33 वर्षीय मुकुल गर्ग लिखते हैं कि जब उन्हें पता चला कि उनके परिवार के एक सदस्य को कोरोना वायरस पॉजिटिव पाया गया है, तो उन्हें तुरंत पता चला कि यह केवल शुरुआत थी। उनके भरे-पूरे परिवार के सदस्य लॉकडाउन के दौरान हफ्तों तक साथ रहे, एक साथ खाना खाते थे और एक साथ घर में खेलते थे। यह पता चलने के बाद मुकुल ने लिखा कि हम जानते थे कि हम सभी पॉजिटिव होंगे। हमें पूरा यकीन था कि कोई ना कोई हमें छोड़ जाएगा। हालांकि उनके दिमाग में सबसे बड़ा सवाल यह था कि कितने लोग उन्हें छोड़ जाएंगे।
WHO ने दी सबसे बड़ी खुशखबरी, कोरोना वैक्सीन पहुंच गई अंतिम चरण में देश में संयुक्त परिवार के रूप में एक परिवार की कई पीढ़ियों का एक छत के नीचे रहना आम बात है और यह भारत के सांस्कृतिक गौरव का स्रोत भी है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 42 फीसदी परिवार अभी भी नॉन न्यूक्लियर हैं। हालांकि ऐसे परिवारों में जहां हर आयुवर्ग के लोग रहते हैं, बुजुर्गों को इस बीमारी से बचाना बड़ी चुनौती है और लोग इसके लिए हर कोशिशों में जुटे भी हैं। बावजूद इसके भारत में कोरोना वायरस से होने वाली मौतों में से लगभग आधी मौतें 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की हुई हैं। मुकुल के मुताबिक कुछ ही दिनों के भीतर उनके परिवार के 11 सदस्यों को कोरोना वायरस पॉजिटिव पाया गया। इनमें मुकुल के 90 वर्षीय दादा, 87 वर्षीय दादी, मधुमेह और उच्च रक्तचाप से पीड़ित 62 वर्षीय पिता और 60 वर्षीय चाचा भी शामिल थे।
एक साथ इतने पॉजिटिव केस सामने आने के बाद दिल्ली में उनका घर कोरोना क्लस्टर में बदल गया और इसके बाहर एक क्वारंटीन का स्टिकर लगा दिया गया, जिससे वो बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गए। गर्ग परिवार की यह कहानी कोरोना वायरस की भयावहता का ज्वलंत चित्रण है, क्योंकि गर्ग परिवार के लिए एक साथ रहना उन्हें कोरोना वायरस का आसान शिकार बनाने का एक रास्ता हो सकता है, लेकिन यही उनकी आपसी ताकत का भंडार भी था। तीन भाइयों और उनके परिवारों ने अपने माता-पिता के साथ मिलकर दशकों से “संयुक्त परिवार” की व्यवस्था को यहां जारी रखा है।
कोरोना को बोलेगी गुडबाय, केवल इस चीज के साथ एक कप चाय! पिछले नौ वर्षों से तीनों भाई और उनके परिवार उत्तर-पश्चिमी दिल्ली में एक चार मंजिला इमारत में रहते हैं। भाई और उनके बेटे विभिन्न व्यवसायों में एक साथ काम करते हैं। आम दिनों में दिन भर घर-बाहर के काम में व्यस्त रहने वाला परिवार लॉकडाउन के दौरान चाहरदीवारी के भीतर बंद हो गया और सभी एक-दूसरे के साथ ज्यादा खेलने और बातें करने में लग गए। जबकि परिवार के पुरुष रसोईघर में नए-नए व्यंजन बनाने का प्रयोग करने में भी दिलचस्पी लेने लगे।
कोरोना वायरस के खिलाफ सावधानी बरतने में यह परिवार काफी सजग था। सभी घर के अंदर ही रहे। एक वक्त में केवल एक व्यक्ति ही किराने की दुकान में पूरे घर के लिए सामान खरीदने जाता था। वापसी में उस व्यक्ति को घर के अंदर घुसने से पहले पूरी तरह से सैनेटाइज किया जाता था। फिर भी अप्रैल के अंत में मुकुल के एक चाचा को कमजोरी के साथ बुखार की शिकायत हुई। शुरुआत में सभी को यह एक साधारण फ्लू लगा, लेकिन था। कुछ दिनों बाद उनकी चाची अनीता बीमार हो गईं। फिर मुकुल के माता-पिता दोनों में लक्षण आए और फिर उनकी दादी बीमार हो गईं।
