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बाइडन के काल में यूएस-भारत संबंधों को मिली नई ऊंचाई

विनय कौड़ाऐसे समय जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, यह आवश्यक हो जाता है कि भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने में उनकी भूमिका की पड़ताल की जाए। यह सही है कि इन दिनों अपनी बढ़ती उम्र संबंधी कमजोरियों के कारण बाइडन का अक्सर उपहास उड़ाया जाता है, लेकिन हमें […]

जयपुरOct 24, 2024 / 07:29 pm

Gyan Chand Patni

Flags of India and US

विनय कौड़ा
ऐसे समय जब अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का कार्यकाल समाप्त हो रहा है, यह आवश्यक हो जाता है कि भारत के साथ संबंध प्रगाढ़ करने में उनकी भूमिका की पड़ताल की जाए। यह सही है कि इन दिनों अपनी बढ़ती उम्र संबंधी कमजोरियों के कारण बाइडन का अक्सर उपहास उड़ाया जाता है, लेकिन हमें यह याद रखना भी जरूरी है कि उन्होंने भारत-अमरीका संबंधों को एक नई ऊंचाई प्रदान की है। चीaन से बढ़ती चुनौतियों के बीच बाइडन ने एशिया में शक्ति का एक नया संतुलन बनाने की रणनीति को अधिक तीखा बनाया।
भारत के औद्योगिक-सैन्य शक्ति बनने के स्वप्न को साकार करने के लिए बाइडन ने अपनी राजनीतिक पूंजी का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने दशकों से बंद अमरीकी सुरक्षा एवं प्रौद्योगिकी प्रतिष्ठान के दरवाजे खोलने आंरभ कर दिए। इंडो-पैसिफिक के प्रति बाइडन प्रशासन ने वही प्रतिबद्धता जारी रखी जो उनके पूर्ववर्ती प्रशासन ने दिखाई थी। उनका चीन के प्रति प्रतिकूल और भारत के प्रति सकारात्मक रवैया रहा। शपथ लेने के दो महीने के भीतर बाइडन ने क्वाड गठबंधन को शीर्ष नेतृत्व के स्तर तक बढ़ा दिया। सितंबर 2021 में वाइट हाउस में उन्होंने क्वाड शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेजबानी की, जिसमें विशेष रूप से उभरती प्रौद्योगिकियों पर एक महत्त्वाकांक्षी एजेंडा प्रस्तुत किया गया।
बाइडन ने इस भारतीय दृष्टिकोण को भी आत्मसात कर लिया कि क्वाड को एक सैन्य गठबंधन के रूप में नहीं बल्कि इंडो-पैसेफिक में सार्वजनिक वस्तुओं के प्रदाता के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण से मानवीय सहायता और आपदा राहत, साइबर सुरक्षा, दूरसंचार और स्वास्थ्य पर क्षेत्रीय सहयोग का विस्तार हुआ है। जब ‘इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमर्र्जिंग टेक्नोलॉजी’ को लॉन्च किया गया तो पूरी दुनिया अचंभित थी। भारत की तकनीकी आकांक्षाओं को सक्रिय रूप से समर्थन देने के लिए अमरीका द्वारा अपने प्रौद्योगिकी ज्ञान को साझा करने में यह अहम कदम था। दरअसल, बाइडन ने भारत की इस सोच पर मुहर लगाई कि वर्तमान भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में जिस देश के पास नवीनतम प्रौद्योगिकी है, सफलता उससे दूर नहीं है। दरअसल, नई प्रौद्योगिकियों के उद्भव ने अमरीकी राजनीतिक नेतृत्व को यह एहसास करा दिया था कि दुनिया में अपनी बढ़त बनाए रखने के लिए उसे भारत जैसे देशों के सहयोग की आवश्यकता है। बाइडन को यह चिंता निंरतर सताती रही कि अमरीका की ताकत में हो रही गिरावट को किस प्रकार रोका जाए। यह बात बाइडन से ज्यादा कोई नहीं समझ पाया कि इस गिरावट को रोकने के लिए अमरीका को अपनी वैश्विक सामरिक जिम्मेदारियों को साझा करना पड़ेगा। इसलिए उन्होंने अमरीकी पूंजी को भारत में संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश करने और अमरीका के दशकों पुराने निर्यात नियंत्रण प्रतिबंधों को नया आकार देने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए।
पिछले साल जब भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा था तो बाइडन ने उसे सफल बनाने में भरपूर सहयोग दिया। महत्त्वपूर्ण बात यह रही कि रूस के मुद्दे पर भारत से मतभेद को बाइडन ने कभी हावी नहीं होने दिया। यही नहीं, डेमोक्रेेटिक पार्टी और भाजपा के हिंदुत्व की राजनीतिक धारणाओं की वैचारिक भिन्नता को भारत-अमरीका सहयोग में बाधक नहीं बनने दिया। ऐसी कोशिशों को बाइडन ने विफल कर दिया। भारत-अमरीका संबंधों के स्थायित्व के बारे में दोनों देशों के अनेक समीक्षकों द्वारा संदेह व्यक्त करने के बावजूद, बाइडन ने अपने कार्यकाल में भारत के साथ एक सार्थक एवं उद्देश्यपूर्ण रिश्ते का एक साहसिक एजेंडा तैयार कर दिया। द्विपक्षीय सहयोग के लिए नए संस्थागत तंत्र एवं निजी क्षेत्रों के बीच बढ़ते संबंधों ने भारत-अमरीका साझेदारी को अपूर्व स्थिरता प्रदान की है। इतिहास बाइडन के राष्ट्रपति काल को भारत-अमरीका संबंधों में उन्नत प्रौद्योगिकी, रक्षा और क्षेत्रीय सुरक्षा पर ठोस परिणामों के लिए हमेशा याद रखेगा।

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