रक्षाबंधन : कलाई पर बंधा रक्षा सूत्र देता है सुरक्षा का वचन

रक्षाबंधन का पर्व 3 अगस्त 2020, सोमवार को…

Jul 06, 2020 / 11:42 pm

दीपेश तिवारी

raksha bandhan is the festeval of security promise through Raksha Sutras

रक्षाबंधन raksha bandhan सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस त्यौहार festival के दिन रक्षा के वादे के तहत कलाइयों पर रक्षा सूत्र बांधा जाता है, वर्तमान में लोग इस त्यौहार को केवल भाई बहनों से जुड़ा ही मानते हैं, जिसके तहत बहनें अपने प्रिय भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं। तथा भाई अपनी बहन की सुरक्षा का वचन देते हैं। बहनें यह रक्षा सूत्र अपने भाई के दाहिने हाथ में बांधती हैं, इस रक्षा सूत्र Rakshasutra को प्रायः राखी कहा जाता है।

वहीं पंडित सुनील शर्मा का कहना है कि वास्तव में रक्षाबंधन raksha bandhan 2020 केवल भाई बहन का त्योहार ही नहीं है, बल्कि यह रक्षा सूत्र के माध्यम से सुरक्षा के वचन का त्योहार है, तभी तो पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में ऋषि मुनियों द्वारा अपने राजा की कलाई में रक्षा सूत्र Rakshasutra बांधने का वर्णन मिलता है। जिसके तहत राजा उन्हें सुरक्षा का वचन देते थे। तभी तो देवासुर devasur sangram संग्राम के समय की पौराणिक कथा में इंद्राणी द्वारा इंद्र को रक्षा सूत्र बांधने का उल्लेख मिलता है।

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पंडित शर्मा के अनुसार जहां तक भाई बहन के त्यौहार की बात है तो ये त्यौहार दीपावली के दौरान भैयादूज bhaiyadooj का होता है, लेकिन वर्तमान में अधिकांश लोग रक्षाबंधन को ही भाई बहन का त्यौहार मानते हैं।

रक्षाबंधन raksha bandhan का त्यौहार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाते हैं, इसलिए इसे राखी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। वहीं इस साल यानि 2020 में रक्षाबंधन का पर्व 3 अगस्त 2020, सोमवार को मनाया जाएगा।

राखी बांधने का मुहूर्त… Rakhi muhurat
राखी बांधने का मुहूर्त : 09:27:30 से 21:11:21 तक
अवधि : 11 घंटे 43 मिनट
रक्षा बंधन अपराह्न मुहूर्त : 13:45:16 से 16:23:16 तक
रक्षा बंधन प्रदोष मुहूर्त : 19:01:15 से 21:11:21 तक

वर्तमान में यह पर्व भाई-बहन के प्रेम के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाइयों की समृद्धि के लिए उनकी कलाई पर रंग-बिरंगी राखियां rakhi बांधती हैं, वहीं भाई बहनों को उनकी रक्षा का वचन देते हैं।

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रक्षाबंधन : मुहूर्त को ऐसे समझें…
रक्षाबंधन raksha bandhan का पर्व श्रावण मास में उस दिन मनाया जाता है जिस दिन पूर्णिमा अपराह्ण काल में पड़ रही हो। वहीं इस दौरान अन्य कुछ नियमों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है–

1. यदि पूर्णिमा के दौरान अपराह्ण काल में भद्रा हो तो रक्षाबंधन नहीं मनाना चाहिए। ऐसे में यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती तीन मुहूर्तों में हो, तो पर्व के सारे विधि-विधान अगले दिन के अपराह्ण काल में करने चाहिए।

2. लेकिन यदि पूर्णिमा अगले दिन के शुरुआती 3 मुहूर्तों में न हो तो रक्षाबंधन raksha bandhan को पहले ही दिन भद्रा के बाद प्रदोष काल के उत्तरार्ध में मना सकते हैं।

दरअसल शास्त्रों के अनुसार भद्रा होने पर रक्षाबंधन raksha bandhan मनाना पूरी तरह निषेध है, चाहे कोई भी स्थिति क्यों न हो।

