जुमे की नमाज के फायदे
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया: “जिस व्यक्ति ने स्नान किया, फिर जुमा की नमाज़ के लिए आया और उसके लिए जो मुक़द्दर था उसने (स्वैच्छिक) नमाज़ पढ़ी। फिर खामोश रहा यहाँ तक कि इमाम खुत्बा से फारिग हो गया। फिर उसने उसके साथ (जुमा की) नमाज़ पढ़ी तो उसके उस जुमा और दूसरे जुमा के बीच के और तीन दिन अतिरिक्त के गुनाह माफ कर दिये जाते हैं।” इसे मुस्लिम (हदीस संख्या: 857) ने रिवायत किया है।
जुमा के लिए जल्दी जाने का सवाब (पुण्य)
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जिसने जुमा के दिन जनाबत का गुस्ल किया। फिर वह जुमा की नमाज़ के लिए गया तो गोया उसने एक ऊँट की क़ुर्बानी पेश की। और जो दूसरी घड़ी में गया तो उसने गोया दूसरे बड़े जानवर की क़ुर्बानी दी और जो तीसरी घड़ी में गया तो उसने गोया सींगदार मेंढे की क़ुर्बानी दी और जो चौथी घड़ी में गया उसने गोया मुर्गी की क़ुर्बानी दी और जो पाँचवीं घड़ी में गया तो गोया उसने एक अण्डे की क़ुर्बानी पेश की। फिर जब इमाम (खुत्बे के लिए) निकलता है तो फरिश्ते हाज़िर होकर ज़िक्र सुनते हैं। इस हदीस को सही बुख़ारी (हदीस संख्या: 841) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 850) में वर्णन किया गया है।
जुमा की नमाज़ के लिए पैदल जाने का सवाब (पुण्य)
औस बिन औस सक़फी से वर्णित है कि उन्होंने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि जिस व्यक्ति ने जुमा के दिन स्नान किया और स्नान कराया, जल्दी किया और सवेरे मस्जिद गया, इमाम से क़रीब बैठा, ध्यान से ख़ुत्बा सुना और खामोश रहा तो उसे हर क़दम पर एक साल के क़ियामुल्लैल (यानी रातभर जागकर इबात करने) और रोज़े रकेने का सवाब मिलता है। इसे तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 496) ने रिवायत किया है और शैख अल्बानी ने सहीह तिर्मिज़ी (हदीस संख्या: 410) में इसे सहीह कहा है।
जुमे के दिन करने योग्य बातें
जुमे से संबंदित जो हदीसें है। उनके अनुसार जुमे के दिन स्नान करनना यानी सफाई और सुथराई हासिल करना, खुश्बू (सुगंध) या तेल लगाना, अच्छे पोशाक पहनना, सुकून के साथ चलते हुए मस्जिद जाना, मस्जिद में जाने के बाद अगली कतार में बैठने के लिए लोगों को कूद फांदकर न जाना। दो आदमियों के बीच अलगाव न करना। और नफ्ल नमाज़ कसरत (पाबंदी) से पढ़ना चाहिए।
मुसलमानों पर जुमे की नमाज़ को स्थापित करना अनिवार्य
मुसलमानों पर उनके गाँवों या शहरों में जुमे के दिन जुमे की नमाज़ को स्थापित करना अनिवार्य है। जुमे की नमाज होने की पहली शर्त ये है कि नमाज जमाअत (समूह) में अदा की जाए यानी ये नमाज अकेले नहीं पढ़ी जा सकती है। हालांकि जुमे की नमाज में केम से कम कितने लोग हो इसकी संख्या निर्थारित नहीं है। इस संबंध में कुरआन और हदीस में कोई दलील मौजूद नहीं है। लेकिन, इसता तो साफ है कि जुमे की नमाज के लिए अधिक से अधिक संख्या में मुसलमानों को जुमे की नमाज अदा करनी चाहिए।
जुमे की नमाज का इतिहास
अब से ठीक 1440 (चौदह सो चालीस) साल पहले पैगम्बर मोहम्मद साहब ने कुबाह (मदीने के निकट एक जगह) में पहली बार जुमा की नमाज अदा कराई थी। मुफ्ती अहमद गोड ने जुमा के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि जुमे की नमाज की शुरुआत सन एक हिजरी में यानी अब से 1440 साल पहले हुई थी। पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब के मक्का से हिजरत कर मदीना जाने के दौरान रास्ते में मदीना से पहले कुबाह नामक एक स्थान पर मोहम्मद साहब के चाहने वाले बहुत से लोग पलके बिछाए उनका इंतजार कर रहे थे। मुहम्मद साहब जब कुबाह पहुंचे तो उस दिन जुमे का दिन था और दोपहर (जोहर) की नमाज का वक्त था। मुहम्मद साहब ने वहां मौजूद सभी लोगों को खुतबा (तकरीर) सुनाया और उसके बाद उसी स्थान पर नमाज अदा कराई। यही नमाज जुमा की नमाज कह लाई।