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नोएडा

सांसद हुकुम सिंह: नेहरू के आह्वान पर हो गए थे सेना में भर्ती, 1965 के युद्ध में पाकिस्तानी सेना का किया था सामना

उत्तर प्रदेश के कैराना से वर्तमान सांसद बाबू हुकुम सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया

नोएडाFeb 04, 2018 / 09:48 am

sharad asthana

hukum singh
नोएडा। उत्तर प्रदेश के कैराना से वर्तमान सांसद बाबू हुकुम सिंह का शनिवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। नोएडा के जेपी हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली। आज रविवार को उनका अंतिम संस्‍कार किया जाएगा, जिसमें मुख्‍यमंत्री योगी अादित्‍यनाथ समेत डॉ. महेश शर्म, सत्‍यपाल सिंह व कई अन्‍य मंत्री शामिल हाेंगे। भाजपा से सांसद हुकुम सिंह कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाकर काफी सुर्खियों में आए थे। ये तो सबको पता होगा लेकिन शायद ही यह पता हो कि उन्‍होंने 1965 के युद्ध में पाकिस्‍तानी सेना का सामना किया था। इतना ही नहीं वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की अपील पर सेना में शामिल हो गए थे।
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पीसीएस (जे) परीक्षा पास की

जमीन से जुड़े नेता की छवि वाले हुकुम सिंह कैराना से सात बार विधायक भी रह चुके हैं। हालांकि, राजनीति में आने से पहले सांसद बाबू हुकुम सिंह ने वकालत को चुना था। 13 जून 1958 को उनकी शादी रेवती सिंह से हुई। इसके बाद उन्‍होंने वकालत की प्रेक्टिस तेज कर दी। इस दौरान उन्‍होंने जज बनने के लिए पीसीएस (जे) परीक्षा भी पास कर ली।
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चीन ने किया हमला तो जज बनने की जगह सेना में हो गए भर्ती

बाबू हुकुम सिंह के करीबियों के अनुसार, उनके जज बनने से पहले ही चीन ने भारत पर हमला कर दिया। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने युवाओं से सेना में भर्ती होने के आह्वान किया। इसका असर हुकुम सिंह पर भी हुआ और वह भारतीय सेना में भर्मी हो गए। 1965 में हुए युद्ध में बाबू हुकुम सिंह ने पाकिस्तानी सेना का सामना भी किया था। उस समय कैप्टन हुकुम सिंह राजौरी के पूंछ सेक्टर में तैनात थे। वह कई साल तक भारतीय सेना में रहे। उन्होंने 1969 में सेना से इस्तीफा दे दिया और फिर से वकालत करने लगे।
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बार संघ के चुनाव से राजनीति में रखा कदम
सेना से इस्‍तीप्‍फा देने के बाद उन्‍होंने वापस वकालत में कदम रखा और बार संघ का चुनाव लड़ा। 1970 में वह चुनाव जीत गए और इसके साथ उन्होंने राजनीति में कदम रखा। उनकी लोकप्रियता को देखते हुए कांग्रेस और लोकदल ने उन्हें टिकट देने की पेशकश की। इस दाैरान उन्हाेंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वह जीत गए। इस तरह वह विधानसभा सदस्य बने और फिर 1980 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। पिफर वह लोकदल से चुनाव जीत गए। तीसरी बार 1985 में भी उन्होंने लोकदल के टिकट पर ही चुनाव जीता। इसके बाद जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने हुकुमसिंह को राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया।

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