ग्रहण सूतक या संक्रान्ति होने पर यह पर्व बिना किसी निषेध के मनाया जाता है।

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राखी पूर्णिमा की पूजा-विधि
रक्षाबंधन raksha bandhan के दिन मुख्य रूप से रक्षा-सूत्र का महत्व होता है, जो पूर्व में पुरोहित राजाओं के हाथ में बांधते थे, वहीं आज भी यह रक्षासूत्र Rakshasutra पूजा के दौरान ब्राह्मणों द्वारा पूजा में बैठे लोगों की कलाई में बांधा जाता है, जिसका अर्थ सुरक्षा का वचन लेना ही होता है, लेकिन रक्षाबंधन raksha bandhan के दिन को इस वचन के लिए प्रमुख त्यौहार के रूप में माना जाता है। वहीं रक्षाबंधन के चलते वर्तमान में बहनें भाईयों की कलाई पर रक्षा-सूत्र Rakshasutra या राखी बांधती हैं। साथ ही वे भाईयों की दीर्घायु, समृद्धि व ख़ुशी आदि की कामना करती हैं।

रक्षा-सूत्र या राखी बांधते हुए मंत्र पढ़ा जाता है, जिसे पढ़कर पुरोहित भी यजमानों को रक्षा-सूत्र बांधते हैं–

मंत्र : ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे माचल माचल:।।

इस मंत्र के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कथा है, जिसे प्रायः रक्षाबंधन raksha bandhan की पूजा के समय पढ़ा जाता है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से ऐसी कथा को सुनने की इच्छा प्रकट की, जिससे सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हो। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने उन्हें यह कथा सुनायी-

प्राचीन काल में देवों और असुरों के बीच लगातार 12 वर्षों तक संग्राम हुआ। ऐसा मालूम हो रहा था कि युद्ध में असुरों की विजय होने को है। दानवों के राजा ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर स्वयं को त्रिलोक का स्वामी घोषित कर लिया था। दैत्यों के सताए देवराज इन्द्र – देवगुरु बृहस्पति की शरण में पहुंचे और रक्षा Rakshasutra के लिए प्रार्थना की। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल रक्षा-विधान पूर्ण किया गया।

इस विधान में देवगुरु बृहस्पति ने इस मंत्र ( ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे माचल माचल:।। ) का पाठ किया, साथ ही इन्द्र और उनकी पत्नी ने भी पीछे-पीछे इस मंत्र को दोहराया।

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इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने सभी ब्राह्मणों से रक्षा-सूत्र Rakshasutra में शक्ति का संचार कराया, और फिर इंद्राणी ने इन्द्र के दाहिने हाथ की कलाई पर इस रक्षा-सूत्र को बांध दिया गया। इस सूत्र से प्राप्त बल के माध्यम से इन्द्र ने असुरों को हरा दिया और खोया हुआ शासन पुनः प्राप्त किया।

वहीं कुछ लोग इस पर्व से एक दिन पहले उपवास करते हैं। फिर रक्षाबंधन raksha bandhan वाले दिन, वे शास्त्रीय विधि-विधान से राखी बांधते हैं। साथ ही वे पितृ-तर्पण और ऋषि-पूजन या ऋषि तर्पण भी करते हैं।

कुछ क्षेत्रों में लोग इस दिन श्रवण पूजन भी करते हैं। वहां यह त्यौहार मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की याद में मनाया जाता है, जो भूल से राजा दशरथ के हाथों मारे गए थे।


रक्षाबंधन raksha bandhan से जुड़ी कथाएं…
राखी के पर्व से जुड़ी कुछ अन्य ऐसी पौराणिक घटनाएं भी बताई जातीं हैं, जो इस त्यौहार के साथ जुड़ी हुई हैं–

: मान्यताओं के अनुसार इस दिन द्रौपदी ने भगवान कृष्ण के हाथ पर चोट लगने के बाद अपनी साड़ी से कुछ कपड़ा फाड़कर बांधा था। द्रौपदी की इस उदारता के लिए श्री कृष्ण ने उन्हें वचन दिया था कि वे द्रौपदी की हमेशा रक्षा करेंगे। इसीलिए दुःशासन द्वारा चीरहरण की कोशिश के समय भगवान कृष्ण ने आकर द्रौपदी की रक्षा की थी।

: एक अन्य ऐतिहासिक जनश्रुति के अनुसार मदद हासिल करने के लिए चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुग़ल सम्राट हुमांयू को राखी भेजी थी। हुमांयू ने राखी का सम्मान किया और उनकी रक्षा अपनी बहन मानते हुए गुजरात के सम्राट से की थी।

: ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर राखी बांधी थी।

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