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Exclusive- SBI को हाईकोर्ट की फटकार, 11 महीने से निलंबित कर्मचारी को तुरंत बहाल करने का आदेश

Highlights
– एसबीआई प्रबंधन अपने कर्मचारियों को निलंबित करने के बाद चार्जशीट दायर करने में बरत रहा लापरवाही
– कई ऐसे कर्मचारी, जिन्हें महीनों पहले निलंबित किया गया, लेकिन 90 दिन बाद भी चार्जशीट दायर नहीं हुई
– एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइन तय की है कि 90 दिन में चार्जशीट दायर नहीं हुई तो बहाली करनी होगी

नोएडाNov 19, 2019 / 02:52 pm

Ashutosh Pathak

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आशुतोष पाठक/नोएडा। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और विभिन्न मामलों में उसकी ओर से तय की गई गाइडलाइन का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है। इसका एक ताजा उदाहरण सामने आया है। इसके तहत, बैंक प्रबंधन पर आरोप है कि उसने अपने कई कर्मचारियों को विभिन्न मामलों में अनियमितता बरतने का दोषी बताते हुए निलंबित कर दिया है, लेकिन 90 दिन से अधिक का समय बीतने के बाद भी संबंधित मामलों में कर्मचारियों के खिलाफ प्रबंधन ने न तो जांच कर चार्जशीट दायर की और न ही उन्हें बहाली दी।
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बताया जा रहा है कि एसबीआई प्रबंधन की इस मनमानी से देशभर में उसके करीब सौ कर्मचारी प्रभावित हो रहे हैं। “पत्रिका” ने इस मामले की पड़ताल की और ऐसे ही कुछ कर्मचारियों से बात कर उनका पक्ष जाना, जो महीनों से निलंबन तो झेल रहे हैं, लेकिन उनके खिलाफ प्रबंधन ने चार्जशीट दायर नहीं की है। हालांकि, इनमें से कई कर्मचारी कोर्ट जाने को भी मजबूर हुए, जहां से कुछ को राहत मिली है, जबकि कुछ अपनी लड़ाई अब भी लड़ रहे हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बैंक को लगाई फटकार

निलंबन से ही जुड़ा एक मामला पंकज कुमार का है। पंकज एसबीआई की आगरा जिले की एक ब्रांच में कार्यरत थे। उन्होंने “पत्रिका” को बताया कि बैंक प्रबंधन ने दिसंबर 2018 में उन्हें एक मामले में आरोपी बताकर निलंबित कर दिया। 90 दिन से अधिक का समय बीत गया, मगर प्रबंधन ने मामले में न तो चार्जशीट दायर की और न ही उन्हें कहीं बहाली दी। पंकज के मुताबिक, निलंबन के 45 दिन पूरे होने पर उन्होंने जनवरी के अंतिम सप्ताह में सीजीएम को चार्जशीट के संबंध में पत्र भी लिखा, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। 90 दिन तक उन्होंने जवाब का इंतजार किया, लेकिन प्रबंधन की ओर से जब कार्रवाई नहीं हुई, तो उन्होंने जून में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद गत 11 नवंबर को अपना फैसला सुनाया, जिसमें पंकज के निलंबन को अनुचित बताया गया और बैंक प्रबंधन को उन्हें तत्काल बहाली के निर्देश दिए। हालांकि पंकज ने बताया कि फैसला 11 नवंबर को आ गया, मगर 19 नवंबर तक उन्हें बैैक की ओर से बहाली को लेकर कोई पत्र नहीं मिला है। अब वह फैसले की कॉपी लेकर दिल्ली में उच्च अधिकारियों से मिलने की सोच रहे हैं। उन्होंने बताया कि 20 नवंबर तक अगर उन्हें इस संबंध में पत्र नहीं मिला तो वे आदेश की प्रति लेकर खुद मुख्यालय जाएंगे।
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कब तक करना होगा इंतजार

ऐसा ही एक अन्य मामला दिल्ली के आलोक रंजन का है। आलोक को भी स्टेट बैंक प्रबंधन ने अक्टूबर 2018 में एक मामले में अनियमितता को दोषी बताते हुए निलंबित कर दिया। मगर छह महीने बाद भी जब बैंक प्रबंधन की तरफ से उन्हें न तो बहाली दी गई और न ही उनके खिलाफ चार्जशीट प्रस्तुत की, तो आलोक ने कोर्ट का रुख करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की। आलोक रंजन और पंकज कुमार जैसे दर्जनों ऐसे बैंक अधिकारी-कर्मचारी हैं, जिन्हें किसी न किसी मामले में महीनों से निलंबित तो कर दिया गया है, लेकिन इसके बाद उनके मामले में क्या होना है, इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। लिहाजा, बैंक कर्मचारी को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सवाल यह है कि बैंक प्रबंधन अपने अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित तो कर देता है, लेकिन इसके बाद वह मामले को भूला क्यों देता है। क्यों नहीं वह समय से जांच पूरी कर चार्जशीट दायर करता है, जिससे नियमानुसार कार्रवाई आगे बढ़ सके।
क्या है गाइडलाइन

सुप्रीम कोर्ट का 2015 का जजमेंट है अजय कुमार चौधरी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया। इसमें कोर्ट ने निलंबन और उससे संबंधित मुद्दों को लेकर गाइडलाइन तय की है। इसमें स्पष्ट रूप से बताया गया है कि किसी भी व्यक्ति को बिना चार्जशीट दायर किए 90 दिन से अधिक समय तक निलंबित नहीं रखा जा सकता।
“पत्रिका” ने इस बारे में एसबीआई के महाप्रबंधक, नेटवर्क-3 दिल्ली, प्रभात मिश्रा से बात की, लेकिन उन्होंने ऐसे किसी भी मामले की जानकारी होने से इनकार कर दिया। जबकि सूत्रों की मानें तो इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन्होंने इस बारे में खुद हलफनामा प्रस्तुत किया है।
पत्रिका- एसबीआई प्रबंधन के कई कर्मचारियों को विभिन्न मामलों में निलंबित तो कर दिया गया है, लेकिन 90 दिन बीतने के बाद भी उन्हें न तो बहाली दी गई और न ही उनके खिलाफ चार्जशीट दायर हुई।
प्रभात मिश्रा- मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए अभी कुछ नहीं कह सकता।

पत्रिका- आगरा के पंकज कुमार का ऐसा ही मामला था, जिसकी सुनवाई इलाहाबाद हाइकोर्ट में हुई।

प्रभात मिश्रा- नहीं-नहीं, मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है।
पत्रिका – हमें पता लगा कि आप खुद इस मामले में हाईकोर्ट में उपस्थित भी हुए थे?

प्रभात मिश्रा – पता नहीं, मुझे इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। (यह कहकर उन्होंने फोन डिस्कनेक्ट कर दिया।)

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