छोटी काशी में पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए बाघों का कुनबा बढऩा जरूरी है। यहां पिछले दिनों अन्य टाइगर रिजर्व से बाघ-बाघिन लाने की घोषणा हुई थी, लेकिन अब तक उस पर अमल नहीं हो पाया। केन्द्र सरकार ने रामगढ़ विषधारी अभयारण्य को 16 मई 2022 को टाइगर रिजर्व घोषिण किया था। सबसे पहले यहां आरवीटी-1 बाघ खुद प्राकृतिक रूप से चलकर जून 2020 में रामगढ़ विषधारी वन क्षेत्र में आया था, जबकि आरवीटी-2 बाघिन वहां से लाकर 16 जुलाई 2022 को रामगढ़ के शॉफ्ट एनक्लोजर में छोड़ी गई। इसे 31 अगस्त 2022 को खुले जंगल में छोड़ा गया था। इस बाघिन का गत दिनों कंकाल मिला था। इस बाघिन ने तीन शावकों को जन्म दिया गया था, इसमें से एक लम्बे समय से लापता है। आरवीटी- 3 बाघिन को लाकर अगस्त 2023 में रामगढ़ में छोड़ा गया। अधिकारियों के अनुसार अभयारण्य क्षेत्र में वर्तमान में एक बाघ, एक बाघिन व दो मादा शावक विचरण कर रहे है।
पहले थे 13 बाघ व 90 पैंथर
अरावली की पहाडिय़ों के बीच वन्यजीवों की भरमार को देखते हुए 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले सघन जंगल को वर्ष 1982 में रामगढ़ विषधारी वन्य जीव अभ्यारण्य का दर्जा दिया गया था। 1982 की वन्य जीवों की गणना में यहां 13 बाघ व 90 पैंथर देखे गए थे। वन्य जीव अभयारण्य का दर्जा मिलने के दो वर्ष बाद ही यहां लगातार बाघों की संख्या में कमी आती गई। 1999 की गणना में यहां एक भी बाघ नहीं पाया गया। कभी13 बाघों वाला अभयारण्य 17 वर्षो में ही बाघ विहीन हो गया था।
अभयारण्य क्षेत्र में आठ गांव आबाद
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व क्षेत्र में 8 गांव बसे हुए हैं। इन गांवों के विस्थापन का कार्य दो साल से चल रहा है, लेकिन अभी तक एक भी गांव का विस्थापन नहीं हो पाया है। गुलखेड़ी गांव के विस्थापन की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन अभी लोगों को मुआवजे की एक ही किश्त का भुगतान हो पाया है।अन्य गांवों के विस्थापन का काम भी गति नहीं पकड़ पाया है। जंगल में बसे गांवों में पशुधन की अधिकता है, जिससे हिरण- सांभर जैसे वन्यजीवों के लिए घास की समस्या है। कोर क्षेत्र में पडऩे वाले गांवों को विस्थापित किए बिना यहां बाघों को बसाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व क्षेत्र के लिए दो बाघिन व एक बाघ की एनटीसीए से अनुमति मिली हुई है। पहले नर व मादा बाघ बाघिन रणथम्भौर से लाए जाने थे, लेकिन अब महाराष्ट्र से लाने की योजना बनाई गई है। इस पर उच्चाधिकारियों से चर्चा हो चुकी है। शीघ्र ही अभयारण्य क्षेत्र में बाघों का कुनबा बढ़ जाएगा।
रामकरण खैरवा, मुख्य वन संरक्षक, कोटा