नोएडा प्राधिकरण के अधिकारी उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी), सीबीआरआई और एडिफिस इंजीनियरिंग के अधिकारियों ने इस बारे में मंथन करने के बाद यहां निकलने वाले मलबा पर महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। उनके अनुसार 60 हजार मीट्रिक टन मलबे में 4 हजार टन सरिया और स्टील है, जिसे अलग किया जाएगा। इसका इस्तेमाल करीब 30 हजार टन बेसमेंट को भरने में किया जाएगा। इस टावर को विध्वंस करने के बाद 28 हजार मीट्रिक टन सीएनडी मलबा मानकों के अनुसार, प्राधिकरण के सेक्टर-80 स्थित सीएनडी वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट में साइंटिफिक तरीके से निस्तारण के लिए पहुंचाया जाएगा।
यह भी पढ़ें – बुलेट रानी शिवांगी डबास ने महिला सिपाही से की बदसलूकी, वीडियो वायरल होते ही गिरफ्तार मलबे से बनेंगी टाइल्स और सीमेंट अधिकारियों ने बताया कि सेक्टर-80 स्थित सीएंडडी वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की क्षमता रोजाना की 300 मीट्रिक टन की है। यहां डंपर से मलबे को लाकर निस्तारित कराया जाएगा। इससे यहां रिसाइकिल कर सीमेंट और टाइल्स बनाई जाएंगी। दोनों ही तरीकों से करीब 20 डंपर रोजाना मलबे को लेकर जाएंगे। प्राधिकरण ने सीएंडडी वेस्ट प्लांट को लेकर हरी झंडी दे दी है। दावा किया गया है कि तीन माह के भीतर मलबे का निस्तारण कर दिया जाएगा।
डॉक्टरों ने दी मलबे के आसपास नहीं जाने की चेतावनी सफदरजंग हॉस्पिटर के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग प्रमुख डॉ.जुगल किशोर का कहना है कि ट्विन टावर ध्वस्त होने के कारण हवा की गति कम होने से धूल कण कुछ समय हवा में ही रहेंगे। सांस की समस्या से पीड़ित लोगों को कुछ दिन इलाके में जानें से बचना चाहिए।
यह भी पढ़ें – गीडा से संबद्ध है नोएडा ट्विन टावर का आरोपी मुकेश गोयल, एक साल में कभी नहीं आया कार्यालय वातावरण में 2.5 माइक्रोन से कम आकार वाले कण वहीं, एम्स के क्रिटिकल केयर सहायक प्रोफेसर डॉ. युद्धवीर सिंह का कहना है कि फिलहाल वातावरण में 2.5 माइक्रोन से कम आकार वाले कण हैं। इससे छींक आना, खांसी होना, दमा की शिकायत, नाक बंद होना और फेफड़ों में संक्रमण जैसी बीमारी बढ़ सकती है। जब तक प्रदूषक तत्व सतह पर नहीं बैठते लोग एन-95 मास्क का इस्तेमाल करें। इसके साथ ही चश्मा और पूरी बाजू वाले कपड़े पहनें और कुछ दिन सुबह टहलने से परहेज करें।