दरअसल, हादसे के बाद घायल अवस्था में सतीश को स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया तो पता चला कि उनके सीने में लोहे का टुकड़ा घुसा हुआ हुा है। लोहे के टुकड़ा इतनी बूरी तरह से घुसा था कि इसकी वजह से उनके फेफड़े खराब हो गए थे और लोहे का टुकड़ा दिल के राइट चैंबर में घुस गया था। हालांकि, अच्छी बात ये है रही लोहे का टुकड़ा उस मुख्य धमनी में नहीं घुसा था, जो हृदय तक खून पहुंचाने का काम करती है, जिसकी वजह से तत्काल मौत हो सकती थी। चूंकि मेटल का टुकड़ा दिल में धंस गया था, हैमरेज नहीं हुआ जो कि जानलेवा हो सकता था। हालांकि, इसका अर्थ यह नहीं था कि सतीश को तत्काल सर्जरी किए बगैर बचाया जा सकता था।
सतीश के साथ काम करने वाले लोगों ने बताया कि सतीश के घायल होने के बाद उसे सिकंदराबाद और गाजियाबाद के तीन अस्पतालों ने उनकी सर्जरी करने से इनकार कर दिया। आखिरकार में नोएडा के फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने जोखिम उठाने का फैसला किया। सतीश के आॉरेशन का जिक्र करते हुए नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में कार्डियो थोराटिक ऐंड वास्कुलर सर्जरी के प्रमुख और अडिश्नल डायरेक्टर वैभव मिश्रा ने बताया कि मैंने अपने 15 साल के करिअर में ऐसा केस न देखा और न सुना, लेकिन इसके बावजूद हमने फैसला किया कि सर्जरी करेंगे, क्योंकि मरीज इंतजार नहीं कर सकता था। 5 घंटों तक कई अस्पतालों में चक्कर काटने के बाद वह फोर्टिस पहुंचा था और खून लगातार बहता ही जा रहा था। लिहाजा, दोपहर करीब 12:30 बजे मरीज को ऑपरेशन थिअटर ले जाया गया और डॉक्टरों की टीम ने उनका सीना चीरकर मेटल के टुकड़े को बाहर निकाला। उन्होंने बताया कि आमतौर पर सर्जन दिल की धड़कनों को रोककर हार्ट ऐंड लंग मशीनों के जरिए शरीर के बाकी हिस्सों तक खून पहुंचाते हैं। इस केस में ऐसा नहीं किया गया। दिल धड़क रहा था और सीना चीरकर मेटल निकाला गया, क्योंकि ऐसा न करने से स्ट्रोक का खतरा हो सकता था। डॉक्टरों ने कहा कि एक छोटी-सी गलती भी जान ले सकती थी, लेकिन आखिरकार हम सफल हुए।