत्त्व पता चला। भारत आज भी कृषि प्रधान देश है। तकनीकी हस्तक्षेप और बेहतर सिंचाई प्रणाली के माध्यम से कृषि उत्पादकता बढ़ाने से न केवल खाद्य सुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण आबादी के भीतर आय सृजन के नए अवसर भी पैदा होंगे।
सकारात्मक बात यह है कि आज अनेक उच्च शिक्षित लोग देश एवं विदेश की उच्च स्तरीय नौकरियां छोड़कर वैज्ञानिक खेती में सफलता का परचम लहरा रहे हैं। सरकार को इन तक पहुंचने की नीति बनानी चाहिए और उनके मॉडल्स को आदर्श बनाकर ग्रामीण भारत में एक सकारात्मक माहौल पैदा करना चाहिए। इसके साथ ही ग्रामीण बुनियादी ढांचे का समुचित विकास करने की जरूरत है। यानी ग्रामीण सड़कों, कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और बाजार पहुंच में निवेश से किसान सशक्त होंगे, कृषि-प्रसंस्करण को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही ग्रामीण क्षेत्र में भी मांग को बढ़ावा मिलेगा। इस बात को ध्यान में रखना होगा कि भारत की जीडीपी का भविष्य सिर्फ अधिक उपभोग में नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार एवं डिजिटल पावर के माध्यम से अधिक सृजन में भी निहित है। अर्थात उपभोग एवं सृजन के दोनों पहिए अन्य पहियों एवं तंत्रों के साथ मिलकर ही देश को आर्थिक महाशक्ति बना सकते हैं।

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