डीएफओ बताते हैं कि मेट्रो रेल, पुल, फ्लाई ओवर, सड़क या किसी भी विकास कार्य के लिए पेड़ों को काटने की मंजूरी दी जाती है तो इसके लिए बाकायदा मौके पर जांच की जाती है, और उस स्थान की फोटोग्राफी कराई जाती है। उसके बाद ही पेड़ों को काटने की अनुमति दी जाती है। उन्होंने बताया कि नियमानुसार किसी पेड़ को काटने से पहले प्रार्थी के आवेदन पर मौके की जांच की जाती है। बाकायदा उसके फोटोग्राफी कराई जाती है। जरुरी समझने पर उसे पेड़ काटने की मंजूरी दी जाती है। लेकिन इसके लिए 100 रुपये प्रोसेसिंग फीस ली जाती है। यह रकम सरकार को राजस्व के तौर पर मिलती है। इसके अलावा 200 रुपये प्रति पेड़ सिक्योरिटी ली जाती है। यह रकम डीएफओ के नाम से आती है। दरअसल किसी भी व्यक्ति को इस शर्त पर पेड़ काटने की मंजूरी दी जाती है कि वह एक पेड़ काटने के बदले दो पौधे का रोपण करेगा। इसके छह वर्ष बाद वह व्यक्ति पौधे को जीवित दिखाकर विभाग के पास जमा अपनी सिक्योरिटी मनी वापस ले सकता है। अगर प्रार्थी छह वर्ष बाद जीवित पौधे दिखने में नाकाम रहता है तो उसकी सिक्योरिटी मनी जब्त कर ली जाती है और उसे पैसे से वन विभाग खुद प्लांटेशन करता है।
डीएफओ ने पेड़ काटने के नियम और कानून तो गिना दिए साथ ही कटे पेड़ों की संख्या के बदले में लगाए गए पेड़ों की संख्या भी बता दी। लेकिन अगर आप शहर में ध्यान दे तों कटे हुए पेड़ के अवशेष तो आपको मिल जाएगे, पर 10 लाख पौधे कहा लगे हैं इसे तलाश करने पर भी आपको नहीं मिलेंगे।
वहीं पर्यावरणविद सरकार के इस नियम को उचित नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि एक पेड़ का स्थान एक पौधा नहीं ले सकता है। पौधा कुछ वर्ष बाद ही हमारे लिए उपयोगी होता है। इसके अलावा एक पेड़ को काटने के बाद उसके कीमत हजारों में होती है, जबकि विभाग सिर्फ 200 रुपये में ही लोगों को हजारों के आमदनी का रास्ता खोल देता है। इस नियम का लाभ उठाकर वन और लकड़ी माफिया अपनी जेब भरने के लिए पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करते हैं। इसका खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ता है।