मुकुल की मां ( covid-19 positive mother ) 58 वर्षीय मीना देवी ने कहा, “क्योंकि हम बेहद सावधान थे, इसलिए हम आश्वस्त थे कि कोरोना वायरस हमे संक्रमित नहीं कर सकता था। लेकिन फिर एक-एक करके सभी को बुखार आ गया।” फिर भी, उन्होंने कोरोना वायरस का टेस्ट कराने में संकोच किया और उम्मीद कि यह ठीक हो जाएगा। उन्हें डर था कि कहीं अगर एक भी पॉजिटिव निकला तो उन सभी को इंस्टीट्यूशनल क्वारंटीन में डाल दिया जाएगा। हालांकि कुछ सदस्यों के बीमार पड़ने के बाद बाकी सभी ने खुद को अपने-अपने कमरे तक ही सीमित कर लिया।
भारतीय रेलवे ने की सबसे बड़ी घोषणा, पूरी तरह सोलर पावर पर चलेंगी ट्रेनें पांच दिनों के बुखार के बाद अनीता को सांस लेने में कठिनाई होने लगी। उनका कोरोना वायरस टेस्ट करवाया गया, जिसमें रिजल्ट पॉजिटिव आया। अनीता का केस परिवार का सबसे गंभीर मामला साबित हुआ क्योंकि हालत बिगड़ने के बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
वहीं, कोरोना वायरस ( coronavirus cases in Delhi ) का अप्रत्याशित असर मुकुल के 90 वर्षीय दादा श्यामलाल और 87 वर्षीय दादी बीना में देखने को मिला। क्योंकि इनको एक महीने तक बुखार आने के अलावा खाँसी और सिरदर्द भी हुआ, लेकिन उनकी हालत कभी भी इस हद तक नहीं बिगड़ी कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ी हो। मुकुल के 29 वर्षीय चचेरे भाई और उसकी पत्नी की टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव आई, जबकि 6 वर्ष से कम आयु के चार बच्चों का या तो टेस्ट नहीं हुआ या फिर वे निगेटिव पाए गए।
डॉक्टरी करने के बाद एमबीए पूरा करके मुकुल अपने पिता के प्लास्टिक-पैकेजिंग व्यवसाय से जुड़ गए थे। उन्होंने और उनके छोटे भाइयों ने अपने रिश्तेदारों की देखभाल में मदद की। मुकुल के मुताबिक उनका परिवार भाग्यशाली था क्योंकि बीमारी से निपटने के लिए उनके पास पर्याप्त धन था। मुकुल की मां मीना को तकरीबन दो सप्ताह तक बुखार, खांसी, सिरदर्द और शरीर में दर्द हुआ। इस दौरान उन्होंने अपना वक्त भजन सुनने और परिवार के ठीक होने की प्रार्थना करते हुए बिताया और खुद को अपने कमरे के अंदर ही सीमित कर लिया।
उत्तर प्रदेश में बढ़ती हत्याओं पर बिगड़ा प्रियंका गांधी का मूड, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ किया ये ट्वीट जब मुकुल की चाची अनीता 10 दिनों के बाद अस्पताल से कोरोना को हराकर ( fight against coronavirus ) वापस लौंटी तो पड़ोसियों ने अपनी बालकनियों से तालियां और घंटियां बजाईं और परिवार ने फूलों की बौछारकर उनका स्वागत किया। हालांकि इतनी सावधानी बरतने के बावजूद परिवार का एक सदस्य कैसे संक्रमित हो गया यह अब तक एक रहस्य बना हुआ है। उनका मानना है कि जब मुकुल के चाचा किराने का सामान खरीदने बाहर गए होंगे, संभवता तभी उन्हें संक्रमण लग गया होगा। जिस वक्त वो बीमार हुए थे, उनके इलाके में एक भी व्यक्ति संक्रमित नहीं हुआ था।
जून की शुरुआत में जब सभी का टेस्ट रिजल्ट निगेटिव आया, पूरे परिवार ने हफ्तों बाद पहली बार आखिरकार रात के खाने पर एक साथ बैठकर अपना वक्त बिताया। इस बीच एक दर्दनाक खबर भी सामने आई कि मुकुल के दो दूर के रिश्तेदारों की मौत हो गई है। दोनों ने ही लॉकडाउन के दौरान इस परिवार को कई बार फोन कर उनकी कुशलता जानी थी।
मुकुल ने आखिरी में कहा, “यह एक साधारण बीमारी नहीं है। हम सीधे सादे भाग्यशाली थे।”