नोएडा

फसलों का MSP क्या है और कैसे होता है तय, जानें इस खबर में

फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएसपी) यानी कि Minimum support price (MSP) और अब जानिए यह हर साल कैसे होता है तय।

नोएडाJul 04, 2018 / 07:20 pm

Rahul Chauhan

एमएसपी

नोएडा। देश की आजादी के बाद किसानों का मनोबल किसी तरह से कमजोर न हो और उन्हें अनाज का वाजिब दाम मिले, इसके लिए सभी सरकारें वायदे करती रही हैं। लेकिन किसानों की हालत में आज तक वह सुधार नहीं हुआ जो होना चाहिए था। जिसका असर समय-समय पर किसानों द्वारा अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन के रूप में देखने को मिलता है। हालांकि सरकार समय-समय पर किसानों की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर उन्हें राहत देने की कोशिश करती है, लेकिन आखिर यह समर्थन मूल्य क्या है और कैसे तय होता है इसकी शुरुआत कहां से हुई। यह जानकारी हम आपको इस खबर में देने जा रहे हैं।
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दरअसल देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अनाजों की कम से कम उतनी कीमत तय करने का विचार किया जिससे किसानों को किसी तरह का नुकसान न हो। इसके लिए उन्होंने अपने सचिव एलके झा के नेतृत्व में 1 अगस्त 1964 को एक समिति बनाई। इस समिति में एलके झा के अलावा टीपी सिंह, बीएन आधारकर, एमएल दंतवाला और एससी चौधरी शामिल थे। इस कमिटी का काम था कि वो अनाज के न्यूनतम और अधिकतम दाम तय कर सके। 24 सितंबर 1964 को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। लाल बहादुर शास्त्री सरकार ने केंद्रीय कृषि मंत्रालय और राज्यों की सरकारों से बात करके 13 अक्टूबर 1964 को अनाज का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय कर दिया।
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पहली बार इस फसल के लिए घोषित हुआ था एमएसपी
24 दिसंबर 1964 को इसको मंजूरी भी मिल गई, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सका। भारत सरकार के सचिव बी शिवरामन ने 19 अक्टूबर 1965 को इस पर अंतिम मुहर लगाई, जिसके बाद 1966-67 के लिए पहली बार गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई। इसे आम तौर पर एमएसपी (Minnimum Support Price) कहा जाता है। इसके बाद से ही हर साल सरकारों ने फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने की शुरुआत की। ये समर्थन मूल्य फसलों की बुवाई से ठीक पहले घोषित किया जाता है।
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इसलिए घोषित किया जाने लगा समर्थन मूल्य
न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने के पीछे सरकार की ये मंशा थी कि अगर किसी साल अनाज की पैदावार ज्यादा भी होती है, तो भी अनाज की कीमतें एक तय सीमा से नीचे न जाएं। साथ ही किसानों को अपनी फसल की लागत के साथ ही कुछ मुनाफा भी मिल जाए। इसके अलावा सरकार का मकसद किसानों की मुश्किलों को कम करना भी है। सरकार न्यूतम समर्थन मूल्य तय करने के बाद स्थानीय सरकारी एजेंसियों के माध्यम से खरीदकर फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और नेफेड के पास उसका स्टॉक करती है। फिर इसी स्टोर से वो सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए सरकार गरीबों तक कम कीमत में अनाज पहुंचाती है।
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1966-67 में जब न्यूतम समर्थन मूल्य की शुरुआत हुई थी, तो उस वक्त सिर्फ एक फसल गेहूं के लिए इसे तय किया गया था। इसकी वजह से किसान और फसलों को छोड़कर सिर्फ गेहूं की बुवाई करने लगे। इसके बाद अनाजों का उत्पादन कम हो गया। इसके बाद सरकार ने पहले धान औऱ फिर तिलहन और दलहन की कुछ फसलों का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित कर दिया। फिलहाल सरकार की ओर से कुल 23 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है।
इन फसलों का समर्थन मूल्य किया जाता है घोषित
इन फसलों में सात अनाज धान, गेहूं, मक्का, ज्वार, बाजरा, जौ, जई, रागी के साथ ही पांच दालें चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर, सात तेल मूंगफली, सरसों, सोयाबीन, शीशम, सूरजमुखी, कुसुम और नाइजर सीड के साथ ही चार व्यापारिक फसलों गरी, गन्ना, कपास और जूट शामिल हैं।
यह सरकारी संस्था तय करती है एमएसपी
एमएसपी तय करने के लिए देश में एक संस्था काम करती है, जिसका नाम है कृषि लागत एवं मूल्य आयोग। ये संस्था देश के कृषि मंत्रालय के तहत आती है। ये संस्था जनवरी 1965 में बनाई गई थी और तब इसका नाम था कृषि मूल्य आयोग. 1985 में इसमें लागत भी जोड़ दी गई और नाम हो गया कृषि लागत एवं मूल्य आयोग। ये संस्था कृषि मंत्रालय, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति और भारत सरकार को अपने आंकड़े बताती है। इन तीनों जगहों से मंजूरी मिलने के बाद अलग-अलग फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाता है। वहीं गन्ना का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने के लिए एक अलग आयोग है, जिसे गन्ना आयोग कहा जाता है।
इन मानकों के आधार पर तय किया जाता एमएसपी

1. देश के अलग-अलग इलाकों में किसी खास फसल की प्रति हेक्टेयर लागत

2. सरकारी और सार्वजनिक एजेंसियों जैसे एफसीआई और नेफेड की स्टोरेज क्षमता
3. देश के अलग-अलग क्षेत्र में प्रति क्विंटल अनाज को उगाने की लागत

4. प्रति क्विंटल अनाज उगाने के दौरान होने वाला खर्च और आने वाले अगले एक साल में होने वाला बदलाव
5. अनाज की प्रति क्विंटल बाजार में कीमत और आगे एक साल में होने वाला औसत बदलाव

6. किसान जो अनाज बेचता है उसकी कीमत और जो चीजें खरीदता है उसकी कीमत

7. खेती के दौरान होने वाला खर्च और आने वाले अगले एक साल में होने वाला बदलाव
8. एक परिवार पर खपत होने वाला अनाज और एक व्यक्ति पर खपत होने वाले अनाज की मात्रा

9. अनाज के भंडारण, उसको एक जगह से दूसरी जगह पर लाने ले जाने का खर्च, लगने वाला टैक्स, बाजार की मंडियों का टैक्स और अन्य फायदा
10. विश्व के बाजार में उस अनाज की मांग और उसकी उपलब्धता

11. अंतरराष्ट्रीय बाजार में उस अनाज की कीमत, आने वाले साल में कीमत में होने वाला बदलाव

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग देश के अलग-अलग हिस्सों से इन आंकड़ों को इकट्ठा करता है। इन आंकड़ों को इकट्ठा करने के लिए सीपीएसी हर राज्य सरकार से मदद लेता है। इसके अलावा अलग-अलग राज्यों के कृषि वैज्ञानिक, किसान नेता और सामाजिक कार्यकर्ताओं से भी बात की जाती है। इसके अलावा केंद्रीय मंत्रालयों, केंद्रीय मंत्रालयों के विभागों, एफसीआई, नेफेड। जूट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और व्यापारियों के संगठनों से बातचीत कर आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

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