ओपिनियन

पुरातन और विज्ञान: ध्रुव के ‘तारा’ बनने का खगोलशास्त्र

‘हे ध्रुव! मैं तुम्हें वह स्थान देता हूं, जो सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि आदि ग्रह-नक्षत्रों, सप्त ऋषियों और संपूर्ण विमानचारी देवगणों से ऊपर है।

Oct 12, 2020 / 02:31 pm

shailendra tiwari

हमारे अवचेतन में यह धारणा स्थापित है कि प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में उल्लेखित मिथकों से जुड़े किस्से सिर्फ धर्म आधारित मोक्ष के पर्याय हैं। उनमें विज्ञान के आधार-सूत्र खोजना महज दुराग्रह है। चलो, दुराग्रह ही सही, हम विनम्रतापूर्वक राजा उत्तानपाद और रानी सुनीति के पुत्र बालक धुव्र के नाभिकीय ‘तारा’ बनने के किस्से का विज्ञान-सम्मत पाठ करते हैं। ध्रुव की तपस्या के फलस्वरूप भगवान विष्णु उसे वरदान देते हैं, ‘हे ध्रुव! मैं तुम्हें वह स्थान देता हूं, जो सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि आदि ग्रह-नक्षत्रों, सप्त ऋषियों और संपूर्ण विमानचारी देवगणों से ऊपर है।
देवताओं में से कोई चार युग तक और कोई एक मन्वंतर तक ही रहते हैं, किंतु मैं तुम्हें एक कल्प तक स्थिर बने रहने की अनुमति देता हूं।’ चूंकि ध्रुव राजवंश से आते हैं, इसलिए अनेक पुराण और प्रवचनकर्ता विष्णु के इस वरदान रूपी कथन को एक कल्प सत्ता पर राज्य करने की स्थिति के रूप में लेते हैं और ध्रुव तारे को अटल मानते हैं।

यद्यपि विष्णु-पुराण में विष्णु स्पष्ट रूप से कहते हैं कि तुझे मैं एक कल्प अर्थात तेरह हजार वर्ष रहने की इजाजत देता हूं। इस संवाद पर गहन सोच-विचार करने से ज्ञात होता है कि इस प्रसंग में खगोल-विज्ञान का बड़ा गूढ़ रहस्य अंतर्निहित है। धरती जिस धुरी पर घूमती है, उस धुरी की ठीक सीध में ध्रुव तारा है। इसलिए वह स्थिर अतएव अटल दिखाई देता है। यह पृथ्वी से दिखाई देने वाले तारों में से 45वां प्रकाशमान तारा है। पृथ्वी से यह लगभग 434 प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। ध्रुव तारा सूर्य से बाइस सौ गुना ज्यादा चमकदार और तीन गुना बड़ा है।
परंतु पृथ्वी से अधिक दूरी पर स्थित होने की वजह से लघु रूप में दिखाई देता है। हम जानते हैं कि कुम्हार के चाक की तरह धुरी पर चाक जिस तरह से डोलता है, पृथ्वी भी उसी प्रकार अपने अक्ष पर डोलती है। इस प्रक्रिया को विज्ञान की भाषा में ‘पुरस्सरण’ (पोलैरिस) कहते हैं। पृथ्वी को एक पुरस्सरण चक्र पूरा करने में छब्बीस हजार वर्ष लगते हैं। इससे पता चलता है कि ऋषियों को ज्ञात था कि एक तारा और है, जो तेरह हजार वर्ष बाद ध्रुव तारे की तरह ही पृथ्वी की धुरी की दिशा में आ जाता है, अतऐव अटल दिखता है। इस तारे का नाम ‘अभिजित’ या ‘वेगा’ है। धरती से दिखने वाले और सबसे तेज चमकने वाले तारों में यह पांचवां माना जाता है। यह पृथ्वी से पच्चीस प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है।
खगोल-विज्ञानियों का अनुमान है कि ध्रुव तारा 2105 तक पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव में पूरी तरह से एक सीधी रेखा में आ जाएगा। तत्पश्चात फिर छब्बीस हजार साल बाद इसका सीधी रेखा में पुनरागमन होगा। इसका स्थान अभिजित तारा ले लेगा। दरअसल यह पृथ्वी के चक्र की आवर्तन (रोटेशन) पद्धति है, जो तारों की स्थितियों को परिवर्तित कर देती है। हालांकि अनेक वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि यह कभी भी उत्तरी ध्रुव से पूरी तरह विलोपित नहीं होता।

Hindi News / Prime / Opinion / पुरातन और विज्ञान: ध्रुव के ‘तारा’ बनने का खगोलशास्त्र

Copyright © 2025 Patrika Group. All Rights Reserved.