सात साल बाद पहली बार मां बनकर हुआ सुखद एहसास
पटेल नगर निवासी रेखा त्रिपाठी सात साल बाद दो जुड़वा बेटियों की मां बनी हैं। बच्चे पांच माह के हो चुके हैं। मां बनने के बाद उनकी दिनचर्या पूरी तरह बदल चुकी है। वह कहती हैं कि मां बनना दुनिया की सबसे बड़ी खुशी है। मैं खुशनसीब हूं जो इतने साल बाद भगवान ने मेरी झोली में बच्चे का सुख दे दिया। हालांकि हर काम को व्यवस्थित कर एक अच्छी मां बनना बड़ी चुनौती से कम नहीं होता। वह भी तब जब आप पहली बार मां बनती हैं। जब डॉक्टर आपको यह खबर सुनाता है कि आप मां बनने वाली हैं तो फिर उस समय तो खुशी होती है, लेकिन इसके बाद हर पल अजीब सी डर की स्थिति बनी रहती है। 9 माह हर पल यही सोचना की क्या मेरा बच्चा ठीक होगा, कही उसे कुछ हो तो नहीं जाएगा, क्या मैं अच्छी मां बन पाऊंगी? इन सब सवालों के बीच आप घिरे रहते हैं। बड़ी बात यह है कि इसका कोई जवाब भी नहीं दे सकता। क्योंकि सवाल भी आपसे है और जवाब भी आपसे।
हर वक्त लोग आपको करते हैं जजखजरी रोड निवासी पूजा उपाध्याय का तीन वर्षीय बेटा कबीर है। पूजा कहती हैं कि पहली बार मां और फिर उसे अच्छी तरह पालना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। दिन-रात जगकर आप अपने बच्चों को पालते हो। रात 12 बजे बच्चा जग गया या फिर सुबह के चार बजे। हर समय आपको अपने बच्चे पर नजर रखनी है। अगर नजर इधर से उधर हो गई तो फिर लोगों के ताने सुनो। हर कोई आपको जज करता है। मन:स्थिति और शारिरिक स्थिति दोनों में सामजस्य बैठाना एक मां के लिए बहुत मुश्किल होता है। खासकर तब जब आप पहली बार मां बनती हैं। हर पल बच्चे की बहुत चिंता होती है। एक तरफ आपकी मन:स्थिति अलग होती है और दूसरी तरफ आपका शरीर आपका साथ नहीं देता। डिप्रेशन की स्थिति इसी वजह से होती है। कोई अनुभव नहीं होता है। इसके बाद भी लोग आपको परफेक्ट मां के रूप में ही देखना चाहते हैं।
खट्टा मीठा होता है पहली बार मां बनने का अनुभववत्सला दामले की चार वर्षीय बेटी नवी दामले हैं। उन्होंने बताया कि पहली बार मां बनने का अनुभव खट्टा मीठा होता है। एक युवती पत्नी और फिर मां बन जाती है और फिर उसकी सारी प्राथमिकता बदल जाती है। स्त्रियों को हमेशा से सजने का बहुत शौख रहता है, लेकिन जब वह मां बनती है तो अपने बच्चे के लिए सजना-संवरना छोड़ देती है। मां के लिए प्राथमिकता बदल जाती है। पहले बच्चा, फिर परिवार और फिर खुद को देखती है। बच्चे के पालन पोषण के दौरान लोगों के आरोप-प्रत्यारोप भी लगते हैं। बच्चे को चोट लग गई तो मां दोषी, बच्चा बिस्तर से गिर गया तो मां दोषी। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है जिम्मेदारी बड़ी होती जाती है। इन सबको निभाते हुए एक मां बच्चे की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ती।