बाद में शुरू हुई ईद मीलाद-उन-नबी मनाने का सिलसिला
इमाम जियाउद्दीन ने बताया कि ईद मीलाद-उन-नबी (Eid Milad un Nabi) का त्योहार इस्लाम धर्म के आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के मौके पर मनाया जाता है। पैगंबर मुहम्मद (Propet Mohammad) साहब का जन्म इस्लामी कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को वर्तमान सऊदी अरब के मक्का शहर हुआ था। 63 वर्ष की उम्र में उनकी मौत भी उसी तारीख यानी रबी-उल-अव्वल की 12वीं तारीख को ही हुई थी। लिहाजा, कुछ लोग उस दिन खुशी नहीं मनाते हैं। इस साल 10 नवंबर को ईद मिलाद उन-नबी मनाया जाएगा। ईद मीलाद-उन-नबी संसार का सबसे बड़ा जशन माना जाता है। बताया जाता है कि 1588 में उस्मानिया साम्राज्य में इस त्यौहार का प्रचलन शुरू हुआ था। यह भी कहा जाता है कि इस त्योहार की शुरुआत ईसाइयों के क्रिस्मस के देखा-देखी शुरू हुई है। क्योंकि 25 दिसंबर को ईसाई लोग ईसा मसीह के जन्म दिन को धूमधाम से मनाते हैं। लिहाजा, मुसलमानों ने भी अपने पैगंबर के जन्म दिन को धूमधाम से मनाना शुरू कर दिया।
मानवता के लिए वरदान हैं पैगम्बर मुहम्मद
अरब के इतिहास के मुताबिक पैगंबर हजरत मुहम्मद साहब ने ऐसे समय में जन्म लिया, जब अरब के हालात बेहद खराब थे। बच्चियों को जिंदा दफन कर दिया जाता था। विधवाओं से बुरा सलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें खींच जाती थी औऱ् खून की नदिया बह जाती थीं। इस वक्त अरब कबीलों में बंटा था। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए इस्लामिक तारीख 12 रबीउल अव्वल यानी 20 अप्रैल सन् 571 ई. में अरब के मक्का शहर में हजरत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ। गौरतलब है कि इस्लाम दया व करूणा का धर्म तथा सहिष्णुता और असानी का धर्म है। अल्लाह तआला ने इस्लाम धर्म के मानने वालों पर पर केवल उसी चीज़ का भार डाला है, जो वह कर सकती हैं और वह जो भलाई और अच्छाई करेगी। उसको उसका पुण्य और बदला मिलेगा और जो कुछ बुराई करेगी उसके ऊपर उसका बोझ होगा।
इस्लाम धर्म में अल्लाह के साथ शिर्क करने यानी अल्लाह को छोड़ या अल्लाह के साथ किसी और देवी-देवता की पूजा करने की इजाजत नहीं है। यानी अल्लाह के सिवा दूसरे की इबादत करने की इजाजत नहीं है। अल्लाह को छोड़ कर किसी अन्य को सज्दा करने के लिए झुकने (शीश नवाने) की इजाजत नहीं है। इसके साथ ही नुजूमियों और ज्योतिशियों के पास जाने और उनकी पुष्टि करने से रोका है। इसी तरह से जादू से मना किया है, जो दो व्यक्तियों के बीच जुदाई डालने या उनके बीच संबंध पैदा करने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही लोगों के जीवन और संसार की घटनाओं में सितारों के प्रभाव के बारे में आस्था रखने और जमाने (युग) को बुरा भला कहने (गाली देने) से मना किया है, क्योंकि अल्लाह ही ज़माने को उलट फेर करता है, क्योंकि यह अंधविश्वास और निराशावाद है।
इस्लाम ने नेकियों और अच्छे कामों को दिखावा, शोहरत की इच्छा और किसी पर एहसान जतलाकर नष्ट करने से रोका है। यानी दिखावा की नीयत किया गया कोई भी नेक काम फलदाई नहीं होता है। इसके साथ ही आपस में एक दूसरे को अल्लाह की फटकार, या उसके क्रोध, या नरक के द्वारा धिक्कार करने (ला’नत भेजने) से मनाही किया है। इसके साथ ही सूरज के उगते समय, उसके ढलते समय और उसके डूबते समय नमाज़ पढ़ने से रोका है, क्योंकि वह शैतान की दो सींगों के बीच उगता और डूबता है।