सभी संकट होते हैं दूर- गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। वैसे तो Vinayaka Chaturthया Ganesh utsav महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अब यह त्योहार उत्तर प्रदेश में भी काफी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश भगवान Lord Ganesh का जन्म हुआ था। मान्यता है गणेश चतुर्थी की पूजा करने और व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है, परिवार पर आ रहे सभी संकट को विघ्नहर्ता दूर करते हैं और भगवान श्रीगणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं।
गणेश चतुर्थी की कथा – गणेश चतुर्थी के दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढ़ने का भी विशेष महत्व है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा जरूर पढ़नी चाहिए तभी व्रत का फल मिलता है।
पुराणों के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रहा थी तभी उन्होंने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती जी ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं तब तक स्नान करने जा रही हूं। लेकिन जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को अंदर प्रवेश नहीं करने देना।
ये भी पढ़ें: इस दिन से शुरू हो रहा है विघ्नहर्ता मंगल करता का उत्सव, बाजारों में मूर्तियों के लिए प्री ऑर्डर, इस तरह की मूर्तियां हैं डिमांड में थोड़ी देर बाद जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया। बालक से अनजान शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और उसके बाद अंदर प्रवेश कर गए। जब माता पर्वती ने भगवान शंकर जी को नाराज देखा तो उन्हें लगा कि भोजन में विलंब होने के कारण महादेवजी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया। पार्वती जी के हाथ में दूसरा थाल देखकर शिवजी ने हैरान होकर पूछा कि यह दूसरा थाल किसके लिए हैं? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणेश के लिए हैं, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर शिवजी और अधिक आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने पूछा तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? तभी पार्वती जी ने कहा हा नाथ! क्या आपने उसे नहीं देखा? शिवजी ने कहा कि मैंने तो उसे उद्दण्ड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुःखी हुईं और नाराज हो कर विलाप करने लगीं। जिसके बाद पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया।
माता पर्वती और शिवजी ने गणेश जी को देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। इसके साथ ही किसी भी तरह की पूजा में सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा- हे गणएश भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर आपका जन्म हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। उसके बाद स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा की नौ दिन तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुंचते है। नौ दिन बाद धूम-धाम से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब जल में विसर्जित किया जाता है।