हाथ में डॉक्टर की डिग्री मिलते ही खिलखिला उठे चेहरे मेडिकल कॉलेज खंडवा के प्रथम बैच-2018 का दीक्षांत समारोह हुआ। कॉलेज के चौथी मंजिल पर ऑडिटोरियम में शुक्रवार को कार्यक्रम की शुरुआत बतौर मुख्य अतिथि मेडिकल कॉलेज की डायरेक्टर डॉ अरुणा कुमार, डीन डॉ संजय दादू ने अतिथियों के साथ मां सरस्वती के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन कर की। डायरेक्टर और डीन ने पहले बैच के 118 स्टूडेंट को डॉक्टर की डिग्री वितरित की। हाथ में डॉक्टर की डिग्री मिलते ही भावी डॉक्टर्स के चेहरे खिलखिला उठे। कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों ने भावी डॉक्टर्स को सेवा की शपथ दिलाई।
मैं उम्मीद करती हूं कि डॉक्टर्स पीड़ित मानवता की सेवा करेंगे कार्यक्रम में डायरेक्टर डॉ अरुणा कुमार ने कहा मैं उम्मीद करती हूं कि सभी डॉक्टर्स इस नॉलेज से पीड़ित मानवता की सेवा करेंगे। उन्होंने उत्साह वर्धन करते हुए कहा कि एक शिक्षक यही चाहता है कि उसका स्टूडेंट आगे बढ़े। उदाहरण अपने से दिया। कहा कि कोविड में बीमार हुई। अधिकारियों ने मुझसे पूछा, कहां भर्ती करें। उन्होंने कहा, गांधी मेडिकल अस्पताल में। क्योंकि अपने स्टूडेंट पर मुझे भरोसा है। स्टूटेंट का विश्वास ही है कि आज मैं आप के सामने हूं।
मैं मानती हूं कि सरकारी सिस्टम में कुछ खामियां है डायरेक्टर ने कहा कि मैं मानती कि सरकारी सिस्टम में कुछ खामियां हैं। लेकिन पढ़ने और आगे बढ़ने के लिए जो सुविधाएं सरकारी संस्थाओं ने मिलती हैं वह कहीं नहीं। इस दौरान डीन डॉ संजय दादू ने कहा कि पहला बैच डॉक्टर बनने में बहुत की संघर्ष किया। उन्होंने शुभकामनाएं देते हुए प्रवेश से लेकर अब तक की जानकारी दी। कार्यक्रम में डॉ सीमा, डॉ अनंत पवार, डॉ रंजीत बड़ोले, डॉ शिवम गुप्ता, डॉ चांदनी, डॉ प्रमिला समेत अन्य फैकल्टी व अभिभावक मौजूद रहे।
डिग्रियां मिलते ही खुशी में झूमे डॉक्टर्स, माता-पिता के साथ ली कॉलेज की सेल्फी -कॉलेज में पहले बैच को डिग्री वितरण की गई। समारोह के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। इससे पहले हाथ में डिग्री मिलते ही ही खुशी से झूम उठे। बेटा व बेटी के हाथ में डिग्री की उपाधि मिलते ही ऑडिटोरियम में मंच के सामने बैठे माता-पिता की आंख्रों खुशी के आशू आ गए। स्टूडेंट डिग्री मिलते ही माता-पिता के हाथ में डिग्री देकर उनका आशीर्वाद लिया। कॉलेज में फोटो खिंचवाए और सेवा का भरोसा दिलाया। दीक्षांत समारोह में देर शाम तक डॉक्टर्स का जश्न जारी रहा।
किसान का बेटा बना डॉक्टर डॉ अमन वर्मा : नीट की परीक्षा पास करने के लिए एक साल कोचिंग किया। 12 से 14 घंटे पढ़ाई की। पिता किसान हैं। कोविड में लगा कि पिता का सपना अधूरा रह जाएगा। लेकिन लगन से पढ़ाई की और माता-पिता के सपने को पूरा किया।
मेरे पढ़ते समय तक जागती रहती थी मां डॉ अक्षत डोडिया : मेरे इस सफलता की कहानी में सबसे बड़ा योगदान मेरी मां का है। हर समय वह मेरे साथ रहती थीं। पढ़ते समय तक तक नहीं सोती थीं जब तक मैं पढ़ता था। मुझे जल्दी नींद आ जाए तो मां पानी के छीटे मारकर पढ़ने के लिए बैठातीं। 10 से 12 घंटे अध्ययन के बाद सफलता मिली।
मम्मी-पापा का सपना पूरा हुआ डॉ अलीसा बंसल : मैं सिविल सर्विसेज में जाना चाहती थीं, लेकिन मेरे पापा-मम्मी चाहते थे मैं डॉक्टर बनूं। ताकि जरूरतमंदों का इलाज कर करें। उनका सपना पूरा करने के लिए आठ से दस घंटे तक पढ़ती थी। और आज मुझे डॉक्टर की डिग्री मिली तो मैं बहुत खुश हूं।
इंटर्न के बाद मुंबई में पीजी का मिला मौका डॉ सेतु शर्मा : दसवीं कक्षा में पढ़ाई के समय ही डॉक्टर बनने लक्ष्य तय लिया था। पढ़ने का शेड्यूल बनाया। और परिवार ने उम्मीद से अधिक सहयोग किया। खंडवा कॉलेज में पढ़ने के साथ ही इंटर्न किया और अब मुंबई में पीजी के लिए कॉलेज मिला है। गरीबों का इलाज मेरा मुख्य उद्देश्य।