नोएडा। सर्दी शुरू होते ही कोरोना वायरस एक बार फिर विकराल रूप लेता जा रहा है। वहीं दुनियाभर में इसकी वैक्सीन बनाने का काम चल रहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि दिसंबर माह तक कोरोना वैक्सीन बाजार में लॉन्च कर दी जाएगी। वहीं अगर उत्तर प्रदेश की बात करें तो कोरोना के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस बीच एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। जिसके मुताबिक यूपी का हर पांचवा व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव हो चुका है। इतना ही नहीं, इन लोगों को यह तक नहीं पता कि कब उन्हें कोरोना हुआ और कब वह ठीक हो गए। यह खुलासा सीरो सर्वे की रिपोर्ट में हुआ है।
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इन जिलों में हुआ सर्वे दरअसल, सरकार द्वारा यूपी के 11 जिलों में सीरो सर्वे कराया गया। इनमें आगरा, बागपत, गोरखपुर, गाजियाबाद, कौशाम्बी, मेरठ, मुरादाबाद, कानपुर नगर, लखनऊ, प्रयागराज व वाराणसी शामिल हैं। इसका मकसद लोगों में सामुदायिक संक्रमण और इम्युनिटी का पता लगाना था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य विभाग द्वारा चार से आठ सितंबर के बीच उक्त जिलों के 16 हजार स्वस्थ्य व्यक्तियों के खून के नमूने लिए गए थे। इनमें 18 से 59 साल के बीच के लोग शामिल हैं। सभी नमूनों को जांच के लिए केजीएमयू में भेजा गया। जांच में यह बात सामने आई कि उक्त स्वास्थ्य लोगों में से 22.1 प्रतिशत लोगों के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी पाई गई हैं। यानि ये लोग कोरोना संक्रमित हुए और ठीक भी हो गए। जिसका इन लोगों को पता तक नहीं चला। यह भी पढ़ें
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16 हजार में से 3536 लोगों में एंटीबॉडी की पुष्टि डॉक्टरों के मुताबिक जिन 16 हजार लोगों के नमूने लिए गए, उनमें से 3536 लोगों में कोरोना एंटीबॉडी की पुष्टि हुई है। वहीं अगर यूपी आबादी देखें तो वह करीब 23 करोड़ है। इस हिसाब से करीब पांच करोड़ आठ लाख से ज्यादा लोग सितंबर माह में ही संक्रमित होकर ठीक हो चुके थे। जबकि उस वक्त संक्रमण की रफ्तार कम थी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पीके गुप्ता के अनुसार जो आंकडे सामने आए हैं उससे यह कहा जा सकता है कि सितंबर में ही प्रत्येक पांचवा व्यक्ति संक्रमित होकर ठीक हो चुका है और यह आंकड़े अब सामुदायिक संक्रमण की ओर इशारा कर रहे हैं। ये होता है सीरो सर्वे जानकारी के लिए बता दें कि सीरो सर्वे के तहत यह पता लगाया जाता है कि किसी जिले या शहर में आखिर कितने लोग संक्रमित होकर ठीक हुए हैं। इसके लिए लोगों के खून सीरम का परीक्षण किया जाता है। जिसमें यह देखा जाता है कि क्या किसी संक्रमण के खिलाफ लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज विकसित हुईं हैं या नहीं। इससे सामुदायिक संक्रमण का अंदाज भी लगाया जा सकता है।