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पिरामिड जैसा असम का शाही कब्रिस्तान बना विश्व धरोहर

इतिहास का सम्मान : पूर्वोत्तर से पहली बार कोई पुरा-संपदा यूनेस्को की सूची में

नई दिल्लीJul 27, 2024 / 01:56 am

ANUJ SHARMA

नई दिल्ली. असम के चराइदेव इलाके के शिवसागर शहर से 28 किमी दूर अहोम युग (1228-1826) के ‘मोइदम’ (शाही कब्रिस्तान) को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। पूर्वोत्तर से पहली बार किसी धरोहर को इस सूची में जगह मिली है। इसके साथ ही सूची में भारतीय धरोहरों की संख्या 43 हो गई है। इससे पहले एशिया के किसी कब्रिस्तान को विश्व धरोहर घोषित नहीं किया गया।मोइदम पिरामिड जैसी टीलेनुमा संरचनाएं हैं, जहां ताई-अहोम राजवंश के सदस्यों को उनकी प्रिय चीजों के साथ दफनाया जाता था। ताई-अहोम राजवंश ने असम पर करीब 600 साल शासन किया था। अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (आइसीओएमओएस) ने मोइदम को यूनेस्को की सूची में शामिल करने की सिफारिश की थी। मोइदम मध्यकालीन युग के असम के कलाकारों की वास्तुकला और विशेषज्ञता का नमूना हैं। ये टीले पूरे ऊपरी असम में पाए जाते हैं, जहां अहोम की पहली राजधानी चराईदेव है।
चीन से आई थीं ताई-अहोम जनजातियां

अहोम मोइदम का क्षेत्रफल 95.02 हेक्टेयर, जबकि बफर जोन 754.511 हेक्टेयर है। चराइदेव के मोइदम के अंदर 90 संरचनाएं ऊंची भूमि पर हैं। इन्हें ईंट, पत्थर और मिट्टी से टीले जैसा बनाया गया था। इसमें अष्टकोणीय दीवार के केंद्र में मंदिर है। ताई-अहोम जनजातियों चीन से असम आई थीं। इनके राजाओं और रानियों का कब्रिस्तान होने के कारण इस जगह को काफी पवित्र माना जाता है।
छोटे टीले से लेकर बड़ी पहाडिय़ों तक

मोइदम में तीन हिस्से हैं। पहले हिस्से में एक कमरा या वॉल्ट है, जिसमें शव रखा जाता था। दूसरा हिस्सा कमरे को ढकने वाला अर्धगोलाकार टीला है और तीसरा हिस्सा शीर्ष पर ईंट की संरचना है, जिसे चाव चाली कहा जाता है। मोइदम का आकार छोटे टीले से लेकर बड़ी पहाडिय़ों तक है।
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