bell-icon-header
ओपिनियन

पुरातन और विज्ञान : आर्यभट्ट और पृथ्वी का घूर्णन

विडंबना देखिए भारत समेत पूरी दुनिया में कोपरनिकस का ही सिद्धांत मान्य है। क्या इस खगोलीय खोज का श्रेय आर्यभट्ट को नहीं मिलना चाहिए?

May 10, 2021 / 08:23 am

विकास गुप्ता

aryabhata

प्रमोद भार्गव, ( लेखक एवं साहित्यकार, मिथकों को वैज्ञानिक नजरिए से देखने में दक्षता )

भारतीय वैज्ञानिक आर्यभट्ट ने आज से करीब 1500 वर्ष पूर्व ही यह ज्ञात कर लिया था कि पृथ्वी घूमती है, जबकि पौलेंड के वैज्ञानिक निकोलस कोपरनिकस ने यही सिद्धांत आज से करीब 500 वर्ष पहले प्रतिपादित किया। विडंबना देखिए भारत समेत पूरी दुनिया में कोपरनिकस का ही सिद्धांत मान्य है। क्या इस खगोलीय खोज का श्रेय आर्यभट्ट को नहीं मिलना चाहिए?

आर्यभट्ट बिहार के पाटलिपुत्र के निकट कुसुमपुर ग्राम में 13 अप्रेल 476 को जन्मे थे। मात्र 23 वर्ष की उम्र में उन्होंने ‘आर्यभट्टियम’ ग्रंथ लिखा, जिसमें नक्षत्र-विज्ञान और गणित से संबंधित 121 श्लोक हैं। आर्यभट्ट ने गणित, काल-क्रिया और वृत्त तीन सिद्धांत दिए। आर्यभट्ट ऐसे अनूठे खगोलविद् हैं, जिन्होंने पहली बार सुनिश्चित किया कि ग्रहों का एक दिवसीय भ्रमण पृथ्वी के घूमने का कारण है। आर्यभट्ट ने सूर्य का चक्कर लगाने वाले वृत्तों (गोलों) का भी वर्णन किया है। आर्यभट्ट ने ही बताया कि पृथ्वी सभी दिशाओं में वृत्ताकार तथा अण्डाकार है। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूर्णन करती है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। आर्यभट्ट ने पृथ्वी की परिधि की भी गणना की, जो वर्तमान में आधुनिकतम उपकरणों से नापी गई परिधि से मात्र एक प्रतिशत कम है। उन्होंने इसे उस कालखण्ड में प्रचलित ‘योजन’ पैमाने से नापा था।

आर्यभट्ट के समकालीन वराहमिहिर और उनके बाद के गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त और भास्कर प्रथम ने उनके ग्रंथों की व्याख्या करते हुए माना कि आर्यभट्ट ने अपने सिद्धांत प्राचीन ‘सूर्य सिद्धांत’ ग्रंथ के आधार पर प्रतिपादित किए थे। आर्यभट्ट कोई पानी पर लकीर नहीं खींच रहे थे, बल्कि परंपरागत उपकरणों से पृथ्वी के घूमने के सिद्धांत को रेखांकित कर रहे थे। उनके निष्कर्ष तथ्यों के आधार पर थे।

Hindi News / Prime / Opinion / पुरातन और विज्ञान : आर्यभट्ट और पृथ्वी का घूर्णन

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.