सरकारी स्कूलों की निगरानी करेंगे जनप्रतिनिधि, विधायकों की अध्यक्षता में समिति बनाने पर विवाद

सरकारी स्कूलों में नामांकन और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विधायकों की अध्यक्षता में तालुक-स्तरीय शिक्षा सुधार समितियां गठित करने के हालिया सरकारी आदेश से विवाद खड़ा हो गया है। शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों ने इस कदम पर आपत्ति जताई है।

बैंगलोरJan 24, 2025 / 11:48 pm

Sanjay Kumar Kareer

बेंगलूरु. सरकारी स्कूलों में नामांकन और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए विधायकों की अध्यक्षता में तालुक-स्तरीय शिक्षा सुधार समितियां गठित करने के हालिया सरकारी आदेश से विवाद खड़ा हो गया है। शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों ने इस कदम पर आपत्ति जताते हुए दावा किया है कि यह निर्णय असंवैधानिक है और शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम का उल्लंघन करता है।
राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर सभी उप निदेशकों (डीडीपीआई) और खंड शिक्षा अधिकारियों (बीईओ) को विधायकों की अध्यक्षता में तालुक-स्तरीय शिक्षा सुधार समितियां गठित करने के लिए तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया।
सरकार ने दावा किया कि मौजूदा व्यवस्था में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग की प्रगति की समीक्षा और कार्यक्रमों का क्रियान्वयन प्रभावी ढंग से नहीं हो रहा है। इसलिए तालुक-स्तरीय समितियां गठित की जा रही हैं। समितियों को छात्रों के नामांकन, उनकी उपस्थिति की निगरानी करने के अलावा अपने-अपने तालुकों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए कदम उठाने का काम सौंपा जाएगा।
इसके अलावा, समितियों को सरकारी स्कूलों में ड्रॉपआउट दर को लगभग शून्य करने और स्कूल विकास में सामुदायिक भागीदारी बढ़ाने के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि ये समितियां आरटीई अधिनियम की धारा 9, 21 और 22 के तहत पहले से मौजूद स्कूल विकास और निगरानी समितियों (एसडीएमसी) के लोकतांत्रिक कामकाज को कमजोर करेंगी।
शिक्षाविदों ने आदेश को असंवैधानिक बताते हुए सरकार से इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है। उनका तर्क है कि आरटीई अधिनियम एसडीएमसी को सरकारी स्कूलों का लोकतांत्रिक तरीके से प्रबंधन और निगरानी करने का प्रावधान करता है। विधायकों को यह जिम्मेदारी सौंपना शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है, जिससे स्कूल प्रशासन की स्वायत्तता से समझौता होगा।
कुछ लोग इस कदम को राज्य सरकार की कम नामांकन वाले सरकारी स्कूलों को बंद करने की बड़ी योजना के हिस्से के रूप में भी देखते हैं, जो बताते हैं कि राज्य सरकार के ‘हब एंड स्पोक’ मॉडल के तहत कम नामांकन वाले स्कूलों को मर्ज करने के लिए कदम उठाना इन प्रस्तावित तालुक-स्तरीय समितियों की जिम्मेदारियों में से एक है।
ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एआइडीएसओ) का कहना है कि इससे वंचित बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जो सस्ती शिक्षा के लिए सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं। एक बयान में, संगठन ने जनता को भाजपा सरकार के तहत इसी तरह की पहल के खिलाफ अपने सफल विरोध की याद दिलाई, जिसमें 13,800 स्कूलों को बंद करने की मांग की गई थी।
शिक्षाविदों का कहना है कि यदि शिक्षा का अधिकार अधिनियम प्रत्येक मोहल्ले में एक स्कूल की गारंटी देता है तो स्कूलों को बंद करना इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और बच्चों को शिक्षा के अवसर से वंचित करता है।

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