बचपन से साथ रहे राधा-कृष्ण- जब भी संसार में प्रेम और त्याग की बात होती है, तो सभी की जुबा पर बस एक ही नाम आता है- श्री कृष्ण और राधा। राधा-कृष्ण का प्यार सभी आसक्तियों से परे था। अगर कृष्ण राधा के साथ नहीं होते थे फिर भी एक-दूसरे से जुदा नहीं थे। यही वजह है कि आज भी हम जब भी कृष्ण का नाम लेते हैं तो राधा के नाम के साथ ही लेते हैं… राधा-कृष्ण।
राधा-कृष्ण का बचपन साथ बीता लेकिन एक कृष्ण पहली बार राधा से तब अलग हुए जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को आमंत्रित किया। तब कृष्ण जी ने कंस का वध कर अपने मांता-पिता को कारागार से रिहा कराया था। लेकिन उसके बाद उन्हें वापस वृंदावन जाने का मौका नहीं मिला।
कंस का वध करने के लिए पहली बार अलग हुए- हालाकि वृंदावन से अलग होते हुए कृष्ण ने राधा से वादा किया था की वो वापस जरूर आएंगे। लेकिन विधि का विधान कुछ और ही था। राधा ने कई सालों तक अपने प्रेम का रास्ता निहारा लेकिन कृष्ण वापस नहीं लौट सके। कहा जाता है कि कुछ सालों बाद राधा का विवाद हो गया। उधर कृष्ण की शादी रुक्मिनी से हो गई। लेकिन दोनों भले ही साथ नहीं रहे, लेकिन उनके पवित्र प्यार आज भी जिंदा है।
राधा का किसी और से हो गया विवाह- धार्मिक धर्म ग्रंथों में कृष्ण के वंदावन छोड़ने के बाद से ही राधा का वर्णन कम हो जाता है। राधा जहां पत्नी के तौर पर अपने सारे कर्तव्य पूरे किए वहीं दूसरी तरफ श्रीकृष्ण ने अपने संसारिक कल्याण के लिए कर्तव्य निभाए। रुक्मिनी से विवाह के बाद कृष्ण काफी समय तक द्वारका रहे और प्रजा की रक्षा की इसी वजह से कृष्ण द्वारकाधीश के नाम से लोकप्रिय हुए।
जब द्वारका में कृष्ण से मिली राधा- लेकिन विधि के विधान को कौन बदल पाया है। एक वक्त ऐसा आया जब राधा एक बार फिर श्री कृष्ण से मिलीं। राधा कृष्ण की नगरी द्वारिका जा पहुंची और वहां उन्होंने कृष्ण की रुक्मिनी और सत्यभामा से विवाह के बारे में सुना लेकिन वह दुखी नहीं हुईं क्योंकि उन्हें पता था उनके कृष्ण ने अपना कर्तव्य निभाया है। राधा के पहुंचने पर जब कृष्ण ने देखा तो दोनों बहुत प्रसन्न हुए। लेकिन उनके पास एक दूसरे का कुशल पूछने के लिए शब्द नहीं था।
कृष्ण को छोड़ कर जाने को मजबूर हो गई राधा- दोनों संकेतों की भाषा में एक दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। शास्त्रों में वर्णित है कि राधा जी को कान्हा की नगरी द्वारिका में कोई नहीं पहचानता था। राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया। राधा दिन भर महल में रहती थीं और महल से जुड़े कार्य देखती थीं। मौका मिलते ही वह कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। लेकिन राधा को वहां वो आध्यात्मिक जुड़ाव नहीं हो पा रहा था। इसलिए वह कृष्ण से दूर जाने पर मजबूर हो गयीं और एक दिन वह महल से चुपके से निकल गयीं।
आखिरी समय में राधा से मिलने पहुंचे जब कृष्ण- राधा निकल तो पड़ी थीं लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वह कहां जा रही हैं, लेकिन भगवान श्री कृष्ण भली भांती जानते थे। धीरे-धीरे समय बीता और राधा अपने अंतिम समय में अकेली जीवन गुजार रही थीं। उस वक्त उन्हें भगवान श्री कृष्ण की आवश्यकता पड़ी। राधा किसी भी तरह भगवान कृष्ण को देखना चाहती थीं। भगवान कृष्ण को जैसे ही ये ज्ञात हुआ वह उनकी उनके सामने आ गए।
कृष्ण ने तब तोड़ दी अपनी बांसुरी और उसके बाद नहीं बजाया कभी – कृष्ण को अपने सामने देखकर राधा प्रसन्न हो गयीं। लेकिन वो राधा का आखिरी समय था अपने प्राण त्याग कर दुनिया को अलविदा कहना था। राधा के अंतिम समय से कृष्ण अच्छी तरह वाकिफ थे उनका मन उदास था फिर भी उन्होंने राधा से कहा कि वह उनसे कुछ मांगे, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वह आखरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना चाहती हैं। श्री कृष्ण ने बेहद सुरीली धुन में बांसुरी बजाने लगे। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपने शरीर का त्याग दिया। लेकिन भगवान होते हुए भी राधा के प्राण त्यागते ही भगवान श्री कृष्ण बेहद दुखी हो गए और उन्होंने बांसुरी तोड़कर कोसों दूर फेंक दी। जिस जगह पर राधा ने कृष्ण जी का मरने तक इंतज़ार किया उसे आज ‘राधारानी मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र में है।