यह भी पढ़ें: ये फल खाते ही एक ही परिवार के 15 लोगों की हालत बिगड़ी, आप भी रहें सावधान 35 फीसदी सीटों पर मुस्लिम निर्णायक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 35 फीसदी सीटों पर फैसला मुस्लिमों के हाथ में है। यहां के 26 जिलाें की 140 विधानसभा सीटों पर यह मत निर्णायक है। अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोकसभा क्षेत्रों की बात करें तो मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बिजनौर व मुरादाबाद में मुस्लिमों की संख्या 40 फीसदी है। रामपुर में तो मुस्लिमों की आबादी करीब 50 प्रतिशत है।
यह भी पढ़ें: इस तरह चुटकी भर नमक आपको बना सकता है मालामाल इन जिलों की स्थिति अगर अन्य क्षेत्रों की बात की जाए तो कैराना में 35 फीसदी मुस्लिमों की आबादी है जबकि मेरठ में 30 प्रतिशत, बागपत व गाजियाबाद में 25 और संभल में 70 फीसदी मुस्लिमों की आबादी बताई जाती है। बसपा स़ुप्रीमो मायावती के पैतृक जिले गौतमबुद्धनगर और बुलंदशहर में आबादी 20 फीसदी से कम है। इस हिसाब से देखा जाए तो गठबंधन होने की स्थिति में मुस्लिमों का एकतरफा मत गैर भाजपा उम्मीवारों को जा सकता है। साथ ही दलित भी उनकी तरफ ही जा सकते हैं। ऐसा होने पर इन सीटों पर भाजपा के लिए 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में मुश्किल खड़ी हो सकती है।
यह भी पढ़ें: युवतियों व महिलाओं को दुष्कर्मियों से ऐसे बचाएगी यह जैकेट, जानिए इसकी खूबियां 2007 में बनवाई बसपा की सरकार 2002 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों ने आगे बढ़कर वोट डाला था। इसका परिणाम यह रहा कि सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, मेरठ, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा, रामपुर, अलीगढ़ समेत कई सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों ने जीत का स्वाद चखा था। फिर 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में इस वोट बैंक ने पहले बसपा और फिर सपा की सरकार बनवाई। वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हुआ और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सरकार बन गई। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भी इसका असर देखने को मिला। पिछले विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोट भी बंट गया था, जिस कारण प्रदेश में भी भाजपा की सरकार आई लेकिन कैराना उपुचनाव में बनी यह स्थिति कायम रही तो इस बार भाजपा को बड़ी मुश्किल हो सकती है।
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